केरल सरकार की गलतियों के चलते आई भीषण बाढ़, एक्सपर्ट ने पहले ही दी थी चेतावनी
कई दशक बाद केरल के लोगों को विनाशकारी बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है। पश्चिमी घाटों के संरक्षण पर ऐतिहासिक रिपोर्ट लिखने वाले लेखक ने रविवार को बताया कि राज्य सरकार और स्थानीय अधिकारियों ने पर्यावरण कानूनों का पालन किया होता तो इतनी बड़ी आपदा नहीं आती। 2010 में पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा गठित पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल की अध्यक्षता करने वाले वैज्ञानिक माधव गाडगील ने कहा कि केरल में इस समस्या का कम से कम एक हिस्सा “मानव निर्मित” है। डॉ. गडगील ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा कि, “हां, मूसलाधार बारिश की वजह से बाढ़ की स्थिति पैदा हुई है। लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि राज्य ने पिछले कई सालों से विकास प्रक्रिया की वजह से इस तरह की घटनाओं से निटपने की अपनी क्षमता से समझौता किया है। आज हम जो देख रहे हैं, यह उसी का परिणाम है। यदि उचित कदम उठाए गए होते तो इस तरह की आपदा नहीं आती।”
2011 में प्रस्तुत अपनी विस्तृत रिपोर्ट में, गाडगील पैनल ने पारिस्थितिक रूप से कमजोर पश्चिमी घाट क्षेत्र के प्राकृतिक पर्यावरण संरक्षण के उपायों पर सुझाव दिया था। रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि केरल समेत छह राज्यों में फैले पूरे पश्चिमी घाटों को पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील घोषित किया जाए। घाटों के क्षेत्रों में पारिस्थितिक संवेदनशीलता के तीन स्तरों को आवंटित किया था। कमेटी ने क्षेत्र में कुछ नई औद्योगिक और खनन गतिविधियों पर कड़ाई से रोक लगाने की सिफारिश की थी। स्थानीय समुदायों और ग्राम पंचायतों के परामर्श से कई अन्य “विकास” कार्यों के लिए कड़े कानून बनाने को कहा था। सभी छह राज्यों की सरकार को यह रिपोर्ट दी गई थी। इसके बाद पर्यावरण मंत्रालय ने अंतरिक्ष वैज्ञानिक के कस्तुरिरंगन की अध्यक्षता में एक अौर पैनल का गठन किया। इस पैनल को गाडगिल कमेटी की रिपोर्ट की जांच का जिम्मा दिया गया। इस कमेटी का गठन राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए आपत्तियों और दूसरों से प्राप्त प्रतिक्रियाओं पर विचार करते हुए किया गया था। कस्तुरिरंगन कमेटी ने 2013 में अपनी रिपोर्ट जमा किया, जिसमें यह बताया गया था कि पश्चिमी घाटों में से केवल एक तिहाई को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील माना जा सकता है।
राज्य सरकारों के साथ लंबी परामर्श के बाद, पर्यावरण मंत्रालय ने पिछले साल पश्चिमी घाटों के लगभग 57,000 वर्ग किलोमीटर को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया। इस क्षेत्र में सभी खनन गतिविधियों, बड़े निर्माण, थर्मल पावर प्लांट और अत्यधिक प्रदूषण करने वाले उद्योगों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। राज्य सरकार ने कस्तुरिरंगन कमेटी की रिपोर्ट को आधार बना 13108 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल पर सवाल उठाया, जिसके बाद केरल के सिर्फ 9993 वर्ग किलोमीटर को चिन्हित किया गया।
गडगिल ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि, “वास्तव में इस रिपोर्ट पर कोई सवाल नहीं है, लेकिन इसे स्वीकार नहीं किया जा रहा है। यदि सरकार ने कानून का पालन किया होता या वहां एक अच्छी शासन व्यवस्था होती, तो आपदा की भयावहता कम होती।” वे आगे कहते हैं कि, “दुर्भाग्यवश, हमारी राज्य सरकारें किसी भी पर्यावरण कानून को लागू नहीं करना चाहती है। हमारी सिफारिशें कानून-पालन करने वाले समाज में स्वीकार की जाती हैं। दुर्भाग्यवश, हमारे पास एक कानूनहीन समाज और बेहद खराब शासन है।” उन्होंने इस दौरान विशेषतौर पर केरल में बढ़ते खनन गतिविधि व अवैध निर्माण ओर इशारा किया। उन्होंने बताया कि इन वजहों से केरल और उत्तराखंड दोनों राज्य एक समान रूप से बर्बाद हो रहे हैं। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की जा रही है, जिस पर रोक लगनी चाहिए।