अनुसूचित जाति – जनजाति अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक को मिली संसद की मंजूरी

संसद ने गुरुवार को अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण संशोधन विधेयक 2018 को मंजूरी दे दी। राज्यसभा में सरकार ने कहा कि वह अच्छी नीयत, अच्छी नीति और अच्छी कार्ययोजना के साथ इन वर्गों के हकों के संरक्षण के लिए प्रयासरत है। राज्यसभा में विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले ही संबोधन में साफ कर दिया था कि उनकी सरकार गरीबों और पिछड़ों की सरकार होगी। पिछले चार साल में सरकार ने यह करके भी दिखाया है। इस संबंध में किसी को आशंका नहीं करनी चाहिए। मंत्री के जवाब के बाद उच्च सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को पारित कर दिया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है।

राज्यसभा में हुई चर्चा का जवाब देते हुए गहलोत ने कहा कि सरकार वह अच्छी नीयत, अच्छी नीति और अच्छी कार्ययोजना के साथ कठोर प्रयास कर इन वर्गों के हकों के संरक्षण के लिए प्रयासरत है। इसमें उन्हें सफलता भी मिली है। चर्चा के दौरान कई सदस्यों ने विशेष अदालतों के गठन की मांग की थी। इस पर उन्होंने कहा कि विधेयक में विशेष अदालतों की स्थापना का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि 14 राज्यों ने 195 विशेष अदालतें गठित की हैं। उन्होंने विपक्ष के इस दावे को नकार दिया कि सरकार दबाव में यह विधेयक लाई है। गहलोत ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद विधेयक लाने की पृष्ठभूमि का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जिस मंशा से मूल कानून बनाया गया था, उसे बहाल करने के लिए यह विधेयक लाया गया है।

इससे पहले हुई चर्चा में कांग्रेस की कुमारी शैलजा ने कहा कि देश में दलितों के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं। हर 15 मिनट पर दलितों के खिलाफ कोई ने कोई अपराध होता है। उन्होंने मांग की कि इस कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो बार-बार अदालतों में इसे चुनौती दी जाएगी। भाजपा के किरोड़ी लाल मीणा ने कहा कि संसद से पारित कानून को न्यायपालिका ने बदल दिया। उन्होंने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए स्थापित कॉलिजियम प्रणाली पर आपत्ति जताते हुए इसे खत्म करने की मांग की। उनकी एक टिप्पणी पर कांग्रेस सहित कई अन्य दलों ने आपत्ती जताई। इस वजह से दोपहर करीब ढाई बजे बैठक 10 मिनट के लिए स्थगित करनी पड़ी। बैठक फिर शुरू होने पर सभापति एम वेंकैया नायडू ने उनकी टिप्पणी के एक हिस्से को कार्यवाही से निकाल दिया। इसके बाद सदन सुचारू रूप से चला।

चर्चा में सपा के रामगोपाल यादव ,जद (एकी) के रामचंद्र प्रसाद सिंह, राजद के मनोज कुमार, बसपा के राजाराम, शिवसेना के संजय राउत ,भाकपा के डी राजा, अन्नाद्रमुक की विजिला सत्यानाथ, तृणमूल कांग्रेस के अबीर रंजन बिश्वास, बीजद की सरोजिनी हेम्ब्रम, टीआरएस के केशव राव, इनेलो के राम कुमार कश्यप, कांग्रेस की वानसुक सियाम, मनोनीत नरेंद्र जाधव, वाईएसआर कांग्रेस के विजय साई रेड्डी ने भी भाग लिया। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों के पीठ ने इस साल 20 मार्च को दिए अपने एक फैसले में इस कानून के कई प्रावधान में बदलाव कर तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। अदालत ने कहा था कि इस कानून के तहत डीएसपी स्तर के अधिकारी की जांच के बाद ही प्राथमिकी दर्ज की जाए। फैसले में कहा गया था कि इस मामले में गिरफ्तारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी के आदेश के बाद ही होगी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ दलित और सामाजिक संगठनों ने दो अप्रैल को भारत बंद का आयोजन किया था। इसका व्यापक असर देखा गया था।

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