नहीं रहे इंदिरा के राजदार आरके धवनः 74 साल में 15 साल छोटी महिला से रचाई थी शादी

पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजिंदर कुमार धवन का निधन हो गया है। उनकी मृत्यु नई दिल्ली के बीएल कपूर अस्पताल में सोमवार को हुई। वह 81 वर्ष के थे। पूर्व राज्य सभा सांसद रहे धवन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेहद करीबी थे। उन्हें पिछले सप्ताह मंगलवार को आयु संबंधी परेशानियों के बाद अस्पताल में भर्ती करवाया गया था।

वहीं पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने धवन के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा,”मुझे श्री आर के धवन के निधन से बेहद गहरा आघात लगा है। हालांकि वह बीमार थे लेकिन फिर भी मुझे ये नहीं लगा था कि वह इतनी जल्दी चले जाएंगे। वह मेरे करीबी दोस्त और पार्टी एवं सरकार में सहयोगी भी थे। वह हमेशा मुझे याद आते रहेंगे।”

इंदिरा गांधी के राजदार थे धवन: धवन ने अपना करियर इंदिरा गांधी के निजी सचिव के तौर पर साल 1962 में शुरू किया था। धवन उनकी हत्या के दिन यानी साल 1984 तक उनके निजी सचिव बने रहे। वरिष्ठ कांग्रेस नेता धवन आपातकाल के दिनों (1975—1977) में इंदिरा गांधी के सबसे ज्यादा करीबी लोगों में शामिल थे। जिस दायरे में अंबिका सोनी और कमलनाथ जैसे लोग भी शामिल हुआ करते थे।

बताया था आपातकाल का कारण: इंदिरा गांधी के निजी सचिव रहे आरके धवन ने इस बात का खुलासा किया था कि इमरजेंसी के लिए उस वक्त पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे सिद्धार्थ शंकर रॉय ने इंदिरा गांधी पर दबाव बनाया था। वरिष्ठ पत्रकार करन थापर को दिए इंटरव्यू में धवन ने ये दावा किया था। उन्होंने कहा था, ”मुख्य रूप से बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रॉय इमरजेंसी के कारण थे। 8 जनवरी, 1975 को रॉय ने इंदिरा गांधी को पत्र लिख कर ‘इमरजेंसी स्टाइल’ में शासन चलाने की सलाह दी थी। जून 1975 में इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आते ही रॉय फिर से इमजरेंसी की वकालत करने लगे थे।

धवन ने अपने इंटरव्यू में बताया था,” मुख्यमंत्री राॅॅय 25 जून, 1975 की सुबह दिल्ली के बंग भवन में अपने बिस्तर पर लेटे थे कि प्रधानमंत्री कार्यालय में मैंने उन्हें फोन कर तलब किया और जल्द ही श्रीमती गाँधी से मिलने को कहा। जब राॅॅय, 1 सफदरजंग रोड के प्रधानमंत्री आवास पर पहुंचे तो उन्होंने इंदिरा अपने स्टडी कक्ष की बड़ी मेज के सामने बैठी हुई थीं। उनके सामने खुफिया सूचनाओं का अंबार लगा था।”

धवन ने बताया था कि हाईकोर्ट द्वारा उम्मीदवारी रद्द किए जाने के बाद इंदिरा गांधी की कोई पहली प्रतिक्रिया नहीं थी, वह शांत थीं। उन्होंने इस्तीफे के लिए एक पत्र लिखवाया। इस लेटर को टाइप तो किया गया, लेकिन उस पर उन्होंने कभी हस्ताक्षर नहीं किया, क्योंकि उनकी कैबिनेट के साथी तुरंत उनसे मिलने आ गए और उन्हें इस्तीफा न देने के लिए मनाने लगे थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *