हरियाणा: इस गांव में आज भी स्वतंत्रता दिवस पर नहीं फहराया जाता है तिरंगा, जानिए वजह
15 अगस्त 1947 को हमारा देश भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था। इस दिन भारत के हर कोने में लोग तिरंगा झंडा फहराकर आजादी का जश्न मनाते हैं, लेकिन आपको यह जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि एक गांव ऐसा भी है जहां स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लोग तिरंगा नहीं फहराते हैं। यह गांव हरियाणा के भिवानी जिले की भिवानी खेरा तहसील में स्थित है। इस गांव का नाम है रोहनात। यहां आजादी के 71 साल बाद भी लोग 15 अगस्त के दिन तिरंगा झंडा नहीं फहराते हैं। ऐसा करने के पीछे बेहद ही दर्दनाक कहानी है, जिसे जानकर शायद आपकी आंखों में आंसू भी आ जाएं।
रोहनात गांव को शहीद गांव के नाम से भी जाना जाता है। साल था 1857 और दिन था 29 मई, इस दिन रोहनात गांव के लोगों ने जो देखा वो उनके जहन में कुछ इस कदर बस गया कि आजादी के 71 सालों के बाद भी यह गांव उस सदमे से उबर नहीं सका। 29 मई के दिन ब्रिटिश फौज ने इस गांव को लहू लुहान कर दिया था। ब्रिटिश फौज अचानक इस गांव में घुस आई और कत्लेआम करना शुरू कर दिया। ब्रिटिश फौज का क्रूर रूप देख गांव के लोग अपने-अपने घर छोड़कर भागने लगे। ब्रिटिश घुड़सवारों ने अंधाधुंध फायरिंग करनी शुरू कर दी। ब्रिटिश फौज गांववालों से अपने अपमान का बदला लेने आई थी।
दरअसल, दिल्ली में 11 मई 1857 को शुरू हुई क्रांति की चिंगारी हरियाणा के हिसार और हांसी तक पहुंच चुकी थी। 29 मई के दिन रोहनात के हिंदू और मुस्लिम भी एक होकर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने हांसी जा पहुंचे और अंग्रेजों पर हमला कर दिया। इस हमले में अधिकारियों समेत 11 अंग्रेज मारे गए। रोहनात गांव के लोगों से बदला लेने के लिए और विरोध की चिंगारी दबाने के लिए सबसे खतरनाक पलटन-14 उसी दिन रोहनात गांव भेजी गई। इस पलटन के लोगों ने रोहनात गांव के लोगों के ऊपर बिना सोचे समझे फायरिंग करनी शुरू कर दी।
ब्रिटिश फौज ने कुछ लोगों को तोपों से बांधकर उड़ाया तो कुछ को गांव की सीमा पर स्थित बरगद के पेड़ से फांसी पर लटका दिया। महिलाओं ने खुद की इज्जत बचाने के लिए गांव के कुएं में छलांग लगा दी और आत्महत्या कर ली। पूरा गांव तबाह हो गया। जो लोग ब्रिटिश फौज के हाथ में आए उन्हें हिसार ले जाकर खुलेआम सड़कों पर रोलर से कुचल दिया गया। पूरी सड़क लहूलुहान हो गई, इस सड़क को बाद में लाल सड़क का नाम दिया गया।
रोहनात को पूरी तरह से तबाह करने के बाद कई महीनों तक यहां कोई इंसान नजर नहीं आया। ब्रिटिश हुकुमत ने रोहनात को बागी गांव घोषित करते हुए इसे नीलाम करने का फैसला लिया। 20 अप्रैल 1858 को यह गांव महज 8100 रुपए में नीलाम कर दिया गया। यह गांव बाहरी लोगों को नीलाम किया गया, ताकि बाद में गांव में रहने वाले लोगों का परिवार आकर अपना हक न जता सके। कुछ सालों बाद लोगों ने रोहनात में वापसी की, लेकिन तब तक सबकुछ बदल गया था। जो जमीनें पहले उनकी हुआ करती थीं, उन्हें उन्हीं जमीनों पर मजदूर बना दिया गया। गांव में रहने वाले लोगों को आज भी अपना हक नहीं मिला है।
आजादी मिले हुए भारत को 71 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन इस गांव में रहने वाले लोग आज भी नीलाम हुई जमीनें वापस नहीं मिल सकी हैं। यह गांव आज भी अंग्रेजी हुकुमत में ही जी रहा है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने 23 मार्च को इस गांव में झंडा फहराया था और गांव के लोगों को राहत देने का भी वादा किया था। वहीं गांववालों का कहना है कि जब तक के सारे वादे पूरे नहीं हो जाते तब तक तिरंगा नहीं फरहाया जाएगा। आजादी के इतने सालों के बाद भी रोहनात के लोग खुद को गुलाम मानते हैं।