राजनीति के अपराधीकरण पर सुप्रीम कोर्ट से बोली केंद्र सरकार- संसद के अधिकार क्षेत्र में न दें दखल
गंभीर अपराधिक मुकदमों का सामना कर रहे व्यक्तियों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध के लिये दायर याचिकाओं पर गुरुवार को उच्चतम न्यायालय में सुनवाई शुरू हो गयी। न्यायालय ने प्रारंभ में ही टिप्पणी की कि ‘‘हमारी राजनीतिक व्यवस्था’’ में ‘‘अपराधीकरण’’ का प्रवेश नहीं होना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अधिकारों का बंटवारा करने के सिद्धांत का हवाला दिया और कहा कि अदालतों को ‘‘लक्ष्मण रेखा’’ नहीं लांघनी चाहिए और कानून बनाने के संसद के अधिकार के दायरे में नहीं जाना चाहिए। संविधान पीठ ने कहा, ‘‘यह लक्ष्मण रेखा उस सीमा तक है कि हम कानून घोषित करते हैं। हमे कानून बनाने नहीं है, यह संसद का अधिकार क्षेत्र है।’’ संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा शामिल हैं।
केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने याचिकाओं का विरोध करते हुये कहा कि यह विषय पूरी तरह संसद के अधिकार क्षेत्र का है और यह एक अवधारणा है कि दोषी ठहराये जाने तक व्यक्ति को निर्दोष माना जाता है। पीठ ने मंत्रियों द्वारा ली जाने वाली शपथ से संबंधित सांविधान के प्रावधान का हवाला दिया और जानना चाहा कि क्या हत्या के आरोप का सामना करने वाला व्यक्ति ‘‘भारत के संविधान के प्रति निष्ठा बनाये रखने की शपथ ले सकता है।’’ इस पर वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘इस शपथ में ऐसा कुछ नहीं है जो यह सिद्ध कर सके कि आपराधिक मामले का सामना कर रहा व्यक्ति संविधान के प्रति निष्ठा नहीं रखेगा और यही नहीं, संविधान में निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के प्रावधान हैं और दोषी साबित होने तक एक व्यक्ति को निर्दोष माना जाता है।’’ इससे पहले, आज सुनवाई शुरू होते ही गैर सरकारी संगठन पब्लिक इंटरेस्ट फाउण्डेशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी ने दावा किया कि 2014 में संसद में 34 प्रतिशत सांसद आपराधिक पृष्ठभूमि वाले थे और यह पूरी तरह ‘असंभव’ है कि संसद राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिये कोई कानून बनायेगी।
उन्होंने जोर देकर कहा कि राजनीति के अपराधीकरण के मुद्दे पर शीर्ष अदालत को ही विचार करना चाहिए। तीन सदस्यीय खंडपीठ ने आठ मार्च, 2016 को इस मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा था। इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजते हुये प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि वृहद पीठ इस सवाल पर विचार करेगी कि क्या आपराधिक मुकदमे का सामना कर रहे विधि निर्माता को दोषी ठहराये जाने पर अथवा आरोप निर्धारित होने पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है?
भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्वनी कुमार उपाध्याय ने भी चुनाव सुधारों और राजनीति को अपराधीकरण और सांप्रदायीकरण से मुक्त करने का केन्द्र और अन्य को निर्देश देने के अनुरोध के साथ याचिका दायर कर रखी है।
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने आपराधिक मामलों में मुकदमों का सामना कर रहे विधायकों और सांसदों के मुकदमों की सुनवाई एक साल के भीतर पूरी करने का निचली अदालतों के लिये समय सीमा निर्धारित की थी। शीर्ष अदालत ने सांसदों और विधायकों की संलिप्तता से संबंधित सारे आपराधिक मुकदमों की दैनिक आधार पर सुनवाई करने पर जोर दिया था। निचली अदालतों के लिए ऐसे मामलों में एक साल के भीतर ट्रायल पूरा करने की समय सीमा तय कर रखी है।