सुप्रीम कोर्ट: एडल्‍ट्री के लिए सिर्फ पुरुषों को दंडित करना समानता के अधिकार का उल्‍लंघन

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने कहा कि व्याभिचार के लिए सिर्फ पुरुष को ही संविधान की धारा 14 के तहत दंड के योग्य मानना समानता के अधिकार का उल्लंघन जान पड़ता है। जोसेफ सिने के द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्र और जस्टिस आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदू मल्होत्रा की पांच सदस्यीय बेंच ने इस मामले को सात सदस्यीय बेंच को भेजने का फैसला किया था लेकिन इस पर सुनवाई के बाद में फैसला करने का निर्णय लिया गया।

याचिकाकर्ता के वकील कलीश्वरम राज ने कहा कि चार जजों की बेंच ने साल 1954 में धारा 497 की वैधता को बरकरार रखने का फैसला किया था। इस फैसले का आधार धारा 15 के तहत महिलाओं और बच्चों को संविधान के द्वारा दिए गए अधिकार हैं। उन्होंने कहा कि आज के वक्त में ये मानना कठिन है कि एक आदमी अगर किसी अन्य महिला के साथ आपसी सहमति से उसके पति की जानकारी या इच्छा के बगैर संभोग करता है। इस अपराध के लिए उसे पांच साल जेल की सजा सुनाई जाए जबकि अपराध में बराबर की भागीदार होने के बावजूद महिला को आजाद छोड़ दिया जाए।

एनजीओ की तरफ से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा, ” धारा 497, जो व्याभिचार के लिए पुरुषों को अपराधी बताती है, इसे खत्म किया जाना चाहिए। इसका कारण है कि ये धारा महिलाओं को पुरुषों की चल संपत्ति के तौर पर पेश करती है। धारा के मुताबिक अगर पुरुष किसी पराई महिला से पति की इच्छा के साथ संभोग करता है तो वह व्याभिचार नहीं कहलाता है।”

मामले की सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी। वहीं इस मामले पर केंद्र सरकार ने भी अपना हलफनामा दायर किया है। केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि भारतीय दंड विधान की धारा 497 को अपराध की श्रेणी से हटाया जाना चाहिए। क्योंकि ये धारा व्याभिचार के लिए सिर्फ पुरुष को ही दोषी मानती है।ये धारा वैवाहिक संबंधों की नींव हिला सकती है। समाज के ताने-बाने को भी नुकसान पहुंचा सकती है।

केंद्र सरकार ने 33 साल पुराने सौमित्री विष्णु मामले का हवाला दिया और कहा ,” भारतीय दंड विधान की धारा 497 विवाह नाम की संस्था का समर्थन करती है और उसकी रक्षा करती है।” इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने फैसला दिया था कि अगर धारा 497 को खत्म किया जाता है तो समाज में अनैतिक संबंध बनाना और भी आसान हो जाएगा। उन्होंने कहा, ” व्याभिचार को अपराध न मानना विवाह संबंधों की बुनियाद को कमजोर बना देगा और इससे विवाह के बंधन की पवित्रता और महत्व भी कम हो जाएगा।”

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