कूटनीतिक कामयाबी
भारत ने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय वार्ता में दो बड़ी कूटनीतिक कामयाबियां हासिल की हैं। भारत की पहली और बड़ी सफलता यह रही है कि उसने अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश को आतंकी ठिकानों को नष्ट करने में सहयोगी बनने पर राजी कर लिया। साथ ही, भारत ने युद्धग्रस्त देश अफगानिस्तान में अमेरिकी फौजों के साथ भारतीय सैनिकों की तैनाती की किसी भी संभावना को पूरी तरह खारिज कर दिया। ये दोनों मसले भारत के लिए बेहद अहम हैं। अमेरिकी रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस ट्रंप प्रशासन के पहले बड़े ओहदेदार हैं, जो दो दिनों की यात्रा पर भारत आए थे। उनकी, भारत की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण से दोनों देशों के रक्षा संबंधों को मजबूत करने के तौर-तरीकों और साथ ही आतंकवाद से निपटने जैसे विषयों पर चर्चा हुई। मैटिस ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की थी।
बुधवार को साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में अमेरिकी रक्षा मंत्री ने दो टूक कहा कि आतंकी ठिकानों को नष्ट करने में दोनों देश मिल कर काम करेंगे। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि अमेरिका, भारत के साथ आतंकवाद के मामले में सहयोग करता रहा है। दोनों देश आगे भी मिल कर आतंकवाद का खात्मा करेंगे। उन्होंने पाकिस्तान का नाम तो नहीं लिया, लेकिन इशारों-इशारों में इतना जरूर जताया कि आतंकियों को पनाह देने वाले ठिकानों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा क्योंकि भारत और अमेरिका ने आतंकवाद के कारण बहुत कुछ खोया है। वार्ता में सीतारमण ने भी दिलेरी से अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि जो ताकतें पाकिस्तान में पलती हैं, वही न्यूयार्क और मुंबई को दहलाने की जिम्मेदार हैं। सीतारमण ने अपने अमेरिकी समकक्ष को यह सलाह भी दी कि वे जब पाकिस्तान जाएं तो उन्हें वहां चल रहे सुरक्षित आतंकी ठिकानों पर भी बातचीत करनी चाहिए। वास्तव में देखा जाए तो कई बार आतंकवाद को लेकर अमेरिकी नीति दुरंगी रही है। वह भारत के नेताओं से मिलता है तो कुछ और बात करता है लेकिन पाकिस्तान के नेताओं की बैठक में कुछ और ही सुर निकालता है।
यह भी देखा गया कि अमेरिका जब पाक पोषित आतंकवाद से निपटने की बात करता है तो उसका मतलब अफगानिस्तान के भीतर और सीमा पर सक्रिय आतंकी समूहों, खासकर, अल कायदा या हक्कानी नेटवर्क या तहरीके तालिबान से होता है। वह भारत में जम्मू-कश्मीर में फैले आतंकवाद के बारे में दाएं-बाएं करने लगता है। हालांकि कुछ समय पहले उसके इस रवैए में बदलाव आया है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों मुल्क आतंकवाद की कमर तोड़ने में कामयाब होंगे। अफगानिस्तान में भारतीय सैनिक न भेजने के साहसिक निर्णय के लिए भारत सरकार की सराहना करनी चाहिए। जैसा कि सीतारमण ने कहा भी है कि अफगानिस्तान में भारत का एक भी सैनिक नहीं भेजा जाएगा। उन्होंने बताया कि भारत ने अफगानिस्तान में बांध, अस्पताल, सड़कें और स्कूल बनाए हैं और भारत का सहयोग इसी दिशा में जारी रहेगा। गौरतलब है कि अगर भारत ट्रंप प्रशासन के दबाव में आकर अफगानिस्तान में सैनिक भेजने का फैसला कर लेता तो यह किसी भी लिहाज से अच्छा नहीं होता। दोनों देशों के बीच लंबे समय से सौहार्द का वातावरण बना हुआ है। अफगानिस्तान की सरकार कभी नहीं चाहेगी कि भारतीय सैनिक वहां बंदूकें लहराएं।