उत्तराखंड में तीसरी संतान पर भी मिलेगा महिला कर्मचारियों को मातृत्‍व अवकाश, उच्च न्यायालय का फ़ैसला

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में उत्तराखंड सरकार के मातृत्व अवकाश संबंधी नियम को खारिज कर दिया है। उत्तराखंड सरकार के कानून के मुताबिक महिला कर्मचारियों की तीसरी संतान होने की स्थिति में मातृत्व अवकाश देना असंवैधानिक कहा गया था। कोर्ट ने कहा कि ये नियम संविधान के लेख और उसकी भावना के विरुद्ध है।

इस फैसले को जस्टिस राजीव शर्मा की एकल बेंच ने सुनाया। बेंच ने कहा कि उत्तर प्रदेश मूल अधिकार कानून के नियम 153 के मुताबिक ये संविधान के आर्टिकल 42 का विरोध करता है। आर्टिकल 42 न्यायपूर्ण और मानवीय आधार पर काम करने और मातृत्व अवकाश की व्यवस्था देता है। वैसे बता दें कि उत्तराखंड ने उत्तर प्रदेश के मूलाधिकार कानून को समूल अंगीकार किया है।

कोर्ट ने कहा कि सरकार का ये नियम मातृत्व लाभ कानून, 1961 के भी विरुद्ध है। ये नियम किसी भी प्रकार से सरकार की उस महिला कर्मचारी को मातृत्व अवकाश लेने पर रोक नहीं लगाता है, जिसे पहले से दो बच्चे हों। मातृत्व लाभ कानून, 1961 उन सभी निजी और सरकारी संस्थाओं में लागू होता है, जिसमें 10 या फिर उससे ज्यादा कर्मचारी काम करते हों।

साल 2017 में मातृत्व लाभ कानून, 1961 में सुधार किया था। इस सुधार में महिला कर्मचारियों को सवैतनिक अवकाश 12 हफ्तों से 26 हफ्ते किया गया था। अगर महिला तीसरी बार गर्भवती है ऐसी स्थिति में ये अवधि 12 हफ्तों के लिए नियत रहेगी। कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि हल्द्वानी की रहने वाली उर्मिला मसीह को अवकाश की अवधि का वेतन दिया जाए। ये छुट्टियां उन्होंने 2015 में ली थीं। जब उन्हें मातृत्व अवकाश देने से इंकार कर दिया गया था।

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