ममता सरकार ने 6 साल में 13 जांच आयोगों पर खर्च किए 32.5 करोड़, सिर्फ तीन रिपोर्ट हुईं पेश
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी सरकार ने पिछले 6 सालों में 13 जांच आयोगों में करीब 32.53 करोड़ रुपए खर्च कर डाले हैं। पूर्व जजों के नेतृत्व में संचालित इन 13 जांच आयोगों में से केवल 3 आयोगों ने ही अभी तक विधानसभा में अपनी जांच रिपोर्ट पेश की है। इन तीन रिपोर्ट्स में से दो लेफ्ट के शासनकाल के दौरान हुई लो-प्रोफाइल घटनाओं पर थीं। एक रिपोर्ट 2008 में ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर के सुसाइड और दूसरी 2011 में सीपीआई(एम) विधायक के सुसाइड पर थी। तीसरी रिपोर्ट ममता बनर्जी के शासनकाल में ही एएमआरआई अस्पताल में लगी आग के संबंध में थी। इस घटना में करीब 92 लोग मारे गए थे।
इस मामले में कांग्रेस नेता और पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता अब्दुल मन्नान का कहना है कि सदन में कई बार जांच आयोग की रिपोर्ट के बारे में सरकार से सवाल किया जा चुका है, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया जाता। हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक चुनाव से पहले ममता बनर्जी ने कई मामलों में जांच आयोग का गठन करने का वादा किया था, जिस पर उन्होंने चुनाव जीतने के बाद अमल किया और 8 मामलों में जांच आयोग का गठन किया। बाद में अन्य पांच मामलों में भी ममता बनर्जी ने जांच आयोग बनाया।
1971 में जिस वक्त बंगाल में राष्ट्रपति शासन था उस वक्त कोस्सिपोरे बारानगर नरसंहार हुआ था। इस नरसंहार में बहुत से नक्सलाइट कार्यकर्ताओं को मारा गया था, इस मामले में कई कांग्रेस के नेता और पुलिसकर्मियों के ऊपर आरोप लगा था। इस मामले में जांच आयोग का बनाया गया, जिस पर ममता सरकार द्वारा 2014-17 के बीच 2.58 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए। जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट 2017 में फाइल कर दी, लेकिन इसे विधानसभा में अभी तक पेश नहीं किया गया है।
दूसरा हाई-प्रोफाइल केस 1970 में कांग्रेस समर्थक सेन परिवार के तीन सदस्यों की हत्या का है। इसके लिए बने जांच आयोग पर 4.10 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए और आयोग को रिपोर्ट सौंपने के लिए 2012-18 तक का वक्त दिया गया। फिलहाल इस मामले पर अभी आयोग की जांच जारी है। तीसरा केस कोलकाता में 1982 में बिजोन सेतु में 16 आनंद मार्ग मिशनरीज का है, इस पर भी आयोग अभी जांच कर रहा है। चौथा केस 21 जुलाई 1993 में ममता बनर्जी द्वारा निकाली गई रैली में हुई पुलिस फायरिंग के दौरान 13 युवकों की मौत का मामला है। आयोग ने रिपोर्ट सौंप दी है, जिसमें पुलिस को इस घटना के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। ममता बनर्जी ने 2017 में पब्लिकली कहा था कि सुझावों को मान लिया गया है, लेकिन अभी तक रिपोर्ट को सदन में नहीं पेश किया गया है। पांचवां केस 1993 में मिदनापुर में हुई उस घटना को लेकर है, जिसमें 23 आदिवासियों के ऊपर से एक ट्रक गुजर गया था। इसकी रिपोर्ट भी जांच आयोग ने 2018 में सौंप दी है, लेकिन इसे भी अभी तक सदन में पेश नहीं किया गया है।