2021 की जनगणना में होगी ओबीसी की गिनती, मंडल कमीशन लागू होने के 25 साल बाद फैसला

मंडल कमीशन की सिफारिशों के आधार पर अन्‍य पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिए जाने के करीब 3 दशक बाद, 2021 की जनगणना में पहली बार ओबीसी की गिनती होगी। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार (31 अगस्‍त) को इसका ऐलान किया। मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि सिंह ने 2021 की जनगणना के रोडमैन पर चर्चा की, इसी दौरान तय हुआ कि पहली बार ओबीसी का डेटा इकट्ठा किया जाएगा। बैठक में इस बात पर जोर रहा कि जनगणना के तीन सालों के भीतर डेटा को अंतिम रूप दिया जा सके, इसके लिए डिजाइन और तकनीक में सुधार किया जाएगा। इसका अर्थ यह है कि जनगणना डाटा 2024 तक तैयार हो जाएगा, इसी साल आम चुनाव होंगे।

केंद्र के इस फैसले से राजनैतिक पार्टियों की वह मांग खत्‍म हो सकती है कि अंग्रेजों द्वारा 87 साल पहले की गई जाति-आधारित जनगणना के डेटा को अपडेट किया जाए। यूपीए-2 ने यह मांग मानी थी और 2011 में सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना कराई थी। हालांकि 4,893.60 करोड़ रुपये के खर्च पर पूरी हुई इस जनगणना का डेटा सार्वजनिक नहीं किया गया क्‍योंकि भारत के महापंजीयक ने उसमें कुछ ‘निश्चित गलतियां’ पकड़ी थीं।

ओबीसी जनसंख्‍या देश में एक बड़ी राजनैतिक शक्ति के रूप में उभरी है। 2014 में ‘सबका साथ, सबका विकास’ नारे के साथ सत्‍ता में आए एनडीए ने पिछड़ी जातियों के आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाया। केंद्र ने यह घोषणा ओबीसी के उप वर्गीकरण के लिए दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश जी रोहिणी की अगुवाई में एक आयोग बनाने के बाद की है।

मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट में 1,257 जातियों को पिछड़ी माना था और ओबीसी जनसंख्‍या 52 प्रतिशत बताई थी। आयोग की सिफारिश थी कि तब सिर्फ एससी/एसटी को मिलने वाले कोटा को 22.5 फीसदी से बढ़ाकर 49.5 किया जाए ताकि ओबीसी को समाहित किया जा सके। 1990 में जब आयोग की सिफारिशें लागू की गईं तो देशभर में इसके विरोध में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए।

विरोध को शांत करने के लिए सरकार अगड़ी जातियों के ‘आर्थिक रूप से पिछड़े हिस्‍सों’ के लिए 10 प्रतिशत कोटा लेकर आई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दे दिया। इंदिरा साहनी बनाम केंद्र के मामले में फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि संविधान में केवल सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को मान्‍यता दी गई है, आर्थिक को नहीं।

हालांकि अदालत ने ओबीसी आरक्षण को सही ठहराया और क्रीमीलेयर सीमा तय कर दी। एससी/एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय कर दी गई। इस आदेश के आधार पर केंद्र ने केंद्रीय पदों और सेवाओं में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत सीटें आरक्षित कर दीं।

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