GST से पहले के सामान को बेचने का मिला एक और मौका, सरकार ने बढ़ाई तारीख
सरकार ने संशोधित मूल्य दरों वाले स्टिकरों के साथ माल एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने से पहले के सामान को बेचने की समयसीमा बढ़ाकर 31 दिसंबर कर दी है। उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने शुक्रवार (29 सितंबर) को यह जानकारी दी। कई कंपनियों तथा व्यापारियों के प्रमुख संगठन कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने कहा था कि उनके पास जीएसटी से पहले का काफी भंडार पड़ा है और उन्हें इसे निकालने के लिए और समय की जरूरत है.
जीएसटी को एक जुलाई से लागू किया गया है. सरकार ने पैकेटबंद उत्पादों पर अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) के साथ संशोधित मूल्य छापकर इसे बेचने के लिए तीन महीने का (30 सितंबर तक का) समय दिया था। इस बिना बिके सामान पर एमआरपी होगा जिसमें जीएसटी पूर्व से दौर के सभी कर शामिल हों।जीएसटी क्रियान्वयन के बाद इनमें से काफी उत्पादों के अंतिम खुदरा मूल्य में बदलाव हुआ है क्योंकि जहां कुछ उत्पादों पर कर प्रभाव घटा है तो कुछ पर बढ़ा है। उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान ने ट्वीट किया, ‘‘पैकेटबंद जिंसों पर उद्योग जीएसटी की वजह से स्टिकर, स्टाम्पिंग, ऑनलाइन प्रिटिंग के जरिये संशोधित मूल्य दिखा सकता है। अब यह सीमा बढ़ाकर 31 दिसंबर की जा रही है।
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कई कंपनियों मसलन विप्रो, एचपीएल और अन्य गैर खाद्य कंपनियों ने इसकी समयसीमा बढ़ाने की मांग की थी जिसकी वजह से यह कदम उठाया गया है। व्यापारियों के संगठन कैट ने कहा था कि यदि एमआरपी लेबल वाले पुराने स्टॉक को निकालने की समयसीमा नहीं बढ़ाई जाती है तो इससे करीब छह लाख करोड़ रुपये का सामान बेकार हो जाएगा।
इससे पहले निर्यातकों ने गुरुवार (28 सितंबर) को वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ मुलाकात कर प्रोत्साहन तथा माल एवं सेवा कर (जीएसटी) की दिक्कतों से निजात दिलाने की मांग की थी। यह एक सप्ताह में निर्यातकों की वित्त मंत्री के साथ दूसरी बैठक थी। बैठक में यह बात उभरकर आई कि अर्थव्यवस्था की सुस्ती की एक मुख्य वजह निर्यात में कमी है। बैठक में उद्योग और निर्यातकों की ओर से जीएसटी रिफंड, छह महीने तक जीएसटी रिटर्न को टालने के अलावा कम्पोजिशन योजना का दायरा बढ़ाने की मांग उठी। निर्यातक चाहते हैं कि जीएसटी के क्रियान्वयन की वजह से उनके समक्ष आ रही दिक्कतों को जल्द हल किया जाए।
निर्यातकों के प्रमुख संगठन फियो ने कहा कि निर्यात बिक्री पर किसी तरह का कर का बोझ नहीं डाला जाना चाहिए और प्रतिस्पर्धा के लिए शुल्क वापसी माध्यम से कर रिफंड किया जाना चाहिए। फियो के अध्यक्ष गणेश गुप्ता ने कहा, ‘‘रिफंड की समय सीमा को लेकर स्थिति साफ नहीं होने की वजह से 21 सितंबर को अधिसूचित नई शुल्क वापसी दरों से निर्यातकों की दिक्कतें बढ़ी हैं और इससे उनके आर्डर प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में यह सुझाव दिया गया है कि शुल्क वापसी के लिए बदलाव की अवधि को 30 सितंबर, 2017 से बढ़ाकर 31 दिसंबर किया जाए। उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री ने उनकी बातों को सहानुभूति पूर्वक सुना और हरसंभव मदद का भरोसा दिलाया।
फियो ने आगाह किया कि टाइल्स, हस्तशिल्प, परिधान और कृषि जिंसों के निर्यात में गिरावट आ सकती है, क्योंकि इन क्षेत्रों में वाणिज्यिक वस्तुओं के निर्यातकों का दबदबा है। फियो ने बयान में कहा कि वाणिज्यिक वस्तुओं के निर्यातकों का कुल निर्यात में हिस्सा 30 प्रतिशत है और वे सिर्फ दो से चार प्रतिशत के मामूली मार्जिन पर काम करते हैं। ‘‘जीएसटी की वजह से उनकी लागत बढ़ी है विशेषरूप से उन वस्तुओं के मामले में जिन पर जीएसटी की दर ऊंची है।उन्हें उन पर जीएसटी देना पड़ रहा है और रिफंड के लिए इंतजार करना पड़ रहा है।