नेशनल हेरल्ड केस: क्या है पूरा मामला, सोनिया और राहुल कितनी मुश्किल में, हर बात डीटेल में समझिए

नई दिल्ली:

नेशनल हेरल्ड केस पिछले कुछ सालों से भारतीय राजनीति में काफी चर्चा में रहा है. यह एक ऐसा मामला है जिसमें पैसों के लेन-देन में गड़बड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे गंभीर आरोप लगे हैं. खास बात यह है कि इस केस में कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी का भी नाम है. यह पूरा विवाद एक पुराने और ऐतिहासिक अख़बार ‘नेशनल हेरल्ड’ से जुड़ा है, जिसकी शुरुआत आजादी के आंदोलन के दौरान हुई थी. आइए, जानते हैं कि नेशनल हेरल्ड की शुरुआत कैसे हुई, और कैसे यह एक बड़े राजनीतिक विवाद में बदल गया. आइए, सरल शब्दों में इस केस की पूरी कहानी को समझते हैं.

हम मुख्य तौर पर नेशनल हेरल्ड, एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) और यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड (YIL) को समझेंगे साथ ही जानेंगे कि किस तरह से यह मामला सामने आया. जांच एजेंसी के क्या दावे हैं और बचाव पक्ष का क्या कहना है.

नेशनल हेरल्ड क्या है? 

नेशनल हेरल्ड अखबार की स्थापना 1938 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा की गई थी. यह समाचार पत्र स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कांग्रेस पार्टी के उदारवादी विचारों को व्यक्त करने का एक मंच था. इसका प्रकाशन एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) द्वारा किया जाता था, जो 20 नवंबर 1937 को एक गैर-सूचीबद्ध पब्लिक कंपनी के रूप में स्थापित हुई थी. AJL ने नेशनल हेरल्ड (अंग्रेजी), क़ौमी आवाज़ (उर्दू), और नवजीवन (हिंदी) जैसे समाचार पत्र प्रकाशित किए.

यह अखबार स्वतंत्रता के बाद भी कांग्रेस पार्टी का मुखपत्र बना रहा. हालांकि, वित्तीय कठिनाइयों और श्रम समस्याओं के कारण इसकी प्रकाशन प्रक्रिया कई बार बाधित हुई. 2008 में, भारी कर्ज और घाटे के कारण नेशनल हेरल्ड का प्रकाशन पूरी तरह बंद हो गया. उस समय AJL पर कांग्रेस पार्टी का 90.25 करोड़ रुपये का ब्याज-मुक्त ऋण बकाया था, जिसे वह चुकाने में असमर्थ थी.

सोनिया और राहुल गांधी का नाम इस केस में तब सामने आया जब 2012 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता और वकील सुब्रमण्यम स्वामी ने दिल्ली की एक अदालत में एक निजी शिकायत दर्ज की. स्वामी ने आरोप लगाया कि सोनिया और राहुल गांधी ने यंग इंडियन के माध्यम से AJL की संपत्तियों को धोखाधड़ी और विश्वासघात के जरिए हासिल किया. उनके अनुसार, यह अधिग्रहण “दुर्भावनापूर्ण” तरीके से किया गया ताकि हजारों करोड़ रुपये की संपत्तियों को केवल 50 लाख रुपये में हासिल किया जा सके.

कांग्रेस द्वारा AJL को दिया गया 90.25 करोड़ रुपये का ऋण अवैध था, क्योंकि आयकर अधिनियम और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत कोई राजनीतिक दल व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए धन उधार नहीं दे सकता. इसके अलावा, उन्होंने आरोप लगाया कि AJL की संपत्तियों का उपयोग मूल रूप से समाचार पत्र प्रकाशन के लिए किया जाना था, लेकिन इनका इस्तेमाल व्यावसायिक गतिविधियों, जैसे किराए पर आय अर्जित करने के लिए किया गया.