उच्च न्यायालय ने हरियाणा पिछड़ा वर्ग अधिनियम के आरक्षण में आय के पैमाने को किया खारिज

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा पिछड़ा वर्ग (सेवाओं और शिक्षण संस्थानों में दाखिले में आरक्षण) अधिनियम के उन प्रावधानों को खारिज कर दिया है जिसके जरिए सरकार ने पिछड़ा वर्ग श्रेणी के तहत आरक्षण के लिए आय को मानदंड तय कर दिया था। न्यायमूर्ति महेश ग्रोवर और न्यायमूर्ति महाबीर सिंह संधू की खंड पीठ ने कल यह आदेश पारित किया। वे पिछड़ा वर्ग आरक्षण के तहत हरियाणा में एमबीबीएस पाठ्यक्रम के छात्रों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे। रद्द कर दिए गए नियम के मुताबिक, जिस व्यक्ति की सकल वार्षिक आय तीन लाख रुपये तक हैं उन्हें सेवा और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का लाभ पहले मिलेगा। इसके बाद प्रतिवर्ष तीन से छह लाख रुपये तक की आय वाले पिछड़ वर्ग के लोगों को आरक्षण का फायदा दिया जाएगा।

अदालत ने कहा कि आर्थिक मानदंड और कल्याण सामाजिक रूप से उत्थान का एक संकेतक हो सकता है लेकिन अकेला मानदंड नहीं हो सकता है। उच्च न्यायालय ने कहा कि सरकार इस आरक्षण से लाभांवित होने वाले वर्गों के पिछड़ेपन का ठोस आंकड़ा देने में नाकाम रही है। पीठ ने कहा कि एक जाति या समूह की प्रगतिशीलता की पहचान ठोस आंकड़ों से की जाती है न कि अनुमान के आधार पर कि जिनकी आय तीन लाख से अधिक है वे सामाजिक पिछड़ेपन से अछूते हैं।  अदालत ने राज्य के चिकित्सा कॉलेजों में दाखिले के लिए तैयार सूची को भी रद्द कर दिया है और नए सिरे से काउंसलिंग का आदेश दिया है। गौरतलब है कि लोकसभा में पास होने के सालों बाद ओबीसी आरक्षण बिल अब राज्यसभा में भी पास हो गया है।

 

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