वोटर माईबाप

अलग ही मिट्टी की बनी हैं शायद ममता दीदी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का अल्पसंख्यक प्रेम हाई कोर्ट की बार-बार लताड़ पड़ने के बावजूद कायम है। हो भी क्यों न? सियासत में वोट बैंक ही तो सत्ता दिलाता है। एक अक्तूबर को मोहर्रम है जिसके मद्देनजर पश्चिम बंगाल सरकार ने उस दिन दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन पर पाबंदी लगा दी। हालांकि विजयादशमी के दिन शाम छह बजे तक विसर्जन की इजाजत दे दी थी। बाद में अदालत ने हस्तक्षेप किया तो समय सीमा बढ़ा कर रात दस बजे की कर दी। पिछले साल भी लगाई थी सरकार ने इसी तरह की पाबंदी। लेकिन हाई कोर्ट ने पाबंदी के फैसले तुष्टीकरण का प्रयास बता सरकार को जमकर फटकारा था। इस बार फिर मामला कोलकाता हाई कोर्ट में पहुंच गया है। हाई कोर्ट ने सरकार से सवाल किया है कि हिंदू-मुसलमान दोनों अपने त्योहार एक साथ क्यों नहीं मना सकते? अदालत ने बात पते की कही। एक तरफ तो ममता सरकार सूबे में सांप्रदायिक सद्भाव कायम रहने का दावा करती है। दूसरी तरफ खुद ही पाबंदी लगा दोनों तबकों में दरार पैदा कर रही है। लिहाजा फिर कहना पड़ा है हाई कोर्ट को कि दोनों तबकों के बीच भेदभाव पैदा करने का कम से कम सरकार को तो प्रयास नहीं करना चाहिए।

दरअसल भाजपा और आरएसएस ने ममता सरकार के फैसले को असंवैधानिक ही नहीं, हिंदुओं का अपमान तक बताया था। विवाद बढ़ा तो सरकार ने आरएसएस और ऐसे ही दूसरे हिंदू संगठनों को दुर्गा पूजा के अवसर पर सौहार्द नहीं बिगाड़ने की चेतावनी दी थी। साथ ही विसर्जन के मुद्दे पर अफवाह फैलाने का आरोप अलग जड़ दिया था। हाई कोर्ट में मामला जनहित याचिकाओं के जरिए पहुंचा है। याचिकाओं में अतीत का उल्लेख है कि कैसे विसर्जन और मोहर्रम के जुलूस एक साथ निकलते थे। लेकिन ममता सरकार ने नई परंपरा शुरू कर दी है। मुहर्रम के मौके पर विसर्जन नहीं करने देने की। लेकिन ममता को अदालती डांट-फटकार की रत्ती भर परवाह नहीं। सवाल वोट बैंक का है तो क्यों बदलें अपनी रणनीति।

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