इसी महीने की कार्यकारिणी बैठक में और साफ हो जाएगी सपा की तस्वीर
गुजरात में तो नवंबर में होगी ही नरेंद्र मोदी और अमित शाह के सियासी पराक्रम की परीक्षा। लेकिन चुनावी जंग का एक मैदान यूपी भी बनेगा। गोरखपुर और फूलपुर की लोकसभा सीटों के उपचुनाव होंगे तो तय हो जाएगा कि सपा और बसपा का गठबंधन होगा या नहीं। कांग्रेस की कोशिश यूपी में भी बिहार की तर्ज पर भाजपा विरोधी दलों का महागठबंधन बनाने की रहेगी। मायावती ने यूपी विधानसभा चुनाव के बाद मेरठ में पार्टी कार्यकर्ताओं की पिछले दिनों रैली कर अपनी दस्तक दी। खास बात यही रही कि भाजपा, यूपी सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तो उन्होंने जम कर वार किए लेकिन समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव का कोई जिक्र नहीं किया। साफ है कि खिचड़ी तो पक रही है।
तभी तो मुलायम सिंह यादव भी पैंतरेबाजी कर रहे हैं। एक तरफ बेटे अखिलेश को आए दिन खरी-खोटी सुनाते हैं तो दूसरी तरफ छोटे भाई शिवपाल यादव के धैर्य का इम्तहान भी ले रहे हैं। शिवपाल ने पहले अखिलेश को यह वादा याद दिलाया कि चुनाव बाद मुलायम को पार्टी सौंपनी थी। अखिलेश अब चाचा की बातों पर ज्यादा तवज्जो नहीं देते। पर चाचा को बड़े भाई से भी निराशा होने लगी है। पिछले हफ्ते प्रेस कांफ्रेंस से शिवपाल ने ऐन वक्त पर किनारा किया। मुलायम ने जब शिवपाल का दिया बयान हूबहू पढ़ने से इनकार किया तो शिवपाल को लगा होगा कि मुलायम कहते कुछ भी रहें पर वे पुत्रमोह से मुक्त नहीं हो पा रहे। अखिलेश ने भी लोहा गरम देख वार कर दिया। पिता के पास पहुंच उनका आशीर्वाद मांगने में देर नहीं लगाई। इसी महीने सपा की कार्यकारिणी की बैठक में और साफ हो जाएगी तस्वीर। हालांकि करीबियों से शिवपाल ने साफ कह दिया है कि बड़े भाई ने छोटे भाई की तुलना में बेटे को ज्यादा अहमियत दी तो अपना अलग मोर्चा बनाने में पल भर की देर नहीं करेंगे वे। पर भाजपा के लिए तो तभी राहत की बात मानी जाएगी जब फूलपुर में सपा और बसपा दोनों अपने उम्मीदवार उतारें।
चर्चा यही है कि फूलपुर में विपक्ष की साझा उम्मीदवार खुद मायावती होंगी। फूलपुर संसदीय सीट से किसी जमाने में जवाहर लाल नेहरू चुन कर लोकसभा पहुंचे थे। 2014 को छोड़ भाजपा यहां कभी जीत दर्ज नहीं कर पाई। एक तरह से सूबे के उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल होगा इस सीट का उपचुनाव। यों 2012 में वे सिराथू से विधायक बने थे। 2014 में फूलपुर से सांसद चुने जाने पर सिराथू से इस्तीफा दिया था। उपचुनाव हुआ तो उसमें पराजय हिस्से आई थी उनकी पार्टी के। जाहिर है कि वे खुद भले जीत गए थे 2014 में पर उपचुनाव में मुकाबला मायावती से होगा तो राह आसान नहीं होगी भाजपा के उम्मीदवार की। याद कीजिए जनता पार्टी का दौर। मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री काल के शुरुआती दौर में इंदिरा गांधी बेहद हताश थीं। राम नरेश यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बाद यूपी की आजमगढ़ लोकसभा सीट से इस्तीफा दिया था। उपचुनाव में तब की यूपी की कांग्रेस अध्यक्ष मोहसिना किदवई जीत गई थीं। उसके साथ ही शुरू हो गई थी देश में जनता पार्टी की उलटी गिनती।