एमपी: 80 सीटें कांग्रेस की राह में अटका रही रोड़ा? 25 साल से नहीं जीती ये 24 सीटें!
मध्य प्रदेश में विधान सभा चुनाव इस साल के अंत तक होने हैं। इसलिए सभी राजनीतिक दल सियासी नफा-नुकसान का समीकरण बैठाने में जुटे हैं। पिछले 15 सालों से कांग्रेस राज्य की सत्ता से दूर है और इस बार सत्ता में वापसी के लिए पार्टी नेता कड़ी मेहनत कर रहे हैं मगर 230 सदस्यों वाली विधान सभा में 80 सीटें ऐसी हैं जो कांग्रेस के मिशन मध्य प्रदेश में रोड़ा अटका रही है। ‘द न्यू इंडियान एक्सप्रेस’ के मुताबिक इन 80 सीटों में से 50 पर कांग्रेस पिछले दो-तीन विधान सभा चुनाव हारती रही है। यहां तक कि 24 ऐसी सीटें हैं जिन पर कांग्रेस ने पिछले 25 साल से जीत का स्वाद नहीं चखा है। यानी जब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी तब भी (1993 और 1998) ये सीटें कांग्रेस के लिए अबूझ पहेली रही हैं। ये 24 सीटें राज्य के 17 जिलों के तहत आती हैं। इन विधान सभा सीटों में हरसुंड और खंडवी भी शामिल है। राज्य के स्कूली शिक्षा मंत्री कुंवर विजय शाह 1990 से लगातार हरसुंड सीट से जीतते आ रहे हैं जबकि भोपाल के गोविंदपुरा से पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बाबूलाल गौर 1980 से लगातार जीतते आ रहे हैं।
कैलाश विजयवर्गीय भी इंदौर-2 सीट से 1993 से 2003 तक जीतते रहे। उनके बाद इस सीट से रमेश मंडोला 2008 और 2013 का चुनाव जीत चुके हैं। इंदौर-4 सीट पर भी 1990 से भाजपा का ही कब्जा रहा है। इसी तरह से भिंड जिले की महगांव सीट, मुरैना जिले की अंबा, शिवपुरी जिले की शिवपुरी और पोहरी, सागर जिले की सागर और रेहली, सतना जिले की रामपुर बघेलन और रायगांव, रीवा जिले की देव तालाब और त्योंथार, सिहोर जिले की सिहोर और आस्था, अशोक नगर जिले के अशोक नगर, छतरपुर जिले की महाराजपुर, सिवनी जिले की बारघाट, जबलपुर जिले की जबलपुर कैन्ट और होशंगाबाद जिले की सोहागपुर सीटों पर भी लंबे समय से भाजपा उम्मीदवार ही जीतते रहे हैं।
जिन 50 विधान सभा सीटों पर कांग्रेस पिछले दो-तीन चुनावों से हारती रही है उनमें से अधिकांश सेंट्रल एमपी, महाकौशल और मालवा-निमार क्षेत्र में पड़ते हैं। कांग्रेस के एक नेता के मुताबिक पिछले चुनावों में कमजोर उम्मीदवारों की वजह से इन सीटों पर पार्टी की हार हुई है और भगवा पार्टी की जीत होती रही है लेकिन इस बार पार्टी जीताऊ उम्मीदवारों को ही टिकट देने जा रही है। ऐसे में इन 80 सीटों में से कई सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार की जीत तय है। कांग्रेस को शिवराज सिंह चौहान सरकार के खिलाफ उपजे एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर का भी लाभ मिलने की उम्मीद है। बता दें कि 2013 के विधान सभा चुनाव में भाजपा को 165 सीटें मिली थीं जबकि कांग्रेस को 58 और बसपा को चार सीटें मिली थीं।