महाराष्ट्र में तैनात आईएएस पूजा खेडकर को लेकर क्यों हो रहा विवाद?
केंद्र सरकार ने ट्रेनी आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर के मामले की जांच के लिए एक समिति गठित की है.
ये समिति पूजा खेडकर के चयन के संबंध में किए गए दावों और अन्य विवरणों की जांच करेगी.
पूजा खेडकर को लेकर जारी विवादों के बीच उनका तबादला महाराष्ट्र के वाशिम ज़िले में कर दिया गया है.
पुणे ज़िला मुख्यालय में प्रशिक्षण के लिए नियुक्ति की अवधि के दौरान अनुचित मांगों और अभद्र व्यवहार के कारण उनकी चर्चा हो रही है.
वाशिम पहुंचने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए पूजा खेडकर ने कहा कि उन्हें इस बारे में कुछ भी कहने की इजाज़त नहीं है.
वाशिम की ज़िलाधिकारी एस. भुवनेश्वरी ने बीबीसी मराठी को बताया कि सामान्य प्रशासन विभाग के दिशानिर्देशों के अनुसार उनका काम शुरू हो गया है.
क्या है पूरा मामला?
पूजा दिलीप खेडकर 2023 बैच की आईएएस अधिकारी हैं. उन्हें पुणे ज़िला में प्रोबेशन पीरियड के दौरान एडीएम के रूप में नियुक्ति मिली थी.
प्रशिक्षण के दौरान उनसे प्रशासन के कामकाज को बेहतर तरीके से समझने और इससे जुड़ी अन्य बातें सीखने की उम्मीद थी. लेकिन उन पर आरोप है कि ज्वाइन करने से पहले ही उन्होंने अनुचित मांगें करनी शुरू कर दीं.
आरोप है कि मांगें स्वीकार होने के बाद भी वो किसी न किसी वजह से शिकायत करती रहीं. कलेक्टरेट के कई अधिकारियों ने इस संबंध में कलेक्टर के पास लिखित शिकायत भी दर्ज कराई.
इसके बाद पुणे के ज़िलाधिकारी सुहास दिवसे ने तत्कालीन मुख्य सचिव से उनकी शिकायत की.
सरकारी दस्तावेज़ों के अनुसार, खेडकर को 3 जून, 2024 को कलेक्टरेट में कार्यभार ग्रहण करना था. लेकिन उससे पहले उन्होंने कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टर को व्हाट्सएप पर मैसेज कर, उन्हें मिलने वाली सुविधाओं के बारे में जानकारी मांगी.
शिकायत में कहा गया है कि पहले दिन जब खेडकर ने इन सुविधाओं के बारे में पूछा तब उन्हें बताया गया कि ट्रेनी अधिकारियों को ये सुविधाएं नहीं दी जातीं.
उन्हें यह भी बताया गया कि उनके रहने के लिए आवास की व्यवस्था की जाएगी. हालांकि खेडकर से यह अपेक्षा की जा रही थी कि वे 3 से 14 जून तक सभी अधिकारियों के साथ बैठकर काम के बारे में जानकारी हासिल करेंगी.
शिकायत के अनुसार खेडकर अपनी पसंद की जगह कार्यालय के तौर पर मांगने लगीं. उन्हें चौथी मंज़िल पर दफ्तर के लिए एक कमरा दिया गया लेकिन उन्होंने अटैच्ड बाथरूम न होने के कारण उसमें बैठने से इनकार कर दिया.
इसके बाद उन्होंने अपने पिता (जो एक राटायर्ड प्रशासनिक अधिकारी हैं) के साथ वीआईपी हॉल में सीट मांगी. लेकिन बिजली फिटिंग नहीं होने से वो एक बार फिर परेशान हो गईं. इसके बाद उनके पिता ने स्थानीय उप-ज़िला अधिकारी से बात की.
खेडकर के पिता ने कहा, “यह बैठक बिना व्यवस्था के नहीं होनी चाहिए. ये सभी व्यवस्थाएं पहले ही कर लेनी चाहिए थीं.”
अधिकारी के लिए सीट की तलाश
इसके बाद खेडकर के लिए दोबारा से बैठने की जगह की तलाश शुरू की गई. 13 जून को उन्होंने अपने पिता के साथ फिर से उस जगह का मुआयना किया.
खेडकर के बैठने की व्यवस्था अतिरिक्त ज़िला कलेक्टर के दफ़्तर में की गई. दरअसल, खेडकर ने अपने पिता के साथ मिलकर अतिरिक्त ज़िला कलेक्टर से गुहार लगाई थी.
शिकायत के अनुसार खेडकर के पिता ने भी सवालिया लहज़े में यह पूछना नहीं भूले कि, “प्रोबेशनरी अधिकारियों के लिए अलग से हॉल क्यों नहीं बनाया गया?”
इसके बाद अतिरिक्त ज़िला कलेक्टर के एंटे चैंबर को सीज़ कर दिया गया. अतिरिक्त ज़िला कलेक्टर 18 जून से 20 जून तक मंत्रालय में थे.
इस दौरान खेडकर ने एंटे चैंबर से सारा सामान हटा दिया. साथ ही, उन्होंने अपने नाम का बोर्ड भी बनाया. इसके अलावा उन्होंने लेटरहेड, विज़टिंग कार्ड और स्टांप समेत सभी सामान भी उपलब्ध कराने के निर्देश दिए.
इस घटना से हड़कंप मच गया, जिसके बाद कलेक्टर सुहास दिवसे ने अतिरिक्त ज़िला कलेक्टर के कमरे को बहाल करने का आदेश दिया.
शिकायत में कहा गया है कि खेडकर ने सीधे कलेक्टर को संदेश भेजा कि, “अगर आप मुझे इस कमरे से निकाल देंगे तो यह मेरा बहुत बड़ा अपमान होगा और मैं इसे सहन नहीं कर पाऊंगी.”
खेडकर के पिता ने क्या कहा?
इस घटना के बाद खेडकर के पिता ने तहसीलदार को एक संदेश भेजकर कहा, “आप मेरी महिला अधिकारी बेटी को परेशान कर रहे हैं और भविष्य में आपको इसके परिणाम भुगतने होंगे.”
इसी तरह की एक और शिकायत में बताया गया है कि खेडकर अपनी निजी कार में एम्बर लाइट जलाती हैं और दिन में भी उसे जलाए रखती हैं.
कलेक्टर सुहास दिवसे ने भी खेडकर को समझाने की कोशिश करते हुए उनसे कहा कि, उनके कर्तव्य अधिकार से ज़्यादा अहम हैं.
ज़िला अधिकारी ने उनके व्यवहार को ग़लत बताया. सचिव को भेजी गई शिकायत में भी दिवसे ने कहा है कि खेडकर ने जो संदेश भेजे थे वे एक प्रशासनिक अधिकारी के लिए सही नहीं थे.
दिवसे ने सचिव को भेजी शिकायत में खेडकर के अलग-अलग अधिकारियों को भेजे गए संदेशों के स्क्रीनशॉट को भी अटैच किया है.
कौन हैं पूजा खेडकर?
पूजा खेडकर 2023 बैच की आईएएस अधिकारी हैं. वह पेशे से एक डॉक्टर हैं.
2022 में आईएएस के पद पर पूजा का चयन मल्टी डिसेबिलिटी कैटेगरी के तहत हुआ था.
2021 में, उन्हें भारतीय खेल प्राधिकरण में सहायक निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था. 2021 में भी, उन्होंने मल्टीपल डिसेबिलिटी श्रेणी के तहत सिविल सेवा परीक्षा पास की थी.
2022 में हुई परीक्षा में उन्हें 821वीं रैंक मिली थी. उनके पिता दिलीप खेडकर भी महाराष्ट्र सरकार में वरिष्ठ अधिकारी थे. जबकि उनके नाना जगन्नाथ बुधवंत वंजारी समुदाय के पहले प्रशासनिक अधिकारी थे.
सिविल सेवा परीक्षा पास करने के बाद उम्मीदवारों को उनकी रैंक के हिसाब से अलग-अलग सेवाओं और पदों पर नियुक्त किया जाता है.
आईएएस के लिए चयनित होने के बाद पूजा की दो चरणों में ट्रेनिंग हुई. पहली ट्रेनिंग लाल बहादुर राष्ट्रीय प्रशिक्षण संस्थान, मसूरी में हुई. इसके बाद कैडर को किसी ज़िले में ट्रेनी सहायक कलेक्टर के तौर पर नियुक्त किया जाता है.
पूर्व प्रशासनिक अधिकारी अविनाश धर्माधिकारी ने बीबीसी मराठी से कहा, “इस प्रशिक्षण अवधि के दौरान अधिकारियों से कामकाज सीखने की उम्मीद की जाती है.”
“कलेक्टर सहित दूसरे अधिकारियों को भी विभाग के बारे में पूरी जानकारी हासिल करना जरूरी है. इस अवधि के दौरान अधिकारियों के पास कोई प्रशासनिक शक्तियां नहीं होती हैं. प्रोबेशन के अंत में, उन्हें नियुक्ति मिलती है.”
ज़िला कलेक्टर की देखरेख में लेनी होती है ट्रेनिंग
नियुक्ति से पहले ट्रेनी को ज़िला कलेक्टर की देखरेख में 25 से 30 सप्ताह का प्रशिक्षण लेना होता है. इस अवधि के दौरान ट्रेनी अधिकारी कलक्टरेट, ज़िला परिषद और अन्य कार्यालयों में काम करते हैं और अनुभव प्राप्त करते हैं. इसके बाद उन्हें एक हफ्ते तक राज्य सचिवालय में काम करना होता है.
इसके अलावा ट्रेनी को अलग-अलग गांवों में स्टडी टूर करना होता है, राज्यों की भाषाएं सीखनी होती हैं और विभागीय परीक्षाओं जैसे कई काम करने होते हैं.
अविनाश धर्माधिकारी ने कहा कि पूजा खेडकर की मांगें अनुचित हैं और उन्हें पूरा करने को लेकर क़ानून में कोई प्रावधान नहीं है.
सूचना अधिकार कार्यकर्ता विजय कुंभार ने भी खेडकर की नियुक्ति पर सवाल उठाए हैं.
उन्होंने बीबीसी मराठी से कहा कि वह इस संबंध में प्रशासन के विभिन्न स्तरों पर अपनी बात रखेंगे.
विजय कुंभार ने ये सवाल किस आधार पर पूछे हैं, इसकी जानकारी नहीं मिल सकी है.
इस पहलू के बारे में हमने पुणे के ज़िलाधिकारी सुहास दिवसे से भी बात करने की कोशिश की लेकिन उनसे अब तक संपर्क नहीं हो सका है.