बेसहारा बच्चों को घर में पालने पर सरकार देगी आर्थिक मदद, पर शर्त ये है
देश में बेसहारा बच्चों के पारिवारिक माहौल में परवरिश सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) जल्द ही राज्य सरकारों के साथ मिलकर ‘पोषण-देखरेख’ (फॉस्टर केयर) का क्रियान्वयन करेगा। इसके तहत लोग अपने घरों में आठ साल से अधिक उम्र के बच्चों को रखकर उनका पालन-पोषण कर सकेंगे और इसके लिए सरकार की तरफ से इन लोगों को आर्थिक मदद के रूप में हर महीने कुछ निश्चित राशि दी जाएगी। गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने इसी साल मई महीने में बाल गृह में रहने वाले बच्चों के संदर्भ में सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया था कि सरकारें इन बच्चों को फॉस्टर केयर जैसी वैकल्पिक व्यवस्था मुहैया कराने के उपायों पर ‘गंभीरता से विचार करे।’ एनसीपीसीआर ने शीर्ष अदालत के इसी आदेश की पृष्ठभूमि में किशोर न्याय कानून-2015 की धारा 44 के तहत फॉस्टर केयर की एक समुचित रूपरेखा तैयार की है जिसे अगले कुछ दिनों के भीतर एक पुस्तिका की शक्ल में पेश किया जाएगा और इसे सभी राज्यों और जिला प्रशासन के पास भेजा जाएगा ताकि कानून की इस धारा का ‘प्रभावी एवं उचित क्रियान्वयन’ सुनिश्चित हो सके।
आयोग के सदस्य यशवंत जैन ने ‘भाषा’ से कहा, ‘‘किशोर न्याय कानून-2015 में इसका प्रावधान है कि बाल कल्याण समितियां जरूरतमंद बच्चों को बाल गृहों से निकालकर परिवारों में भेजें। उच्चतम न्यायालय ने मई में इसको लेकर एक आदेश दिया था। फॉस्टर केयर का मकसद यह है कि बच्चों को पारिवारिक माहौल मिले जो बाल गृहों में उन्हें नहीं मिल पाता है। ऐसे में सरकार से बात कर रहे हैं और जल्द ही इसका प्रभावी और उचित क्रियान्वयन किया जाएगा।’’ किशोर न्याय कानून-2015 के तहत पोषण-देखरेख के तहत उन्हीं परिवारों में बच्चों को भेजा जाएगा जो जिला बाल कल्याण समितियों के समक्ष पंजीकृत होंगी।
जैन ने कहा, ‘‘बाल कल्याण समितियां परिवारों का पंजीकरण करने से पहले कई चीजों का सत्यापन करेंगी। मसलन, किसी भी परिवार में आठ से ज्यादा सदस्य नहीं होना चाहिए और परिवार में किसी सदस्य का आपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं होना चाहिए। इन परिवारों में आठ साल से अधिक उम्र के जरूरतमंद बच्चों को ही भेजा जाएगा और यह बच्चा 18 साल की उम्र तक रह सकेगा।’’ उनके अनुसार बाल कल्याण समितियों की ओर से बच्चों को पंजीकृत परिवारों में भेजा जाएगा और बच्चों की समुचित देखभाल सुनिश्चित करने के लिए ‘जिला बाल संरक्षण इकाई’ निगरानी करेगी। इस इकाई का प्रमुख जिला अधिकारी होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘फॉस्टर केयर गोद लेने की व्यवस्था से अलग होगा। अगर कोई व्यक्ति फॉस्टर केयर के तहत घर आए बच्चो को गोद लेना चाहता है तो इसके लिए उसे ‘केंद्रीय दत्तक-ग्रहण संसाधन प्राधिकरण :कारा: की प्रक्रियाओं को पूरा करना होगा।’’ जैन ने कहा, ‘‘फॉस्टर केयर की व्यवस्था के तहत बच्चों का पालन-पोषण करने वाले परिवारों को प्रति माह आर्थिक मदद दी जाएगी। यह राशि राज्य सरकारों की ओर से दी जायेगी। शुरुआती तौर पर हमने प्रति बच्चा ढाई हजार रूपये महीने की राशि दिए जाने की सुझाव दिया है। राज्य सरकारें इस राशि को बढ़ा सकती हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इस तरह की किसी व्यवस्था का क्रियान्वयन मुश्किल है लेकिन सरकार, प्रशासन और समाज के साथ मिलकर इसे संभव बनाया जा सकता है।’’