डूब रहे जंगी बेड़ा को नही छोड़ा और लड़ते हुए जहाज के साथ ले ली जल समाधि, ये है कैप्टन मुल्ला की वीर गाथा
जिम्मेदारी जीवन से बड़ी होती है और उससे बड़ा देश, यही भावना उस वक्त भारत के महान सपूत, भारतीय नौसेना के अधिकारी और आईएनएस खुकरी के कप्तान महेंद्र नाथ मुल्ला की रही होगी जब उन्होंने जान बचाने का मौका छोड़कर डूबते हुए अपने जहाज के साथ समंदर में जल समाधि ले ली थी। उनका वह फैसला आज भी शोध का विषय बना हुआ है और यह मान लिया जाता है कि कप्तान ने नौसेना परंपरा को निभाते हुए ऐसा कदम उठाया। 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच जंग छिड़ी थी। जंग में भारत पाकिस्तान पर भारी था। भारतीय नौसेना के दो जंगी जहाज आईएनएस खुकरी और आईएनएस कृपाण को पाकिस्तानी पनडुब्बी हैंगर को नेस्तनाबूत करने की जिम्मेदारी दी गई थी। दोनों जंगी जहाजों के कमांडिंग कप्तान महेंद्र नाथ मुल्ला थे। अरब सागर में दीव के करीब भारतीय युद्धपोत हैंगर को निशाना बनाने के लिए बढ़ रहे थे। खुकरी और कृपाण दोनों ही ब्रिटिश कालीन जहाज थे जिनके मुकाबले पाकिस्तान की फ्रेंच पनडुब्बी हैंगर आधुनिक थी।
9 दिसंबर 1971 को हैंगर ने कृपाण पर टारपीडो फायर किया लेकिन वह निशाने न लगकर कृपाण के हल पर लगा जिससे वह डूबा तो नहीं लेकिन समंदर में वहीं ठहर गया। हैंगर ने खुकरी को निशाना बनाया और भारतीय युद्धपोत के ईंधन टैंक पर दो टारपीडो से धमाका कर दिया। देखते ही देखते मौत का मंजर नजर आने लगा। तेल फैलने पर समंदर में भी आग लगी थी, जहाज में तेजी पानी भर रहा था। कप्तान मुल्ला को पता था कि जहाज डूब जाएगा, उन्होंने जहाज को खाली करने का आदेश दिया और अपनी लाइफ जैकेट भी एक जूनियर को थमा दी। उस त्रासदी में बचने वाले लोगों में से एक रिटायर्ड कमांडर एसएन सिंह ने टीओआई को उस भयानक मंजर की दास्तान सुनाई। सिंह ने बताया कि रात के 8:45 बज रहे थे, आकाशवाणी समाचार के प्रसारण के ठीक बाद पीएनएस हैंगर के दो टारपीडो ने जहाज पर हमला किया। मुल्ला को अहसास हुआ कि जहाज को नहीं बचाया जा सकता है तो उन्होंने उसे खाली करने का आदेश दिया।
उस प्राण हरने वाली रात में 6 अधिकारी और 61 नौसैनिक ही जान बचा पाए थे। 18 अधिकारियों और 178 जवानों ने जल समाधि ली थी जिनमें कैप्टन मुल्ला भी थे। उस भयानक मंजर से निकलने वालों के लिए सबसे मार्मिक पल वह था जब उन्होंने देखा कि जहाज के पुल पर एक कुर्सी पर 45 वर्षीय कैप्टन मुल्ला बैठे थे, जहाज डूब रहा था और वह सिगरेट के कश मार रहे थे। नौसेना की परंपरा को सर्वश्रेष्ठ रूप से गले लगाते हुए मुल्ला ने खुद को बचाना मुनासिब नहीं समझा। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से ताल्लुक रखने वाले कैप्टन मुल्ला को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था और उनकी वीरता की कहानी हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गई जो कयामत तक नौसैनिकों में जिम्मेदारी की प्रेरणा भरती रहेगी।