उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के अस्तित्व पर संकट: आधे से ज्यादा पाठ्यक्रम हुए रद्द और छात्र-छात्राओं का भविष्य अधर में
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की कमेटी डिस्टेंस एजुकेशन ब्यूरो (डेब) ने इस विश्वविद्यालय से संचालित 77 पाठ्यक्रमों में से 45 पाठ्यक्रमों की मान्यता अहर्तायें पूरी न करने के कारण रद्द कर दी हैं। डेब ने इस विश्वविद्यालय के जिन पाठ्यक्रमों को मान्यता दी है उनमें बीबीए, बीसीए, बीएड, बीए आदि विषय शामिल हैं। डेब ने जिन 45 पाठ्यक्रमों की मान्यता रद्द की है उनमें प्रमुख रूप से एमए, हिंदी, राजनीति विज्ञान, अथर्शास्त्र, इतिहास, मनोविज्ञान, अंग्रेजी, समाजशास्त्र, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, गृह विज्ञान, बी कॉम शामिल हैं। इस विश्वविद्यालय में इस समय विभिन्न संकायों में कार्यरत सहायक प्राध्यापकों, प्रोफेसरों और शैक्षणिक सलाहकारों की कुल संख्या 53 हैै, जिनमें 28 सहायक प्राध्यापक, 19 शैक्षणिक सलाहकार और छह प्रोफेसर शामिल हैं।
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय का मुख्यालय सूबे के कुमांऊ मंडल के नैनीताल जिले के हल्द्वानी शहर में है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना नवंबर 2005 में हुई थी। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के 72 पाठ्यक्रमों को मान्यता नहीं मिलने से करीब 30 हजार से ज्यादा छात्र-छात्राओं का भविष्य अधर में लटक गया है। साथ ही सैकड़ों शिक्षक-शिक्षिकाओं की नौकरी पर भी संकट आ गया है। इसके अलावा इस विश्वविद्यालय के राज्य में चल रहे 242 अध्ययन केंद्रों के सामने भी अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है। साथ ही विश्वविद्यालय के आठ क्षेत्रीय केंद्र भी प्रभावित होंगे। इस समय यह विश्वविद्यालय जो आठ क्षेत्रीय केंद्र संचालित हो रहा है, उनमें देहरादून, रुड़की, पौड़ी, उत्तरकाशी, हल्द्वानी, रानीखेत, पिथौरागढ़ और बागेश्वर शामिल हैं।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सूत्रों के मुताबिक उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के 45 पाठ्यक्रमों की मान्यता मानक पूरे न करने के कारण रद्द की गई। आयोग के नियमों के अनुसार डेब कमेटी विश्वविद्यालय और उससे संबंधित कॉलेजों या अध्ययन केंद्रों का निरीक्षण करती है। निरीक्षण के दौरान डेब कमेटी इन अध्ययन केंद्रों और विश्वविद्यालय के संसाधनों, शिक्षकों की स्थिति और पाठ्यक्रमों के स्तरों का अध्ययन करती है। मानक पूरे न होने पर निरीक्षण कमेटी संबंधित विषयों की मान्यता रद्द कर देती है। इस समय उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में कुल मिलाकर 68 से 77 हजार छात्र विभिन्न अध्ययन केंद्रों के माध्यम से विभिन्न विषयों में अध्ययनरत हैं। हर साल इस विश्वविद्यालय में लगभग 30 हजार छात्र प्रवेश लेते हैं। 10 अगस्त तक विश्वविद्यालय के सभी पाठ्यक्रमों प्रवेश प्रक्रिया संपन्न हो जानी चाहिए थी। परन्तु विश्वविद्यालय की लापरवाही के कारण 72 पाठ्यक्रमों को मान्यता न मिलने के कारण इस साल नए दाखिले शुरू नहीं हो पाए हैं। इससे इस साल दाखिला लेने वाले छात्र-छात्राओं का भविष्य चौपट होता दिखाई दे रहा है।
वहीं उत्तराखंड विश्वविद्यालय के प्रशासन का कहना है कि विश्वविद्यालय में पहले से ही अध्ययनरत छात्र-छात्राओं के भविष्य पर 45 पाठ्यक्रमों को मान्यता नहीं मिलने का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। परेशानी नया प्रवेश लेने वाले छात्र-छात्राओं के भविष्य को लेकर है। उत्तराखंड सरकार ने राज्य के हेमवती नन्दन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय तथा कुमांऊ विश्वविद्यालय की व्यक्तिगत परीक्षाओं की व्यवस्था कई सालों से बंद कर रखी है और उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय ही व्यक्तिगत परीक्षा देने वाले छात्रों के लिए पढ़ाई का सबसे बड़ा केन्द्र बन गया है। इस कारण यहां छात्रों की तादाद एक लाख से ऊपर पहुंच गई है। अब नए प्रवेश लेने वाले छात्रों के सामने पढाई का संकट खड़ा हो गया है।
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो0 आरसी मिश्र के मुताबिक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने 77 पाठ्यक्रमों में से केवल 45 पाठ्यक्रमों की मान्यता प्रदान नहीं की है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने 45 पाठ्यक्रमों को पुन: मान्यता प्रदान दिलाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं। इनके लिए प्रत्यावेदन तैयार कर विश्वविद्यालय के कुलपति के माध्यम से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को भेजा जा चुका है। शिक्षाविद् डॉ. अवनीति कुमार घिल्डियाल का कहना है कि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के प्रशासन के लापरवाह रवैये के कारण ही प्रदेश के दूरदराज के छात्र-छात्राओं का उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सपना चकनाचूर होता दिखाई दे रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को इस मामले में दखल देकर छात्र हित में कोई निर्णय लेना चाहिए।
उत्तराखंड के उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत का कहना है कि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कई पाठ्यक्रमों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से मान्यता न मिलने का मामला राज्य सरकार प्राथमिकता के आधार पर देख रही है और संबंधित अधिकारियों को इस मामले में आवश्यक दिशा निर्देश दिए गए हैं। छात्रों के भविष्य पर किसी भी सूरत में संकट नहीं आने दिया जाएगा। इस मामले की राज्य सरकार उच्च स्तरीय जांच करा रही है और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
उत्तराखंड की पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री और नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा ह्रदयेश का कहना है कि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुछ पाठ्यक्रमों को मान्यता न मिलना दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे साफ है कि राज्य की भाजपा सरकार सूबे की उच्च शिक्षा व्यवस्था को लेकर बहुत लापरवाह है जबकि केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर भाजपा की सरकारें हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना 13 साल पहले उनके प्रयासों से उनके विधानसभा क्षेत्र हलद्वानी में 2005 में नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने की थी। मौजूदा भाजपा सरकार की गलत नीतियों के कारण इस मुक्त विश्वविद्यालय के अस्तित्व पर संकट खड़ा होने से एक लाख से ज्यादा छात्रों का भविष्य दांव पर लगा हुआ है।