पहला उद्योग दिवस: छात्रों ने पेश किए 25 उत्पाद और करीब 250 पोस्टर

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) दिल्ली में शनिवार को पहला उद्योग दिवस आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में 150 से अधिक उद्योगों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।  आइआइटी दिल्ली के निदेशक प्रोफेसर वी रामगोपाल राव ने बताया कि हमारे छात्र बेहतर शोध कर रहे हैं और इसे समाज तक ले जाने की जिम्मेदारी उद्योगों की है। उद्योग दिवस में प्रतिनिधियों ने काफी उत्साह के साथ हिस्सा लिया है। इस दौरान आइआइटी के विद्यार्थियों ने अपने शोध कार्यों को प्रतिनिधियों के सामने रखा। इस मौके पर आइआइटी के छात्रों ने रक्षा, पर्यावरण, सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं, स्मार्ट सिटी और ऊर्जा से संबंधित 25 उत्पाद student Display 25 project at industry  dayप्रदर्शित किए गए थे। नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके सारास्वत ने बीजक वक्तव्य दिया। उन्होंने इस दौरान उद्योगों और संस्थानों के बीच तालमेल के बहुत सारे लाभ गिनवाए और इस तरह के आयोजनों को प्रोत्साहित करने को कहा।

सभी द्रवों का परीक्षण करने वाला मीटर
आइआइटी दिल्ली के इंक्युबेशन सेंटर की एक कंपनी टेस्टराइट ने सभी तरह तरल पदार्थों की जांच करने के लिए ‘स्पेक्ट्रोस्मार्ट’ मीटर बनाया है। 35 हजार रुपए की कीमत वाले इस उपकरण के साथ एक सॉफ्टवेयर भी दिया जाता है। स्पेक्ट्रोस्मार्ट सॉफ्टवेयर की मदद से कुछ ही मिनटों में तरल पदार्थ के परीक्षण के परिणाम दे देता है। इसका उपयोग प्रयोगशालाओं और जल निगम में किया जा सकता है। कंपनी के साथ जुड़े अभिषेक ने बताया कि हमने आइआइटी रुड़की व कुछ कॉलेजों की प्रयोगशालाओं के लिए यह मीटर उपलब्ध कराया है। वह जल्द ही दिल्ली जल बोर्ड को भी इसे उपलब्ध कराने वाले हैं। कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी शुभम् राठौर ने बताया कि हमें इस तकनीक के लिए तीन पेटेंट भी मिल चुके हैं। उन्होंने बताया कि इस मीटर का अधिकतर इस्तेमाल पानी और मिट्टी की जांच के लिए किया जाता है। टेस्टराइट को भारत सरकार से 40 लाख रुपए का पुरस्कार मिल चुका है।
भट्टी में बदलाव कर चूड़ियां बनाने वालों को दी राहत

आइआइटी के रूरल टेक्नोलॉजी एक्शन ग्रुप (रूटैग) ने भट्टी में बदलाव कर चूड़ियां बनाने वाले राजस्थान के मजदूरों को राहत दी है। इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे एक छात्र सूरज ने बताया कि हमने राजस्थान के भरतपुर में उस क्षेत्र का दौरा किया जहां चूड़ियां बनाने का काम होता है। हमने देखा कि वहां मजदूर पूरे ढर्रे की भट्टियों का इस्तेमाल कर रहे थे जिससे मजदूरों को आंखों और सांस की बीमारियां हो रही थीं। इसके अलावा इन भट्टियों से र्इंधन की भी काफी बर्बादी होती थी। रूटैग ने इन भट्टियों में बदलाव किए। बदलाव के बाद इन भट्टियों से कम गर्मी बाहर आती है। ये भट्टियां 65 फीसद र्इंधन की बचत भी करती हैं।

 

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