सड़क पर घायल पड़ी थी महिला, किसी ने नहीं दिया ध्यान, डीएम ने इलाज करवाया, नहीं बची तो चिता को आग भी दी
करीब 70 वर्ष की वह बुजुर्ग महिला न जाने किसकी मां थी। कौन उसके अपने थे, क्या नाम था, गांव-शहर न जाने कहां रहती थी। करीब एक पखवाड़े पहले घायल हाल में एक व्यक्ति को वह सड़क पर लाचार पड़ी मिली। उस व्यक्ति ने अपनी कार में महिला को बिठाया, जिला अस्पताल लेकर गए, वहां भर्ती कराया। रोज उसका हाल-चाल लेने जाते रहे। बीते सोमवार (3 सितंबर) को वह घायल महिला मौत से जंग हार गई तो उसी व्यक्ति ने श्मशान ने महिला की चिता को मुखाग्नि दी। यह व्यक्ति कोई सामान्य शख्सियत नहीं, उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के जिलाधिकारी अनिल कुमार पाठक हैं। कैंट में सरयू किनारे जमथरा घाट पर पाठक को जिसने भी एक गुमनाम महिला के शव का अंतिम संस्कार करते देखा, उसकी आंखें नम हो गईं।
स्थानीय अखबारों में छपी रिपोर्ट के अनुसार, डीएम साहब ने जब महिला को देखा, तब वह बेसुध थीं। डॉक्टरों ने बताया कि उनका जबड़ा टूट गया है, फैजाबाद में इलाज नहीं हो जाएगा। फिर पाठक ने खुद लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के डॉक्टरों से संपर्क किया। एक स्पेशलिस्ट डॉक्टर फैजाबाद आए। पाठक ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ”जिस महिला को लावारिस छोड़ दिया गया, एक इंसान होने के नाते यह मेरा कर्तव्य था मैं उनका वारिस बनूं। मैं नहीं जानता कि उन्हें चोट कैसे लगीं। इलाज के दौरान कोई उनसे मिलने नहीं आया। किसी पुलिस थाने में गुमशुदगी की कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई थी। मुझे लगा कि उन्हें गरिमापूर्ण विदाई देना मेरी ड्यूटी होगा।”
पाठक की दरियादिली अक्सर सुर्खियां बनती रही हैं। सिंतबर, 2017 में कार्यभार संभालने के बाद सर्दियों में वह एक बुजुर्ग महिला की मदद को आगे आए थे। वह महिला उनके कार्यालय आई थी। पाठक ने अपनी मां की तरह उनकी देखभाल की। उन्होंने कहा, ”मैंने उसे उसके गांव में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर दिलवाया। एक पुरानी पेंशन शुरू कराई और बीपीएल कार्ड बनवा दिया। नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र का एक डॉक्टर रोज उनका चेकअप करने जाता है।”
1994 बैच के पीसीएस अधिकारी पाठक को 2009 में आईएएस कैडर में प्रमोट किया गया। 52 वर्ष के पाठक पीएचडी धारक हैं और किसान परिवार से आते हैं। वह अपने पिता की याद में अवधी भाषा में एक काव्य संग्रह भी लिख चुके हैं।