विकास बौरा गया है
बुलेट चली। बुलेट चली। बुलेट उनकी। जैकेट हमारी। एक जैकेट के बदले एक बुलेट। सौदा बुरा नहीं। बधाई। मेहमाननवाजी हो तो ऐसी कि मेहमान-मेजबान हर वक्त मुस्कराते दिखें और बटन दबे तो बुलेट चलती दिखे।
चैनलों ने पूरे दिन बुलेट चलाई। लेकिन शाम तक बुलेट बहस में फंस गई। वही मरा-मरा सा समाजवाद कहता कि ट्रेन की पटरी ठीक नहीं की जाती और बुलेट चलाएंगे?एक चैनल पर पत्रकार ज्योति मल्होत्रा ने बीच बहस में यह चुटकी ली कि अगर कोई दिल्ली की जगह अमदाबाद को राजधानी बनाना चाहता है, तो क्या बुराई है! बोर बहस के बीच ऐसे व्यंग्य के लिए बधाई!
अगले रोज प्रमाण के अभाव में ‘छह’ छोड़ दिए गए। जब इतने छूटे जा रहे हैं तो छह और सही! चैनलों के सत्यवादी एंकर न्यायप्रिय हो उठे। बहसें करवाते रहे। इतना भी नहीं समझते कि जो आरोपितों को तकलीफदेह हो, वह झूठा। पहलू खान का मरने से पहले का बयान झूठा। जांच की बात सच्ची। इतना भी नहीं समझते कि पहलू की आई थी। वह उसे ले गई। बेचारे उन नौजवानों का क्या कसूर, जो वीडियो में सड़क पर खेल रहे थे और वे तो बचा रहे थे। वही नहीं बचा। धन्यवाद दीजिए कि उसे मुक्ति मिली! एक बहस में विचारक जी ने प्रबोधा कि जो ‘छह’ को छोड़ दिए जाने से असहमत हैं, अदालत में जा सकते हैं। सलाह देने के लिए आभार सर जी!
इसी शाम एक भक्त चैनल की एंकर ने दस मिनट में बीस बार, कांग्रेस के मनीष तिवारी द्वारा पीएम के प्रति बरती गई ट्वीटी अभद्रता के लिए सीधे पहले कांग्रेस से, फिर सोनिया से और अंतत: मनीष से माफी मांगने की जिद की। माफी क्यों? कांग्रेसी प्रवक्ता कहते: जाओ पहले साक्षी महराज से माफी मंगवाओ, जिन्होंने ये-ये बोला था, तब मेरे भाई तुम जहां कहोगे मैं माफीनामे पर दस्तखत करवा दूंगा! एक चैनल ने कांग्रेस के चाको को बुलाया, तो उन्होंने संघ को दो-चार सुना दी। एंकर ने अंत किया कि इक्यानबे फीसद लोग कांग्रेस से माफी मांगने की मांग कर रहे हैं। मैडम यह तो बता देतीं कि कितनों में से कितने प्रतिशत मांग कर रहे हैं।
रोहिंग्याओं ने भक्त चैनलों को देश बचाने का काम दे दिया। पहले वे कांग्रेस पर दनदनाए कि आने क्यों दिया। सुरक्षा विशेषज्ञ बोले कि ये दीन नहीं हैं, बड़े दुष्ट हैं। इनमें आतंकवादी हैं। एक एंकर बोला कि वापस भेजो तो प्यार से! रोहिंग्या-कहानी का अंत गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने यह कह कर किया कि ये ‘गैरकानूनी’ हैं और हम किसी कानून से नहीं बंधे। जब म्यामां लेने को तैयार है, तो फिर आपत्ति क्या?
बताइए, देश की सुरक्षा सोचें कि ‘शरणागतवत्सल’ बनें?
इकोनॉमी का बंटाढार हो रहा है। एनडीटीवी एक-दो विशेषज्ञों को बुला कर इकोनॉमी के मंद होते जाने पर बहस करवाता रहता है। अब तो सुरजीत भल्ला तक मानने लगे हैं कि इकोनॉमी में ‘स्लोडाउन’ है! एक ने कहा कि यह सब नोटबंदी और जीएसटी की कृपा है कि सब कुछ बैठा जा रहा है, लेकिन सरकारी प्रवक्ता जवाब देने क्यों नहीं आते? कि अचानक कुछ चैनल न्यूज बे्रक करने लगे कि ‘पीएम अरुण जेटली से मिलने वाले हैं’। हम चौंके कि यह उल्टा प्रोटोकॉल क्यों? लिखना था कि अरुण पीएम से मिलने वाले हैं! फिर एक खबर आई कि सरकार इकोनॉमी में पूंजी पंप करने जा रही है!
लेकिन जनता के मिजाज के क्या कहने? गुजरात के ही एक युवा का एक धांसू वीडियो वाइरल हो गया, जिसे एक अंग्रेजी चैनल ने पकड़ा और दिखाया कि उस नौजवान ने एक लाइन में अहंकार से फूली इकोनॉमी के कान के नीचे प्यार से धर दिया। उसने कहा: ‘विकास बौरा गया है’ यानी ‘विकास हैज गॉन क्रेजी’! इसे गुजराती में जिस मुहावरे में कहा गया, उसके श्लेष की तारीफ तो एक भक्त टाइप वक्ता को भी करनी पड़ी! ‘वाई विकास गंदो थयो चे’! अब इसका क्या करें विकास जी?
राहुल अपनी खबर बनाने की क्षमता को जानते हैं। ‘वंशवाद’ के सूत्रीकरण को छोड़ न्यूयार्क में वे बेरोजगारी पर एक लाइन में बोले कि हर रोज भारत में तीस हजार युवक रोजगार की तलाश में निकलते हैं, लेकिन रोजगार मिलता है सिर्फ चार सौ पचास को!देश में हारमनी और सहनशीलता खत्म हो रही है। एक चैनल पर एक भाजपा के पक्षधर जी ने फरमाया कि राहुल को कोई सीरियसली नहीं लेता। उनमें बुद्धिमानी की कमी है।
ऐसा नहीं है महाराज! आज नहीं तो कल राहुल को सीरियसली लेना ही पड़ेगा! ये राहुल कुछ नया है, जो अपनी आत्मालोचना करते हुए आपकी आलोचना कर रहा है कि हम रोजगार न बढ़ा सके तो बेराजगारों ने हटा दिया और यह सरकार भी रोजगार नहीं बना पा रही, इसे भी हटा देंगे! राहुल का तिरस्कार करने की जगह इस लाइन के व्यंजनार्थ को पढ़िए अहंकारी जी!
झूठ का बिजनेस चैनलों में आकर बैठ गया लगता है। एक भक्त एंकर ने अपनी भक्तिभाव को बैलेंस करने के लिए दावा किया कि वह भी 2002 में गुजरात में हिंसा का शिकार हुआ था, तो उसे करेक्ट करने के लिए इंडिया टुडे के राहुल कंवल ने बहस ही करा दी कि इस नई शहादती खबर का सच क्या है? और दूसरे नामी एंकर ने बताया कि जो एंकर अपनी ‘शहादत’ दिखा रहा है वह तो तब गुजरात को कवर करने गया ही नहीं। गुजरात को तो मैं कवर कर रहा था और हिंसा मुझे झेलनी पड़ी। मेरे साथ गया कैमरामैन इसका गवाह है। कैमरामैन ने उसके दावे की तसदीक की! बताइए! इतने नामी एंकर और ऐसा झूठ! तौबा तौबा!
और कैसी भयावह विडंबना है कि इधर एक नामी एंकर अपने दाम बढ़ाने के लिए झूठ बेचता है, उधर त्रिपुरा में एक युवा टीवी पत्रकार की कवर करने के लिए नृशंस हत्या कर दी जाती है!