सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग पर राज्यों द्वारा रिपोर्ट न पेश करने पर जताई नाराजगी, एक हफ्ते का दिया समय


सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस बात पर नाराजगी जताई कि 29 राज्यों और सात केंद्रशासित प्रदेशों में से केवल 11 ने भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या और गोरक्षा के नाम पर हिंसा जैसे मामलों में कदम उठाने के शीर्ष अदालत के आदेश को लागू करने के बारे में रिपोर्ट पेश की है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर व न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के पीठ ने ऐसा नहीं करने वाले राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को रिपोर्ट पेश करने का अंतिम अवसर देते हुए चेतावनी दी कि यदि उन्होंने एक हफ्ते के भीतर रिपोर्ट पेश नहीं की, तो उनके गृह सचिवों को अदालत में व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होना पड़ेगा।

इस मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र ने पीठ को सूचित किया कि गोरक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा के मुद्दे पर अदालत के फैसले के बाद भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या करने के बारे में कानून बनाने पर विचार के लिए मंत्रियों के समूह का गठन किया गया है। अदालत कांग्रेस के नेता तहसीन पूनावाला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में राजस्थान में 20 जुलाई को डेयरी किसान रकबर खान की कथित तौर पर पीट-पीटकर हुई हत्या के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले के कथित उल्लंघन का हवाला देते हुए प्रदेश के पुलिस प्रमुख, मुख्य सचिव समेत अन्य अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई करने की मांग की गई थी।

शीर्ष अदालत ने 17 जुलाई को कहा था कि भीड़तंत्र की भयावह हरकतों को कानून पर हावी नहीं होने दिया जा सकता। इसके साथ ही गोरक्षा के नाम पर हिंसा और भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या के मामलों में कई दिशा-निर्देश जारी किए थे। अदालत ने सरकार से कहा था कि इस तरह की घटनाओं से सख्ती से निबटने के लिए वह नया कानून बनाने पर विचार करे।

कोर्ट की नाराजगी
29 राज्यों और 7 केंद्रशासित प्रदेशों में से केवल 11 ने भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या और गोरक्षा के नाम पर हिंसा जैसे मामलों में कदम उठाने के आदेश को लागू करने के बारे में रिपोर्ट पेश की है।

अंतिम चेतावनी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर राज्य और केंद्रशासित प्रदेश एक हफ्ते के भीतर रिपोर्ट पेश नहीं करते, तो उनके गृह सचिवों को सुप्रीम कोर्ट में व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होना पड़ेगा।

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