जसवंतनगर- यहां रावण भी है पूजनीय

रामायण का सबसे क्रूर पात्रों में से एक रावण के बारे मे तरह-तरह की कहानियां सुनने को मिलती है लेकिन इटावा जिले में जसवंतनगर में रावण की पूजा-आरती होती है। यहां रावण के पुतले को जलाया भी नहीं जाता। लोग पुतले की लकड़ियों को अपने घर ले जाते हैं ताकि वे सालभर हर संकट से दूर रह सकें।
ऐसी रामलीला नहीं होती है कहीं  यहां की रामलीला कुछ अलग ढंग की होती है। इसी कारण साल 2010 में यूनेस्को की रामलीलाओं के बारे जारी की गई रिपोर्ट में भी इस रामलीला को जगह दी जा चुकी है। 160 साल से अधिक समय से हो रहीं रामलीलाएं दक्षिण भारतीय शैली में मुखोटा लगाकर खुले मैदान में होती है। त्रिनिदाद की शोधार्थी इंद्राणी बनर्जी करीब 400 से अधिक रामलीलाओं पर शोध कर चुकी हंै, लेकिन उनको जसवंतनगर जैसी रामलीला कहीं भी देखने को नहीं मिली।

जानकार बताते हैं कि यहां रामलीला की शुरुआत 1857 के गदर से पहले हुई थी। यहां रावण, मेघनाथ, कुम्भकरण ताम्बे, पीतल और लौह से निर्मित मुखौटे पहन कर मैदान में लीलाएं करते हैं। शिवजी के त्रिपुंड का टीका भी इनके चेहरे पर लगा होता है।

जसवंतनगर के रामलीला मैदान में रावण का लगभग 15 फुट ऊंचा पुतला नवरात्र की सप्तमी में लग जाता है। दशहरे वाले दिन रावण की आरती उतारी जाती है और जलाने की बजाय रावण के पुतले को मार-मारकर उसके टुकड़े कर दिए जाते हैं और फिर वहां मौजूद लोग उन टुकड़ों को घर ले जाते हैं। जसवंतनगर में रावण की तेरहवीं भी की जाती है।

पुतलों को अपना है अलग महत्त्व

विश्व धरोहर में शामिल जमीनी रामलीला के पात्रों से लेकर उनकी वेशभूषा तक सभी के लिए आकर्षण का केंद्र होती है। भाव भंगिमाओं के साथ प्रदर्शित होने वाली देश की एकमात्र अनूठी रामलीला में कलाकारों द्वारा पहने जाने वाले मुखौटे प्राचीन तथा देखने में अत्यंत आकर्षक होते हैं। इनमें रावण का मुखौटा सबसे बड़ा होता है तथा उसमें दस सिर जुड़े होते हैं। ये मुखौटे विभिन्न धातुओं के बने होते हैं तथा इन्हें लगा कर पात्र मैदान में युद्घ लीला का प्रदर्शन करते हैं। इनकी विशेष बात यह है कि इन्हें धातुओं से निर्मित किया जाता है तथा इनको प्राकृतिक रंगों से रंगा जाता है।

 असल लगते है राम-रावण
रामलीला समिति के कायर्कारी अध्यक्ष प्रदीप लंबरदार का कहना है कि यहां की रामलीला अनोखी इसलिए होती है क्योंकि रामलीला का प्रर्दशन खुले मैदान में होता है। दक्षिण भारतीय शैली में हो रही इस रामलीला मे असल पात्रों को बनाए जाने के लिए उनके पास पूरे परंपरागत कपड़े और मुखौटों के अलावा पूरे शस्त्र देखने के लिए मिलते हैं।

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