जोखिम का भोजन

देश के अलग-अलग इलाकों में स्थित स्कूलों में विद्यार्थियों को दिए जाने वाले दोपहर के भोजन में कीड़े-मकोड़े पाए जाने या विषाक्त पदार्थ मिला होने की खबरें अक्सर आती रही हैं। कई बार ऐसी खबरें भी आर्इं, जिनमें छिपकली के गिर कर मर जाने से भोजन जहरीला हो गया और उसके चलते काफी बच्चे बीमार हो गए। ऐसे मामलों को दूरदराज में असुविधाओं के बीच व्यवस्थागत कमियों के तौर पर देखा जाता है और कार्रवाई में टालमटोल की जाती है। लेकिन हैरानी की बात है कि ऐसी लापरवाही बरतने के मामले में राजधानी दिल्ली में स्थित आइआइटी यानी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जैसी जगहें भी कम साबित नहीं हो रही हैं। मंगलवार को आइआइटी के एक छात्रावास के खाने में जिस तरह मरा हुआ चूहा पाया गया, वह उच्च तकनीकी पर आधारित शिक्षण के लिए मशहूर इस संस्थान की एक बड़ी व्यवस्थागत लापरवाही को दर्शाता है। जबकि आइआइटी जैसे संस्थान आमतौर पर अपने परिसरों के भीतर बेहतर निगरानी, उच्च गुणवत्ता और अच्छी व्यवस्था के लिए ही जाने जाते रहे हैं। बल्कि कई बार ऐसे संस्थानों का हवाला देकर दूसरी जगहों पर व्यवस्था को दुरुस्त करने की बातें कही जाती रही हैं। मगर दिल्ली के आइआइटी में विद्यार्थियों के लिए बनाए गए खाने में चूहे का मिलना इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि अब ऐसी जगहों पर बरती जाने वाली सावधानी और चौकसी भी छीज रही है।

यों इस घटना के सामने आने के बाद इसकी जांच के लिए समिति गठित कर दी गई है और यह भरोसा दिया गया है कि दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी। लेकिन इसका सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर मरे हुए चूहे की जगह कोई विषाक्त पदार्थ खाने में मिल गया होता और विद्यार्थियों ने उसे खा लिया होता तो कितना बड़ा जोखिम पैदा हो सकता था। यों संस्थान के निदेशक का दावा है कि वहां के छात्रावासों में हर स्तर पर स्वच्छता के लिए काफी काम किया गया है, मेस में विद्यार्थियों के भोजन का परीक्षण भी होता रहता है। सवाल है कि फिर ऐसी लापरवाही कैसे बरती गई, जिससे वहां विद्यार्थियों की सेहत के सामने संकट खड़ा हो सकता था! हालांकि कहीं भी खाना बनाने में हर स्तर पर सावधानी सबसे ज्यादा जरूरी पहलू होती है। लेकिन खासतौर पर जहां सामूहिक रूप से कुछ लोग खाना खाते हों, वहां मामूली-सी चूक एक साथ बहुत सारे लोगों के लिए जानलेवा भी साबित हो सकती है।

करीब चार साल पहले बिहार में छपरा जिले के एक स्कूल में दोपहर के भोजन में तेल की जगह धोखे से कीटनाशक डाल दिया गया और उसे खाने के बाद तेईस बच्चों की जान चली गई थी। इस तरह की अन्य घटनाओं के तमाम उदाहरण मौजूद हैं, जिनमें विषाक्त भोजन के चलते बच्चों की सेहत या जीवन पर ऐसा संकट खड़ा हुआ। सामूहिक भोजन के मामले में इस तरह की दलील बेमानी है कि वहां समय-समय पर निरीक्षण किया जाता है। इसके बजाय हर रोज जितनी बार भोजन तैयार किया जाए, उसके पहले उस पर ठोस निगरानी और परीक्षण का इंतजाम होना चाहिए। व्यवस्थागत कमियों के लिए वह लापरवाही जिम्मेदार है जिसमें ऐसी जगहों पर बनने वाले भोजन के सुरक्षित होने के गंभीर पहलू को नजरअंदाज किया जाता है। स्कूल या कॉलेज के छात्रावासों जैसी जगहों पर खाना बनाने के मामले में ऐसी ठोस व्यवस्था की जरूरत है, जिसमें सामान्य मानवीय चूक के लिए भी जगह नहीं बचे।

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