‘सत्‍ता का लालची’ कहने पर भड़के थे वाजपेयी, कहा था- पार्टी तोड़ कर सरकार बनानी पड़ी तो ऐसी सत्‍ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा

देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जिंदगी के कई ऐसे प्रसंग हैं, जो लोगों के जेहन में आज भी ताजा है। ऐसा ही एक प्रसंग है कि जब उनके उपर सत्ता का लालची होने का आरोप लगाया था, तो उन्होंने संसद में कहा था कि मुझे ‘सत्ता का लालची’ बताया गया है। मैं बता दूं कि यदि मुझे पार्टी तोड़ कर सरकार बनानी पड़ी तो ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा। सदन में अटल जी ने कहा था कि, “मुझ पर आरोप लगाया गया है। आरोप यह है कि मुझे सत्ता का लोभ हो गया है और मैंने पिछले 10 दिन में जो कुछ किया है, वह सब सत्ता के लोभ के कारण किया है। अभी थोड़ी देर पहले मैंने उल्लेख किया कि 40 साल से सदन का सदस्य हूं। सदस्यों ने मेरा व्यवहार देखा है। मेरा आचरण देखा है। जनता दल के मित्रों के साथ मैं सत्ता में भी रहा हूं। कभी हम सत्ता के लोभ से गलत काम करने के लिए तैयार नहीं हुए।”

उन्होंने आगे कहा कि, “यहां शरद पवार और जसवंत सिंह दोनों बैठे हैं। जसवंत सिंह कह रहे थे कि किस तरह से शरद पवार ने अपनी पार्टी तोड़कर मेरे साथ सरकार बनाई थी। सत्ता के लिए बनाई थी या महाराष्ट्र के भले के लिए बनाई थी, ये अलग बात है। मगर उन्होंने अपनी पार्टी तोड़कर मेरे साथ सहयोग किया। मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया। बार-बार चर्चा में यह सुनाई दिया है कि वाजपेयी तो अच्छे हैं, लेकिन उनकी पार्टी ठीक नहीं है।” उनके इस बयान पर सदन में मौजूद सांसदों ने कहा कि यह सही बात है। इसके बाद वाजपेयी जी ने आगे कहा कि, “पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन कर के अगर सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा। भगवान राम ने कहा था कि मैं मृत्यु से नहीं डरता। डरता हूं तो बदनामी से डरता हूं।”

अटल जी एक कुशल राजनीतिज्ञ, प्रशासक, भाषाविद, कवि, पत्रकार और लेखक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने सदा अपने बेबाक भाषण से विरोधियों को जवाब दिए, चाहे वह पाकिस्तान अौर अमेरिका के रिश्ते की बात हो या फिर पोखरण परीक्षण की। उन्होने देश के मुख्यमंत्रियों को राजधर्म का पालन करने की सलाह दी और कहा कि मैं भी इसका पालन करता हूं।

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