उत्तराखंड सरकारी अधिकारी का दावा: बदरुद्दीन ने नहीं लिखी बद्रीनाथ मंदिर की आरती! मिली असली पांडुलिपि
बेहद पुराना विश्वास है कि उत्तराखंड के बद्रीनाथ मंदिर की आरती या स्तुति को बदरुद्दीन नाम के मुस्लिम श्रद्धालु ने लिखा था। लेकिन अब इस यकीन को सरकार के अधिकारियों ने चुनौती दी है। उनका दावा है कि ये आरती स्थानीय निवासी धन सिंह ब्रतवाल ने लिखी थी। उत्तराखंड स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के निदेश एमपीएस बिष्ट का भी यही मानना है कि रूद्रप्रयाग के स्थानीय लोग मानते हैं कि बदरुद्दीन सिर्फ इस आरती के गायक हैं, असली लेखक नहीं।
मीडीया में आई रिपोर्ट के अनुसार बद्री केदार मंदिर कमिटी, जो इस तीर्थस्थल का प्रबंध करती है। उनके पास इस मंदिर में गाई जाने वाली आरती की कोई पांडुलिपि नहीं है। हालांकि साल 1867 में कथित तौर पर बदरुद्दीन के द्वारा लिखी हुई एक पुस्तक जरूर है। ये पुस्तक अल्मोड़ा के पास लेखक जुगल किशोर पेटशाली के संग्रहालय में रखी हुई है। इस पुस्तक में इस आरती का जिक्र किया गया है। अब, बिष्ट इस दावे के साथ सामने आए हैं कि उन्होंने इस स्तुति की असली पांडुलिपि को खोज निकाला है। ये खोज असल में बिष्ट के अंडर में पीएचडी कर रहे छात्र ने की है। उसने बिष्ट को रुद्रप्रयाग में इस पांडुलिपि की मौजूदगी की जानकारी दी थी।
मीडीया में आई रिपोर्ट के अनुसार बिष्ट ने कहा,” मैंने उसे पांडुलिपि की प्रति और जानकारी भेजने के लिए कहा। बाद में मुझे एहसास हुआ कि उसके दावों में सच की छाप हो सकती है। बाद में मैं खुद इस पांडुलिपि को लेकर पर्यटन मंत्रालय के सचिव और अधिकारियों के पास ले गया। इसके अलावा मैंने संस्कृति विभाग और राज्य के पुरातत्व विभाग से भी संपर्क किया ताकि वह इस पांडुलिपि का अध्ययन करके सच को सामने ला सकें।”
ब्रतवाल परिवार के मुताबिक,” ये पांडुलिपि सन 1880 में गांव के स्थानीय राजस्व संग्राहक धन सिंह ने लिखी थी। हम हमेशा से अपने पुरखों से सुनते चले आए थे कि धन सिंह की लिखी हुई आरती ही रोज बद्रीनाथ मंदिर में गाई जाती है। ये पांडुलिपि सैकड़ों सालों से हमारे घर में रखी हुई है। इस पांडुलिपि में उस साल का भी जिक्र है, जिसमें ये पांडुलिपि लिखी गई थी।” वर्तमान में ब्रतवाल परिवार के अवतार सिंह ब्रतवाल इस पांडुलिपि के संरक्षक हैं। वह खुद को धन सिंह ब्रतवाल की पांचवीं पीढ़ी बताते हैं।
ब्रतवाल की पांडुलिपि में 11 पैराग्राफ हैं। जबकि वर्तमान आरती में सात पैराग्राफ हैं। इस आरती में दो पद बिल्कुल समान भी हैं। जबकि ब्रतवाल की आरती में लिखे गए शुरूआत के चार पद बदरुद्दीन की लिखी आरती से मेल नहीं खाते हैं। हालांकि पेटशाली ने कहा बदरुद्दीन ने ये स्तुति किताब के रूप में लिखी थी। पेटशाली ने बताया,”1867 में प्रकाशित पुस्तक में लेखक का नाम मुस्तहर, मुंशीन नसीरउद्दीन लिखा गयाहै। ये बदरुद्दीन का उपनाम था। इस पुस्तक में उनका पता पोस्ट आॅफिस नंदप्रयाग, जिला रुद्रप्रयाग लिखा गया है।”
उत्तराखंड के श्री नगर स्थित गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास के प्रोफेसर एसएस नेगी ने कहा,”जब तक मैं ब्रतवाल की लिखी हुई पांडुलिपि को नहीं देख लेता, मैं कोई टिप्पणी नहीं कर सकता। ये आम धारणा है कि बदरुद्दीन ने आरती लिखी है। लेकिन मैं टिप्पणी नहीं कर सकता कि वह असली है या नहीं है।”
नेगी के मुताबिक ये सिर्फ जनधारणा है, ऐतिहासिक तथ्य नहीं है कि बदरुद्दीन ने 1865 में ये आरती लिखी थी। ये पुस्तक किताब छपने से दो साल पहले लिखी गई थी। नेगी ने बताया,” मान्यता है कि उनका नाम फखरुद्दीन था। लेकिन बद्रीनाथ के भक्त होने के कारण उनका नाम बदरुद्दीन पड़ गया था।” बताया जाता है कि बदरुद्दीन नंदप्रयाग के रहने वाले थे, ये यात्रा का प्रमुख मार्ग था और मुस्लिम इस दौरान यात्रियों का सामान पहुंचाने में प्रमुख भूमिका निभाया करते थे।