दिल्ली: पुराने पंगों के कारण आप नेताओं और अधिकारियों के रिश्ते नहीं हो पा रहे सामान्य
तवज्जो की दरकार
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पर हमेशा से आरोप लगते रहे हैं कि वे पार्टी में किसी को काम करने नहीं देते। अब ये तो पता नहीं कि यह बात कितनी सही है, लेकिन दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी के पास तो काम ही काम है। दिल्ली में पिछले दिनों भाजपा कार्यकारिणी की बैठक हुई। संयोग से उसी दिन भाजपा के आदर्श पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्म शताब्दी वर्ष का समापन समारोह भी हुआ। इस समारोह में मनोज तिवारी ने अपनी प्रतिभा का जमकर इस्तेमाल किया। कार्यकारिणी की बैठक के बाद तालकटोरा स्टेडियम में ही घंटों रंगारंग कार्यक्रम हुए, जिसमें अन्य गायकों से ज्यादा गाने मनोज तिवारी ने ही गाए। यह अलग बात है कि पार्टी फोरम में उनकी बातों को ज्यादा महत्त्व नहीं मिल रहा है। शायद इसी के चलते दिल्ली भाजपा के अनेक पदाधिकारी भी उनको ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे हैं।
नोटिस दर नोटिस
पिछले काफी वक्त से केजरीवाल सरकार ने नौकरशाहों से पंगा लेना कम कर दिया है, लेकिन सरकार पहले ही इतने पंगे ले चुकी है कि उसके कारण आप नेताओं और अधिकारियों के रिश्ते सामान्य नहीं हो पा रहे हैं। माना जा रहा था कि लोक निर्माण विभाग के सचिव अश्विनी कुमार से सरकार के संबंध ठीक होने लगे हैं और कई अफसर उनमें सुलह करवाने में लगे हैं। इस बीच सरकार ने उन्हें फिर नोटिस थमा कर माहौल गरम कर दिया है। वहीं आम आदमी पार्टी (आप) को भी जुर्माने के साथ पार्टी का दफ्तर खाली करने का नोटिस दिया गया है। इसी के साथ कई और नाराज अधिकारियों को दरकिनार करने की कोशिश की जा रही है।
पतियों की जिम्मेदारी
दिल्ली नगर निगम की आम सभा में निगम पार्षदों से ज्यादा मौजूदगी दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों की होती है। बेदिल को जब पिछले दिनों निगम की बैठक में ऐसा ही एक नजारा देखने को मिला तो इसकी तहकीकात शुरू की गई। अब जितने लोग, उतनी बातें। फिर भी मकसद पूरा नहीं हो पा रहा था। तभी एक पुराने पार्षद मिले और उन्होंने इसे बारीकी से समझाया। निगम में अब महिला और पुरुष पार्षद बराबर की संख्या में हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि महिला पार्षदों को बैठक में छोड़ने और वापस ले जाने की जिम्मेदारी उनके पतिदेव ही निभाते हैं। यहां तक कि वहां पूछे जाने वाले सवाल भी कई बार पार्षदों के पति ही बनाते हैं। पतियों की पार्षद पत्नियां जब अंदर चली जाती हैं तो इन पतियों को बैठने के लिए जगह तलाशनी पड़ती है। ऐसे में वे दर्शक दीर्घा का बखूबी सदुपयोग करते हैं। इतना ही नहीं, ऊपर से कुछ निर्देश देना होता है तो वो भी बैठे-बैठे देते रहते हैं।
सियासत का दांव
राजनीति का अखाड़ा हो या रामलीला का मंच दोनों से जुड़े लोग रूप बदलने में माहिर होते हैं। ऐसा ही एक वाकया पिछले दिनों दिखा। मंच पर अंगद का पांव जमाने वाले दिल्ली के एक सांसद का पांव पार्टी में जमा रहे, इसके लिए वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के विवाद को सुलझाने के सूत्रधार बनने निकल पड़े। दरअसल वहां छेड़छाड का विरोध करने वाली लड़कियों पर लाठीचार्ज के बाद बढ़ा विवाद न केवल दिल्ली पहुंचा बल्कि कुलपति के इस्तीफे पर जा टिका है। इस विवाद को विरोधी राजनीतिक दल मुद्दा बनाने की जुगत में हैं। ऐसे में दिल्ली के सांसद जो बीएचयू के पूर्व छात्रों के एक संघ के अध्यक्ष भी हैं, को छात्राओं से बातचीत करने और विवाद सुलझाने का जिम्मा देकर दिल्ली से बनारस भेज दिया गया। किसी ने ठीक ही चुटकी ली, नेता जी राजनीति के ही नहीं मंच के भी कलाकार हैं। लड़कियों के बीच खासे चर्चित भी रहे हैं। लिहाजा भाजपा ने सोच-समझ कर दांव लगाया है।
वाहवाही का शौक
लुटेरों के मन से दिल्ली पुलिस का खौफ खत्म ही नहीं हुआ है, बल्कि सड़क पर गश्त लगा रहे पुलिसवालों पर गाड़ी चढ़ाना भी बदमाशों के ‘शगल’ में शामिल हो गया है। मध्य दिल्ली में इस तरह की वारदातें आम हैं। तभी तो लाल किले के पीछे वाले पुल पर रात में जाने से आम लोग ही नहीं बल्कि पुलिस वाले भी डरने लगे हैं। बीते एक साल में यहां कई वारदातें हुर्इं। इन सभी वारदातों में एक समानता देखी गई और वह थी पीड़ित के रूप में मिले पुलिसवाले। बेदिल ने जब एक अधिकारी से पूछा कि क्या बदमाशों में पुलिस का खौफ खत्म हो गया है? एक के बाद एक कई वारदातें एक ही जगह हो रही हैं और पुलिस रोक भी नहीं पा रही? तो उनका जवाब था कि ऐसा नहीं है। बदमाशों को आजकल यह शौक चढ़ा है कि वे पुलिसवालों को निशाना बनाकर वाहवाही बटोरना चाहते हैं। हालांकि बाद में वही हमारी गिरफ्त में होते हैं।