आरटीआइ कानून में केंद्र सरकार द्वारा बदलाव के प्रस्ताव के विरोध में आरटीआइ कार्यकर्ताओं का अभियान
आरटीआइ (सूचना का अधिकार) कानून पर संसद के मानसून सत्र में केंद्र सरकार की ओर से लाए गए संशोधन विधेयक को विरोध के बाद फिलहाल रोक दिया गया है, लेकिन इसे लेकर सूचना अधिकार कार्यकर्ता सजग हो गए हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बाकायदा आरटीआइ बचाओ अभियान शुरू हो गया है। आरटीआइ कार्यकर्ता हजारों लोगों से पोस्टकार्ड लिखवाकर दिल्ली भेज रहे हैं, ताकि कानून में बदलाव को हमेशा के लिए रद्द किया जा सके। केंद्र सरकार की ओर से लाए गए संशोधन के प्रस्ताव मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त, राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त के वेतन व सेवाकाल की शर्तों से जुड़े मामलों को लेकर हैं। प्रस्ताव पर विरोध जताने वालों में केंद्रीय सूचना आयुक्त एम श्रीधर आचार्युलू भी शामिल हैं, जिन्होंने सभी सूचना आयुक्तों को पत्र लिखकर इस प्रस्ताव को गलत बताया और इसे वापस लेने की मांग की थी। आरटीआइ से जुड़े मामले में राज्यमंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने संसद में बताया कि संशोधन विधेयक को तैयार करने में व्यय विभाग, विधि कार्य विभाग व विधायी विभाग से परामर्श लिया गया है।
सतर्क नागरिक संगठन और सूचना के जन अधिकार का राष्ट्रीय अभियान से जुड़ी अंजलि भारद्वाज कहती हैं कि प्रस्ताव स्थगित करने के बाद भी यह कहा नहीं जा सकता है कि वह कब वापस आ जाए। हो सकता है कि इसे शीतकालीन सत्र में लाया जाए। अंजलि कहती हैं कि संशोधन के लिए जो भी तर्क दिए गए हैं वे पूरी तरह से बेबुनियाद हैं। अगर हम किसी स्वतंत्र संस्था के वेतन और सेवा नियमावली से जुड़े अधिकार सरकार को देंगे तो जाहिर है कि हम उनकी स्वतंत्रता भी छीनेंगे। लखनऊ में तहरीर संस्था चलाने वाले आरटीआइ कार्यकर्ता संजय शर्मा कहते हैं कि हम लोग राष्ट्रव्यापी आंदोलन के लिए तैयार हैं। उनका कहना है कि लखनऊ में पोस्टकार्ड अभियान चलाकर इसका विरोध जता रहे हैं। लखनऊ के ही तनवीर बताते हैं कि अभी आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति और राज्यपाल की सिफारिश के बाद होती है इसलिए उन पर कोई दबाव नहीं है। तनवीर कहते हैं कि वे आरटीआइ अधिकार बचाओ अभियान भी चला रहे हैं। बरेली में आरटीआइ कार्यकर्ता मुहम्मद खालिद जीलानी कहते हैं कि संशोधन जवाबदेही से मुकरने की कोशिश है। इसके खिलाफ आंदोलन खड़ा करने का प्रयास जरूर होगा। आरटीआइ कार्यकर्ता डॉक्टर प्रदीप मिश्र कहते हैं कि संशोधन के बाद आरटीआइ कानून में सरकार का दखल इसे पंगु बनाएगा।
क्या कहते हैं पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त प्रोफेसर एमएम अंसारी कहते हैं कि यह पूरी तरह से लोकतंत्र पर हमला है। जैसे मतदान का अधिकार है ठीक उसी तरह सूचना का अधिकार भी है और यह एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। अंसारी कहते हैं कि यह वही कानून है जिससे बड़े-बड़े घोटाले सामने आए। सूचना आयुक्त कानून के अधिकार को घटाया गया तो कानून का पालन करवाना मुश्किल हो जाएगा।