इन पांच मुश्किलों से खतरे में है आप और अरविंद केजरीवाल की राजनीति

जनता ने प्रचंड बहुमत के साथ आम आदमी पार्टी को दिल्‍ली की सत्‍ता सौंपी थी। 70 में से 67 सीटें (अब 66) जीतने के बाद पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने केंद्र प्रशासित क्षेत्र की कमान संभाली थी। आम लोगों को उनसे काफी अपेक्षाएं हैं। केजरीवाल सरकार कुछ मसलों पर जनता की समस्‍या सुलझाने में सफल भी रहे हैं। शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य के क्षेत्र में जमीन पर बदलाव दिखने भी लगे हैं। इस सबके बावजूद अरविंद केजरीवाल के खुद के रवैये और तौर-तरीकों से उनके लिए मुश्किलें खड़ी हुई हैं। इनमें से कुछ समस्‍याएं तो ऐसी हैं, जिससे AAP के साथ ही केजरीवाल के लिए भी खतरा उत्‍पन्‍न हो गया है। इनमें से ये पांच मुश्किलें बेहद अहम हैं।

एक-एक कर साथ छोड़ रहे साथी: वयोवृद्ध गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता अन्‍ना हजारे के भ्रष्‍टाचार के खिलाफ किए गए आंदोलन को समाज के हर तबके का समर्थन मिला था। आंदोलन के खत्‍म होने के बाद आम आदमी पार्टी का गठन किया गया था। इसमें अरविंद केजरीवाल के साथ ही शांति भूषण, प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई थी। केजरीवाल से मनमुटाव के कारण तीनों संस्‍थापक सदस्‍यों को पार्टी छोड़नी पड़ी थी। इन्‍होंने सीएम केजरीवाल पर मनमाने और स्‍वयंभू तरीके से फैसले लेने का आरोप लगाया था। अरविंद केजरीवाल ने भी पलटवार किया था। पार्टी के एक अन्‍य संस्‍थापक सदस्‍य कुमार विश्‍वास भी हाशिये पर हैं। इसके बाद 15 अगस्‍त के दिन AAP के महत्‍वपूर्ण सदस्‍य आशुतोष ने भी पार्टी छोड़ने की घोषणा कर दी थी। इसके एक सप्‍ताह बाद ही केजरीवाल के एक अन्‍य निकट सहयोगी आशीष खेतान ने भी सक्रिय राजनीति से अलग होने का ऐलान कर दिया। एक-एक कर पार्टी के दिग्‍गज नेताओं के साथ छोड़ने से अरविंद केजरीवाल की साख पर तो सवाल उठे ही, साथ ही उनकी और पार्टी की मुश्किलें भी बढ़ गईं।
ताबड़तोड़ माफी मांगने से अंदरखाने नाराजगी: सीएम केजरीवाल और AAP के अन्‍य नेताओं ने बीजेपी, कांग्रेस के साथ ही अन्‍य दलों के नेताओं पर कई तरह के गंभीर आरोप लगाए थे। इसे चुनावी मुद्दा भी बनाया गया था। इनमें से कई नेताओं ने मानहानि का मुकदमा ठोक दिया था। मामले को खत्‍म करने के लिए मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उप मुख्‍यमंत्री मनीष सिसोदिया, सांसद संजय सिंह समेत अन्‍य ने संबंधित नेताओं से लिखित में माफी मांग ली थी। केजरीवाल ने इस क्रम में अकाली नेता और पंजाब के पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया से भी मांफी मांगी थी। पार्टी के कई नेताओं ने खुलेआम गुस्‍सा जाहिर किया था। खासकर पंजाब इकाई के कुछ नेताओं ने तो बगावत कर दी। इसे शांत करने के लिए उप मुख्‍यमंत्री मनीष सिसोदिया ने पार्टी की बैठक भी बुलाई थी, जिसमें सिर्फ 10 विधायक ही पहुंचे थे। सुखपाल सिंह खैहरा और कंवर सिद्धू जैसे वरिष्‍ठ नेताओं ने शिरकत ही नहीं की थी। खैहरा ने बाद में AAP के केंद्रीय नेतृत्‍व के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया।
कानूनी झगड़ों में उलझी सरकार: ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले में AAP विधायकों को राहत मिलने के बाद पार्टी का शीर्ष नेतृत्‍व एक बार फिर से मुश्किलों में घिर गया है। मुख्‍य सचिव अंशु प्रकाश से मारपीट के मामले में दिल्‍ली पुलिस मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ ही उप मुख्‍यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ पटियाला हाउस कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर चुकी है। इन दोनों के अलावा 11 अन्‍य विधायकों का नाम भी शामिल है। ऐसे में अब सबकुछ कोर्ट पर निर्भर है। कोर्ट द्वारा इस मामले में आरोप तय करने से सीएम केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इसके साथ ही पार्टी के लिए भी गंभीर समस्‍या उत्‍पन्‍न हो जाएगी। इसके अलावा शासन-प्रशासन से जुड़े भी कई ऐसे मसले हैं जो कोर्ट में लंबित हैं।
हर मुद्दे पर केंद्र से टकराव: केजरीवाल का तकरीबन हर मुद्दे पर केंद्र सरकार से टकराव होता है। फिर चाहे वह पुलिस-प्रशासन का मसला हो या ट्रांसफर-पोस्टिंग की बात। सीएम केजरीवाल अक्‍सर केंद्र पर दिल्‍ली सरकार को काम न करने देने का आरोप लगाते रहते हैं। वह कई मौके पर ऐसे आरोप लगा चुके हैं क‍ि केंद्र की मोदी सरकार उपराज्‍यपाल के बहाने दिल्‍ली पर शासन करना चाहती है। मांगों को मनवाने के लिए केजरीवाल अपने वरिष्‍ठ सहयोगियों के साथ उपराज्‍यपाल के आवास में धरना भी दे चुके हैं। उनके इस रवैये से दिल्‍ली का सामान्‍य कामकाज तो प्रभावित होता ही है, पार्टी के अंदरखाने भी सवाल उठाए जाते हैं।
दूसरे प्रांतों में पैर जमाने में विफलता: AAP को दिल्‍ली के अलावा पंजाब में बड़ी सफलता मिली है। पार्टी ने यूपी, बिहार, गुजरात, कर्नाटक जैसे राज्‍यों में भी पैर पसारने की कोशिशें कीं, लेकिन पूरी तरह से नाकाम रही। पंजाब में पार्टी के अंदर भारी असंतोष है और पार्टी दो फाड़ हो चुकी है। हाल में हुए राजनीतिक घटनाक्रम से केजरीवाल और पार्टी के लिए नई मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। एक तरफ जहां सफलता मिली है वहां असंतोष के सुर उभर रहे हैं और दूसरी तरफ नए राज्‍यों में पार्टी अब भी सफलता की बाट जो रही है।

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