राज्यसभा उपसभापति चुनाव: हरिवंश को आगे कर बीजेपी ने बैठाया सियासी समीकरण, जानें- नफा-नुकसान
बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए ने राज्यसभा के उप सभापति के चुनाव के लिए जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के सांसद हरिवंश को उम्मीदवार बनाया है। उनकी जीत सुनिश्चित कराने के लिए जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद मोर्चा संभाल लिया है। उन्होंने तेलंगाना के सीएम और टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव से हरिवंश को समर्थन देने पर बातचीत की है। माना जा रहा है कि वो ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से भी बात करेंगे और उनसे भी सहयोग मांगेंगे। इस बीच, शिरोमणि अकाली दल ने हरिवंश को समर्थन देने का फैसला किया है। अकाली दल के सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने कहा कि उनकी पार्टी एनडीए से अलग नहीं है।
दरअसल, बीजेपी ने हरिवंश नारायण सिंह उर्फ हरिवंश को उप सभापति का उम्मीदवार बनाकर न सिर्फ विपक्षी एकता की मुहिम को कुंद करने की कोशिश की है बल्कि घटक दलों को भी साधने की सियासी चाल चली है और आम चुनाव बाद एनडीए के विस्तार की भी पटकथा लिखने की कोशिश की है। बिहार में जेडीयू और बीजेपी की साझा सरकार है लेकिन पिछले कुछ महीनों में दोनों दलों के बीच लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर खींचतान होती रही है। जेडीयू खुद को बड़ा भाई समझता रहा है और नीतीश को चुनावी चेहरा बनाने की मांग करता रहा है जबकि बीजेपी के लोग पीएम मोदी को ही बड़ा चेहरा मानने और चुनावी चेहरा बनाने का दावा करते रहे हैं। बाद में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पटना पहुंचकर इस मामले का पटाक्षेप किया। सूत्रों के मुताबिक तभी दोनों नेताओं के बीच हरिवंश को उप सभापति बनाने पर चर्चा हुई।
हरिवंश नारायण सिंह पेशे से पत्रकार और लेखक रहे हैं। सीएम नीतीश के काफी करीबी हैं। राजपूत जाति से आते हैं। पिछले मंत्रिमंडल फेरबदल में इसी जाति से आनेवाले छपरा से सांसद राजीव प्रताप रूढी की मंत्री परिषद से छुट्टी कर दी गई थी। माना जा रहा है कि दूसरे बड़े राजपूत मंत्री राधामोहन सिंह अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे, इसलिए भी बीजेपी ने जेडीयू कोटे से राजपूत सांसद को ऊंचे ओहदे पर बैठाने की सियासी रणनीति बनाई है ताकि एक कुर्सी से कई सियासी फायदे लिए जा सकें। पहला नीतीश कुमार और उनकी पार्टी का रुख बीजेपी के प्रति नरम हो सकता है और दोस्ती बरकरार रह सकती है। दूसरा राजपूतों का झुकाव एनडीए की तरफ हो और तीसरा नीतीश की राजनीतिक मोर्चेबंदी का फायदा उठाते हुए विपक्षी एकता की मुहिम की हवा निकाली जा सकती है।
कुछ दिनों पहले तक केसीआर जेडीएस अध्यक्ष और पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा के साथ अक्सर मीटिंग करते नजर आते थे लेकिन अब ऐसा दिख रहा है कि वो आगामी लोकसभा चुनाव के बाद एनडीए की तरफ जा सकते हैं। कुछ ऐसा ही हाल नवीन पटनायक का भी है। अगर एनडीए का पलड़ा भारी रहा तो उससे निकलने की कोशिश कर रही शिवसेना भी फिर से बीजेपी की शागिर्द बनी रह सकती है।