हिमाचल प्रदेशः पैसे की कमी से टेनिस खेलना मुश्किल

पिता ने तो साबित कर दिया कि ‘बेटी है अनमोल’ और उसे सफलता के शिखर पर पहुंचाने के लिए अपनी सारी जमा पूंजी उस पर लुटा दी, मगर इस नारे का ढिंढोरा पीटने वाली सरकारों ने न तो उसकी कद्र की और न ही फिक्र। दुनिया भर में हिमाचली शोहरत को सातवें आसमान पर ले जाने वाली टेनिस जगत की उभरती तारिका राणा श्वेता चंद्रा को हिमाचल प्रदेश सरकार के साथ केंद्र सरकार ने भी हाशिए पर डाल दिया। महज नौ बरस की उम्र में रैकेट थामने के बाद टेनिस कोर्ट में उतरी देहरा के नजदीक डोहग-कड़ोली गांव की इस बेटी ने आर्थिक तंगहाली के बावजूद अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में स्वर्ण, रजत और कांस्य के 20 पदक बटोर लिए, मगर प्रदेश की विभिन्न दलों की सरकारों ने टेनिस की इस उत्कृष्ट खिलाड़ी के ऊपर ध्यान नहीं दिया।

9 अगस्त, 1993 में पैदा हुई श्वेता ने टेनिस कोर्ट में उतरने के तीन बरस के अंदर ही 2007 में मुबंई में आयोजित महिलाओं के 33वें मुकाबले में रजत पदक के साथ उसी साल चेक गणराज्य में टेनिस टूर्नामेंट में देश का प्रतिनिधित्व किया और अंडर-14 वर्ग में एशिया और अंडर-16 में राष्ट्रीय स्तर पर पहले स्थान पर कब्जा किया। अंडर-18 वर्ग में चौथे स्थान की इस खिलाड़ी की तब विश्व रैंकिंग 250वें नंबर की थी। लेकिन एकल मुकाबले में देश की एक नंबर की विजेता श्वेता का विश्व में 522वां और युगल प्रतिस्पर्धाओं में छठे स्थान के बावजूद रैंकिंग में सुधार करते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 502वां स्थान हासिल किया। केरल में आयोजित 35वें राष्ट्रीय खेलों में कांस्य पदक कोरिया में आयोजित 17वीं एशियाई खेलों में सानिया मिर्जा के साथ देश के प्रतिनिधिदल में शामिल श्वेता ने 2009 में आस्ट्रेलिया में जूनियर फेडरेशन कप में देश के लिए स्वर्ण और 51वें, 52वें, 53वें, 54वें और 55वें राष्ट्रीय खेलों में रजत पदक जबकि 2013, 2014, और 2015 के फेनेस्टा महिला एकल और युगल चैंपियनशिप में स्वर्ण और रजत पदक अपने नाम किए।

इधर, भारतीय खेल प्राधिकरण नई दिल्ली में फुटबाल के प्रशिक्षक के तौर पर तैनात पिता हरीश चंद्र की तनख्वाह के बलबूते श्वेता टेनिस में नित नया इतिहास रच रही थी और दूसरी ओर प्रदेश की सरकार इस बेटी के खेल कारनामों को नजरअंदाज कर रही थी। नतीजतन सरकारी उपेक्षा के दंश के बावजूद पापा हरीश ने भी हार मानने की बजाय 25 साल की नौकरी के दौरान भविष्य निधि कोष की जमापूंजी श्वेता पर खर्च कर दी। लिहाजा माली हालत बिगड़ने के बावजूद रैंकिंग बरकरार रखने के लिए प्रदेश की इस बेटी को साल में करीब 30 मुकाबले तो खेलने ही होते हैं।साथ ही इसकी तैयारियों के लिए प्रशिक्षण के लिए देश में 40 हजार जबकि विदेश में दो लाख मासिक खर्च करने होते हैं। जाहिर है, इस मंहगे खेल में रेलवे में टिकट निरीक्षक की नौकरी और कम पड़ती इनामी राशि की के कारण रैंकिंग में गिरावट आई और इंडोनेशिया में होने वाली एशियाई खेलों की टेनिस टीम में श्वेता जगह नहीं बना पाई। बहरहाल देश-दुनिया में हिमाचल के झंडे गाड़ रही श्वेता की अनदेखी से गांव के लोग सरकार से नाराज हैं। मां अंजू शर्मा राणा बताती है कि सरकार अगर नौकरी और आर्थिक मदद दे तो 2020 ओलंपिक की तैयारियों में जुटी श्वेता देश के लिए पदक जरूर लाएगी।

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