गाजा में भूख से मरते बच्चे! नवजातों की आंतें दूध मांगती हैं, लेकिन चना-चारा खिलाने की मजबूरी

दूध के बोतल तो हैं लेकिन दूध नहीं

मानवीय एजेंसियों का कहना है कि गाजा में लगभग कोई बेबी फार्मूला नहीं बचा है. बाजार में जो इसके कैन मौजूद भी हैं उनके अकेले की कीमत 100 डॉलर (8735 रुपए) से अधिक है. मुंताहा जैसे परिवारों के लिए इसे खरीद पाना असंभव है. उसके पिता ने युद्ध के बाद से अपना फलाफेल बेचने का बिजनेस बंद कर दिया है और परिवार के अपने घर से विस्थापित होने के बाद से बेरोजगार हैं.

मध्य गाजा शहर दीर अल-बलाह में मौजूद अल-अक्सा शहीद हॉस्पिटल तक में बेबी फार्मूला की आपूर्ति ज्यादातर समाप्त हो गई है. एक मां ने दिखाया कि कैसे उसने ताहिनी तिल का गाढ़ा पेस्ट एक बोतल में डाला और उसे पानी में मिला दिया. वो इसे बच्चे को दूध बताकर पिला रही है. चार महीने की जौरी की 31 साल की मां, अज़हर इमाद ने कहा, “मैं दूध की जगह इसका इस्तेमाल कर रही हूं, ताकि उसके दूध की भरपाई हो सके, लेकिन वह इसे नहीं पिएगी.”

डॉक्टर खलील दकरान ने कहा, “अब बच्चों को या तो पानी या पिसी हुई कठोर फलियां खिलाई जा रही हैं. यह गाजा में बच्चों के लिए हानिकारक है. अगर तीन या चार दिनों के भीतर बच्चे को तुरंत दूध नहीं मिलता है, तो वे मर जाएंगे.”

जंग का खेल-खेलते लोगों के लिए मौत एक आंकड़ा भर है

गाजा के बढ़ते मानवीय संकट की वजह से मंगलवार को दुनिया में भूखमरी और अकाल की निगरानी करने वाले निकाय को यह कहना पड़ा गाजा में अकाल की सबसे खराब स्थिति सामने आ रही है. व्यापक मौत से बचने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है. कमजोर और कंकाल जैसे बन चुकें फिलिस्तीनी बच्चों की तस्वीरों ने दुनिया को झकझोर कर रख दिया है.

गाजा के स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार भूख की वजह से मरते लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है. अब तक ऐसी कुल संख्या 154 है, इनमें से 89 बच्चे हैं, जिनमें से अधिकांश की मृत्यु पिछले कुछ हफ्तों में हुई है.

गाजा की दुर्दशा पर अंतर्राष्ट्रीय आक्रोश बढ़ रहा है. इजरायल ने गाजा में मानवीय सहायता की पहुंच को आसान बनाने के लिए बीते वीकेंड में कदमों की घोषणा की थी लेकिन संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम ने मंगलवार को कहा कि उसे अभी भी पर्याप्त सहायता देने के लिए आवश्यक अनुमति नहीं मिल रही है.

इजरायल और अमेरिका ने उग्रवादी समूह हमास पर मानवीय सहायता को चुराने का आरोप लगाया है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि उसने हमास द्वारा अधिक मानवीय सहायता छीन लेने के सबूत नहीं देखे हैं. हमास ने इजरायल पर भुखमरी पैदा करने और सहायता को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है, जिससे इजरायल सरकार इनकार करती है.

गाजा में इजरायल ने मोर्चाबंदी कर रखी है, वहां मानवीय सहायता बहुत सीमित मात्रा में पहुंच रही है. वहां बाजार तो बचे ही नहीं हैं, और जो थोड़ा बहुत बचा भी है वहां बेबी फार्मूला दुर्लभ (मिल्क पाउडर) दुर्लभ है. कई महिलाएं कुपोषण के कारण स्तनपान नहीं करा पाती हैं. जबकि कई अन्य बच्चे विस्थापन, घायल होने या मां के ही मरने के कारण अपनी मां से अलग हो गए हैं. मुंताहा की भी मां अब इस दुनिया में नहीं है.

मुंताहा के परिवार का कहना है कि जब उसकी मां गर्भवती थी तभी उसे गोली लग गई थी. बेहोशी की हालत में मां ने समय (डिलिवरी डेट) से पहले ही बच्ची को जन्म दिया और कुछ सप्ताह बाद उसकी मृत्यु हो गई. मुंताहा के जन्म के चार दिन बाद 27 अप्रैल को शिफा हॉस्पिटल के डायरेक्टर ने एक फेसबुक पोस्ट में ऐसे मामले का वर्णन किया.

मुंताहा की दादी नेमा हमौदा ने कहा, “मैं बच्ची के भाग्य को लेकर भयभीत हूं… हमने उसका नाम उसकी मां के नाम पर रखा…उम्मीद है कि वह जीवित रहेगी और लंबे समय तक जीवित रहेगी, लेकिन हम इतने डरे हुए हैं, हम हर दिन बच्चों और वयस्कों को भूख से मरते हुए सुनते हैं.”

मुंताहा का वजन अभी केवल 3.5 किलोग्राम है. उसके परिवार ने कहा, उसकी उम्र के एक बच्चे का वजन आमतौर पर इसका दोगुना होता है. दूध है नहीं, चना खिलाने के बाद उसे उल्टी और दस्त जैसी पेट संबंधी समस्याएं हो जाती हैं.

स्वास्थ्य अधिकारियों, सहायता कर्मियों और गाजा के परिवारों ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि कई परिवार शिशुओं को जड़ी-बूटियां और पानी में उबाली हुई चाय, या रोटी या तिल पीसकर खिला रहे हैं. मानवीय एजेंसियों का कहना है कि गाजा में माता-पिता पत्तियों को पानी में उबालकर खिला रहे हैं, यहां तक की जानवरों का चारा खिला रहे हैं, रेत को आटे में पीसने के खिलाने के मामले भी दर्ज किए गए हैं.

बच्चों के डॉक्टरों और एक्सपर्ट्स का कहना है कि बच्चों को बहुत कम उम्र में ठोस पदार्थ खिलाने से उनका पोषण बाधित हो सकता है, पेट की समस्याएं हो सकती हैं और दम घुटने का खतरा हो सकता है.

यूनिसेफ के प्रवक्ता सलीम ओवेस ने कहा, “भोजन की कमी की भरपाई के लिए यह हताशा में उठाया गया कदम है… जब माताएं स्तनपान नहीं करा पाती हैं या उचित बेबी फार्मूला उपलब्ध नहीं करा पाती हैं तो वे अपने बच्चों को खिलाने के लिए चने, रोटी, चावल, जो कुछ भी उनके हाथ में आ जाए, पीसने का सहारा लेती हैं… यह उनके स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहा है क्योंकि ये चीजें शिशुओं को खिलाने के लिए नहीं बनाई गई हैं.”