जनसत्ता इम्पैक्टः छात्रवृत्ति घोटाले का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, चीफ जस्टिस की बेंच सुनवाई को तैयार
देश में अनुसूचित जाति के छात्रों की दशमोत्तर( पोस्ट मैट्रिक) छात्रवृत्ति में हुए भारी घोटाले का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के सामने यह मामला उठा तो उनकी अध्यक्षता वाली बेंच ने अगले हफ्ते से सुनवाई का फैसला लिया है। 10 अगस्त को जनसत्ता डॉटकॉम की रिपोर्ट के बाद यह मामला सुर्खियों में आया था। जनसत्ता में प्रकाशित खबर और कैग रिपोर्ट के आधार पर वरिष्ठ वकील एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सीबीआई जांच की मांग की है। शर्मा के मुताबिक सिर्फ पांच राज्यों की नमूना जांच में ही इतने बडे खेल का खुलासा हुआ है तो सामान्य और ओबीसी वर्ग की छात्रवृत्तियों की सभी राज्यों में जांच हो तो यह देश का सबसे बड़ा घोटाला हो सकता है।
याचिकाकर्ता ने सु्प्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच की मांग करते हुए दोषियों के खिलाफ मुकदमे और गिरफ्तारी की मांग की है। याची एमएल शर्मा ने कहा है कि चूंकि यह दलित छात्रों के नाम पर धनराशि डकारे जाने का मामला है, इस नाते सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय से लेकर राज्यों और शिक्षण संस्थानों के जिम्मेदारों के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट का मुकदमा भी दर्ज होना चाहिए।जनसत्ता डॉटकॉम से बातचीत में वकील शर्मा ने बताया कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस एएन खानविलकर की बेंच अगले हफ्ते से इस गंभीर मामले की सुनवाई को राजी हुई है। शर्मा ने कहा कि जनसत्ता की खबर पढ़ने के बाद उन्होंने इस मसले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाकर जिम्मेदारों पर कार्रवाई के मकसद से जनहित याचिका दाखिल करने का फैसला लिया।
क्या है मामलाः जनसत्ता ने 10 अगस्त को ‘आंख मूंदकर बांटे 18 हजार करोड़, SC छात्रों के नाम पर देश में बड़ा छात्रवृत्ति घोटाला’-शीर्षक से एक्सक्लूसिव रिपोर्ट पेश की। जिसमें यूपी, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु और कर्नाटक में कैग की ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर बड़े घोटाले का खुलासा हुआ। रिपोर्ट में बात सामने आई कि पांच साल में आंख मूंदकर इन राज्यों में 18 हजार करोड़ रुपये से अधिक की छात्रवृत्ति बंटी। न नियमों का ख्याल किया गया, न उपभोग प्रमाणपत्र(यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट) लिए गए, न ही किसी तरह की जांच हुई।187581 छात्रों के खाते में तो तय रकम से कहीं ज्यादा 4967.19 लाख रुपये भेज दिए गए। वर्ष 2018 की रिपोर्ट नंबर 12 में उजागर हुई इन गड़बड़ियों पर जब जनसत्ता ने रिपोर्ट पेश की तो बड़े घोटाले का मामला जनता के सामने आया। रिपोर्ट को पढ़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट के वकील एमएल शर्मा ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच के सामने इस मामले को उठाया तो बेंच ने अगले हफ्ते से सुनवाई की बात कही है।
एक सर्टिफिकेट पर 1.76 लाख छात्रों को भेज दिया पैसाः गड़बड़ियां ऐसी हुई कि कोई माथा पकड़ ले। मिसाल के तौर पर उत्तर प्रदेश में ही 2012 से लेकर 2017 में कुल 1.76 लाख ऐसे मामले पकड़ में आए, जिसमें एक ही क्रमांक के जाति प्रमाणपत्र पर 233.55 करोड़ रुपये बांटने का खुलासा हुआ। इसी तरह 34652 केस ऐसे मिले, जिसमें अभ्यर्थियों के आवेदन में एक ही क्रमांक यानी सेम हाईस्कूल की सर्टिफिकेट लगी रही। ऐसे आवेदनों पर 59.79 करोड़ रु जारी हुए। इसी तरह 13303 ऐसे मामले रहे, जिसमें एक ही बोर्ड रोल नंबर और एक ही जाति प्रमाण पत्र से 27.48 करोड़ का खेल हुआ। उत्तर प्रदेश में 57 मामले पकडे गए, जहां ज्यादा इनकम वाले सर्टिफिकेट पर भी धनराशि जारी कर दी गई। जबकि दो लाख से ज्यादा सालाना वार्षिक आय होने पर लाभ नहीं मिलना था। पांच राज्यों में 187581 छात्रों को 4967.19 लाख रुपे का अधिक भुगतान हुआ। बीए, बीएससी, बीकॉम जैसे कोर्स के लिए अधिकतम फीस 5000 रुपये निर्धारित थी, मगर इससे ज्यादा पैसा लुटाया गया।।
कैग ने इतने जिलों की नमूना जांचः देश की सबसे बड़ी ऑडिट एजेंसी ने उत्तर प्रदेश के 75 में से सिर्फ दस जिलों के सौ कॉलेजों की जांच कर ही बड़ी गड़बड़ी पकड़ी। इसी तरह कर्नाटक के 30 में से आठ, महाराष्ट्र के 36 में से नौ, पंजाब के 22 में से छह, तमिलनाडु के 32 में से आठ जिलों के कुल 12900 में से 410 संस्थानों को जांच में शामिल किया। इन संस्थानों में रजिस्टर्ड 337700 में से 8200 अभ्यर्थियों के आवेदनों की जांच की गई। तब जाकर भारी पैमाने पर घोटाले का खुलासा हुआ। यूपी के कॉलेजों में नमूना जांच सत्र 2016-17 में हुई। यूपी में छात्रृवत्ति घोटाले की कई बार शिकायतें कर चुके पूर्वांचल विश्वविद्यालय से जुड़े शिक्षक नेता अनुराग मिश्रा कहते हैं-यह तो नमूना है, अगर यूपी में शुरुआत से लेकर अब तक सभी वर्गों की छात्रवृत्ति वितरण की जांच हो तो सिर्फ एनआरएचएम घोटाले से कई गुना बड़ा घोटाला निकलेगा। अनुराग कई बार यूपी सरकार को जांच के लिए पत्र लिखते रहे, मगर जांच कूड़ेदान में फेंक दी जाती रही।