फिल्म समीक्षा- अपना दिमाग घर पर रखकर फिल्म देखने जाइएगा
बीस साल पहले, यानी 1997 में, डेविड धवन की फिल्म ‘जुड़वां’ आई थी जिसमें सलमान खान हीरो थे। थोड़े फेरबदल के बाद वही कहानी ‘जुड़वां 2’ नाम से आई है और इसके हीरो हैं डेविड धवन के बेटे वरुण धवन। लेकिन चूंकि फिल्म जगत में सलमान का करिश्मा कायम है इसलिए उनकी छवि भुनाने के लिए आखिरी दृश्य में उनको भी मेहमान कलाकार के रूप में बुला लिया गया है। यानी दो धवनों के साथ थोड़ी ही देर के लिए सही, सलमान मुफ्त। ‘जुड़वा’ के सारे वाकये हिंदुस्तान में घटित हुए थे। ‘जुड़वां 2’ में कहानी हिंदुस्तान में शुरू होती है लेकिन इंग्लैड तक पहुंच गई है। ‘जुड़वां 2’ भी बचपन में बिछुड़े दो भाइयों, राजा और प्रेम, की कहानी है। चार्ल्स (जाकिर हुसैन) नाम के एक स्मगलर की वजह से दोनों बचपन में ही बिछुड़ गए। चार्ल्स राजा को जन्म के समय ही अस्पताल से उठाकर ले जाता है और रेल की पटरी पर छोड़ देता है। लेकिन राजा बच जाता है और मुंबई के वर्सोवा की गलियों में पल बढ़कर मवाली किस्म का शख्स बन जाता है। प्रेम अपने माता-पिता के साथ लंदन पहुंच गया है। लेकिन मुंबई में अलेक्स (विवान भटेना) नाम के एक शोहदे, जो चार्ल्स का बेटा है, की पिटाई कर देने के बाद उससे बचने के लिए राजा भी अपने दोस्त नंदू (राजपाल यादव) के साथ लंदन चला जाता है। हवाई जहाज में अलिस्का (जैक्लीन फर्नांडीज)उससे टकरा जाती है। यानी आगे चलकर दोनों के बीच इश्क होगा ये तय कर दिया गया है। उधर लंदन में प्रेम की संगीत में दिलचस्पी होती है और उसके जीवन में समायरा (तापसी पन्नू) आती है। वह उससे संगीत सिखाने के लिए कहती है और प्रेम इसके लए तैयार भी हो जाता है। लेकिन प्रेम समायरा को संगीत कब सिखाता है, यह दिखाया नहीं गया है। आखिर यह डेविड धवन की फिल्म है भैये।
खैर, प्रेम शर्मीला किस्म का है और राजा दादा किस्म का और किसी से भिड़ जानेवाला। कहानी जब आगे बढ़ती तो कभी समायरा राजा को प्रेम समझती और उसके साथ डांस करती है, तो कभी अलिस्का प्रेम को राजा समझ उसे किस कर लेती लेती है। जिसे अंग्रेजी में मिस्टेकेन आइडेंटिटी कहते हैं, उसका पूरा खेल फिल्म में है। और जैसा कि फिल्मों में अक्सर होता है और ‘जुड़वां 2’ में भी होता है। मतलब खलनायक भी लंदन पहुंच गए हैं। राजा और प्रेम को ढूंढते हैं। उनसे टकराते हैं। अंत में प्रेम समायरा का हो जाता है और अलिस्का राजा की। फिल्म में कॉमेडी भरपूर है लेकिन प्रेम और कुछ जगहों पर राजा के समायरा की मां (उपासना सिंह) के साथ दृश्य हैं, वे थोड़े भदेस किस्म के हैं और परिवार के साथ फिल्म देखनेवाले दर्शकों को पसंद नहीं आएंगे। जहां तक अभिनय का सवाल है वरुण धवन धमाकेदार हैं। खासकर राजा की भूमिका में। प्रेम वाली भूमिका में वह कुछ सकुचाए सकुचाए लगते हैं। लेकिन सबसे दबा हुआ किरदार तापसी पन्नू का है। लगता है उनके चरित्रांकन पर निर्देशक ने काम ही नहीं किया है। वे न तो रोमांटिक दृश्यों में असरदार लगती हैं और न और अन्य दृश्यों में।
एकाध जगहों पर संवाद बोलते समय उनका मुंह भी अजीब तरीके से खिंच गया है। लेकिन जैक्लीन फर्नांडीज का किरदार चुलबुला है। वह कई दृश्यों में असरदार हैं। नंदू की भूमिका में राजपाल यादव भी कई बार कहकहे लगाने को विवश कर देते हैं। और हां, आप जब डेविड धवन की फिल्म में जाते हैं तो अपने दिमाग अपने घर पर छोड़ कर जाते हैं। यह सर्वविदित हैं। इसलिए फिल्म देखने के बाद कुछ सवाल आपके मन में आएं तो दबा दें। जैसे प्रेम और राजा के बारे में अस्पताल में डॉक्टर ये कहता है कि अगर एक दूसरे के नजदीक होंगे, तो दोनों में किसी एक को दर्द होगा तो दूसरा भी उसे महसूस करेगा। इसलिए जब प्रेम पिटता है तो राजा को दर्द होता है। और जब राजा मुक्के चलाता है तो प्रेम को भी घूंसेबाजी आ जाती है। पर फिल्म देखने के बाद आपके मन में ये प्रश्न पैदा होता है कि यदि प्रेम किसी हालत में शर्माता है, तो राजा भी शर्म से लाल लाल क्यों नहीं होता? बेहतर होगा कि इस प्रश्न को दबा दीजिए। कहा न, अपना दिमाग घर पर रखकर फिल्म देखने जाइएगा।