1965 और 1971 की जंग में प्लेन से पाक की नींद उड़ाई, 110 बार समाधि, कौन थे यह पायलट बाबा?
पायलट बाबा का मंगलवार को मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया. वायु सेना में विंग कमांडर रहे पायलट बाबा ने 1974 में विधिवत दीक्षा लेकर जूना अखाड़े में शामिल हुए और अपनी संन्यास यात्रा शुरू की थी.
पायलट बाबा का जीवन रहस्यों से भरा रहा… उन्होंने अश्वत्थामा से मिलने जैसे कई ऐसे दावे किये, जिनपर विश्वास कर पाना बेहद मुश्किल रहा. ऐसा भी दावा किया जाता है कि पायलट बाबा ने पूरे जीवन में 110 बार समाधि ली थी. अब पायलट बाबा को अंतिम समाधि देवभूमि उत्तराखंड में दी जाएगी. पायलट बाबा का असली नाम कपिल सिंह था, संन्यास यात्रा शुरू करने से पहले वह वायु सेना में एक विंग कमांडर रहे. इसलिए उनका नाम पायलट बाबा पड़ गया था. पायलट बाबा ने 1965 और 1971 की जंग लड़ी थी और इस दौरान पाकिस्तान की नींद उड़ा दी थी. जंग के दौरान ही उन्हें अध्यात्म की ओर जाने की राह मिली थी.
पाकिस्तान में बरपाया था कहर
बिहार के सासाराम में जन्मे पायलट बाबा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से कार्बनिक रसायन विज्ञान में मास्टर डिग्री के बाद 1957 में वायु सेना में शामिल हुए. वायु सेना में रहने हुए उन्होंने कई कारनामे किये. 1965 के युद्ध के दौरान पायलट बाबा ने पाकिस्तानी शहरों के ऊपर अपने जीएनएटी (Gnat) विमान से बेहद नीचे उड़ान भरी, जो एक रिकॉर्ड है. पाक सेना को यकीन ही नहीं था कि कोई भारतीय विमान इतने नीचे भी उड़ सकता है. इस दौरान उन्होंने पाकिस्तान को काफी नुकसान पहुंचाया था. 1971 में भी पायलट बाबा ने पाकिस्तान की नाम में दम कर दिया था. इसके लिए भारत सरकार द्वारा उन्हें सम्मानित भी किया.
सेना से अध्यात्म की ओर कैसे आए थे बाबा
सेना और अध्यात्म… दोनों अलग-अलग राह हैं. एक युद्ध की राह है, तो दूसरा शांति का मार्ग. पायलट बाबा ने इन दोनों में ही जिन ऊंचाइयों को छूआ, असाधारण रहा. बाबा ने एक बार बताया था वह कैसे युद्ध से शांति की राह पर चलने लगे. उन्होंने बताया था कि साल 1974 में वे मिग फाइटर प्लेन से भारत के पूर्वोत्तर में उड़ रहे थे. इस दौरान उनके साथ एक हादसा हुआ और विमान नियंत्रण से बाहर हो गया. ऐसे में उन्हें लगा कि अब नहीं बचेंगे, लेकिन तभी उन्हें गुरु हरि गिरी महाराज के दर्शन हुए. इसके बाद वह विमान से सुरक्षित निकल गए. बाबा ने बताया था कि यही वो पल था, जब उन्हें वैराग्य प्राप्त हुआ और वह शांति और अध्यात्म की राह पर निकल पड़े.
पायलट बाबा ने किया था अश्वत्थामा से मिलने का दावा
अध्यात्म की राह पर चलते हुए भी पायलट बाबा ने लोगों की सेवा में ही अपना जीवन व्यतीत किया. पायलट बाबा ने दावा किया था कि वह अश्वत्थामा से मिल चुके हैं. अश्वत्थामा को एक चिरंजीवी माना जाता है, जिसका अर्थ है कि उन्हें मृत्यु नहीं होती है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, महाभारत के अंतिम समय में अश्वत्थामा पाण्डवों को मारने के लिए ब्रमास्त्र छोड़ा था, उसे वह वापस नहीं ले सका जिसके कारण भगवान श्री कृष्ण ने उसे श्राप दे दिया था कि वह कलयुग के अंत तक जीवित रहेगा. कई नेताओं के पायलट बाबा से अच्छे संबंध रहे. कई बॉलीवुड की हस्तियां भी पायलट बाबा को बेहद मानती थीं, जिनमें मनीषा कोइराला भी एक हैं.
110 बार ली समाधि
पायलट बाबा के बारे में यह दावा किया गया कि उन्होंने पूरे जीवन में लगभग 110 बार समाधि ली थी. कई बार लगा कि वह अब समाधि से कभी वापस नहीं आ पाएंगे, लेकिन हर बार उन्होंने चौंकाया और लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया. जब पायलट बाबा से पूछा जाता था कि वह कैसे समाधि में चले जाते हैं, तो उन्होंने कहा था कि इसे हर कोई नहीं कर सकता. इसके लिए बेहद धैर्य रखना पड़ता है. दरअसल, समाधि योग और ध्यान की एक ऐसी अवस्था है, जिसमें व्यक्ति अपने मन और शरीर को पूरी तरह से शांत कर देता है. यह एक ऐसी अवस्था है, जिसमें व्यक्ति बाहरी दुनिया से पूरी तरह से अलग हो जाता है और अपने भीतर की ओर ध्यान केंद्रित करता है.