जेल में हुई थी आईआईटी खड़गपुर की पहली क्‍लास, यहां कैद रखे जाते थे स्‍वतंत्रता सेनानी

Neeti Nigam

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कहा था कि विभिन्न आईआईटी ने आज भारत को वैश्विक तौर पर एक ब्रांड के रुप में स्थापित किया है, जिस पर देश को गर्व है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश का पहला आईआईटी इंस्टीट्यूट शुरुआत में एक कारावास (डिटेंशन कैंप) में शुरु किया गया था। इस कारावास का निर्माण ब्रिटिश सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों को कैद करने के लिए किया था। बता दें कि साल 1950 में आईआईटी खड़गपुर की शुरुआत, जो कि देश का पहला आईआईटी इंस्टीट्यूट है, कोलकाता की 5, एस्पलांडे ईस्ट नामक जगह से संचालित होता था। लेकिन बाद में यह फैसला किया गया कि इंस्टीट्यूट के लिए एक बड़ी और शांत जगह चाहिए, इसलिए कोलकाता से 150 किलोमीटर दूर स्थित हिजली नामक जगह को इसके लिए चुना गया।

बता दें कि हिजली कोई सामान्य कॉलेज कैंपस नहीं था, बल्कि यहां ब्रिटिश शासनकाल में सरकार स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों को कैद करके रखती थी। 1930 के दशक में आजादी की मांग पूरे जोर पर थी। जिसके चलते बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार कर कारावास में डाला जा रहा था। मिदनापुर के तत्कालीन डिस्ट्रिकट मैनेजर रॉबर्ट डगलस के अनुसार, जेल परिसर 140 यार्ड में फैला था। इस परिसर में दो मंजिला इमारत थी, जिसके मध्य में एक टावर था। 140 फुट ऊंचा यह टावर बाइजैनटाइन आर्किटेक्ट का नमूना है। पूरे परिसर को 10 फीट ऊंची दीवार और 2 गेट से कवर किया गया था। इस परिसर से कैदियों का भागना लगभग नामुमकिन था। लेकिन इतने कड़े इंतजामों के बावजूद इस कारावास से 3 लोग भागने में सफल हो गए थे।

इसके बाद यहां सख्ती और ज्यादा बढ़ा दी गई थी। 16 सितंबर, 1931 को सैनिकों के एक ग्रुप ने कैदियों पर गोलियां चला दी थीं, जिसमें 2 कैदियों तारकेश्वट सेनगुप्ता और संतोष मित्रा की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद एक कैदी हिमांशु बोस ने मारे गए दोनों स्वतंत्रता सेनानियों का स्कैच बनाकर किसी तरह आनंद बाजार पत्रिका को भेज दिया था। घटना के खुलासे के बाद दोनों कैदियों के पार्थिव शरीर को लेने के लिए जतिंदर मोहन सेनगुप्ता और सुभाष चंद्र बोस हिजली पहुंचे थे। बाद में इस घटना के विरोध में कोलकाता में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन भी हुए थे। महान कवि गुरु रबिन्द्रनाथ टैगोर ने कैदियों की मौत से निराश होकर एक प्रसिद्ध कविता ‘प्रोसनो’ भी लिखी थी। आजादी के बाद हिजली कारावास को इंस्टीट्यूट में बदलने की मांग उठी, ताकि यहां शहीद हुए सेनानियों को सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सके। आखिरकार 21 अप्रैल, 1956 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने हिजली में आईआईटी खड़गपुर शुरु करने की औपचारिक घोषणा की। आज आईआईटी खड़गपुर नए परिसर में संचालित होता है और पुराने परिसर को हिजली शहीद भवन और नेहरु म्यूजियम ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के रुप में जाना जाता है।

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