वीड‍ियो:…जब इंद‍िरा गांधी ने कहा था- शरणार्थी हम पर बोझ हैं, उन्‍हें भारत से जाना ही होगा

भारत से अवैध प्रवासियों को वापस भेजने का मामला सालों से विवाद का विषय रहा है। 1971 में बांग्लादेश के जन्म के साथ ही ये समस्या और भी विकराल हो गई। बांग्लादेश में पाकिस्तानी फौजों के अत्याचार से त्रस्त लाखों लोग भारत आ गये थे। भारत पर अचानक जनसंख्या का बोझ बढ़ गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उस वक्त बड़े ही स्पष्ट रुप से कहा था कि रिफ्यूजी चाहे किसी भी धर्म के हों उन्हें वापस जाना पड़ेगा। 1971 में  इंदिरा गांधी से जब एक विदेशी पत्रकार ने पूछा कि वे लाखों अवैध प्रवासियों का क्या करेंगी, उन्हें कितने दिनों तक रखेंगी, तो इंदिरा ने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा था, “हम तो उन्हें अभी ही नहीं रख सकते हैं…कुछ महीनों से पानी सचमुच सिर के ऊपर चला गया है…हमें कुछ करना ही पड़ेगा…एक चीज मैं जरूर कहूंगी…मैंने ये पूर्णरुप से तय कर लिया है कि सभी धर्मों के रिफ्यूजियों को हर हाल में जाना होगा…उन्हें हम अपनी आबादी में नहीं मिलाने वाले हैं।”

नवंबर 1971 में ही अमेरिका दौरे पर कोलंबिया विश्वविद्यालय में 400 छात्रों को संबोधित करते हुए इंदिरा गांधी ने कहा था कि भारत की सहन क्षमता अपने आखिरी सीमा तक पहुंच गई है। उन्होंने कहा था कि तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से आए रिफ्यूजियों ने भारत पर गंभीर बोझ डाला है। इंदिरा गांधी ने कहा था कि बांग्लादेश से आए प्रवासी भारत की राजनीतिक स्थिरता और आजादी के लिए खतरा बन गये हैं।

घुसपैठियों पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी की राय भी इंदिरा गांधी से ही मिलती जुलती थी। संसद में एक चर्चा के दौरान वाजपेयी ने कहा था कि इतनी बड़ी संख्या में अवैध घुसपैठियों का आना हमारे भविष्य को खतरे में डालेगा। वाजपेयी ने कहा था, “पूरब में हमारे एक पड़ोसी देश से बड़ी संख्या में गैरकानूनी तौर पर लोग आ रहे हैं…सीमा पर उचित प्रबंध नहीं है…पूछताछ का भी तरीका नहीं है…अगर कोई रोजगार के लिए आए फिर वापस चला जाए तो वो एक अलग स्थिति है…” वाजपेयी ने कहा था कि घुसपैठियों के निर्बाध आगमन की वजह से सीमावर्ती इलाकों में जनसंख्या का स्वरुप बदल रहा है…अंसतोष पैदा हो रहा है…तनाव बढ़ रहे हैं…दिल्ली में पुराने रिक्शेवाले शिकायत कर रहे हैं कि ऐसे लोगों के आने से उन्हें किराया कम मिल रहा है…अब ये कहा जाए कि अल्पसंख्यकों के वोट बैंक का सवाल है…चुप रहो…और पार्टियां इस मुद्दे पर क्यों नहीं बोलती मेरी समझ में नहीं आ रहा है…कोई देश इस तरह से बड़े पैमाने पर अवैध अप्रवासी को बर्दाश्त नहीं करेगा…”वाजपेयी ने तब कहा था कि अगर वो आवाज उठाते हैं तो वोट के लिए नहीं बल्कि देश की सुरक्षा के लिए उठाते हैं और ये बात लोगों के गले में उतरनी चाहिए।

30 जुलाई को नागरिकता सूची का फाइनल ड्राफ्ट जारी करने के बाद देश में फिर से एक बार ऐसी ही बहस हो रही है। आज (31 जुलाई) राज्यसभा में भी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अपनी बात रखी। अमित शाह ने कहा कि 14 अगस्त 1985 को राजीव गांधी ने अगस्त अकॉर्ड पर समझौता किया। अमित शाह ने कहा कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन इसी अगस्त समझौते की आत्मा है। अमित शाह ने कहा, “इस समझौते में कहा गया है कि अवैध घुसपैठियों की शिनाख्त कर एक एनआरसी बनाया जाएगा, ये आपके ही पीएम लाए थे।” कांग्रेस सदस्यों पर हमला करते हुए अमित शाह ने कहा कि राज्य में घुसपैठियों की पहचान जरूरी हो गई थी, आखिर लोग उन्हें क्यों बचाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “कांग्रेस के पीएम ने ये समझौता किया, लेकिन ये पार्टी इसे लागू नहीं करवा सकी…हममें हिम्मत थी और इसलिए हमने इसपर अमल किया है।”

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