दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा

दिग्विजय सिंह नर्मदा यात्रा के जरिए कर रहे हैं मध्य प्रदेश की सियासत में अपना पुनर्वास। 2003 तक सूबे की सत्ता पर उन्हीं का कब्जा था। उमा भारती ने बिजली-सड़क और पानी के मुद्दे पर दिग्गी की एक दशक पुरानी और अंगद के पांव की तरह सत्ता पर जमी सरकार को एक झटके में उखाड़ फेंका था। तभी एलान कर दिया था दिग्गी ने कि अगले एक दशक तक वे सूबे की सियासत नहीं करेंगे। तब से पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारी के नाते दूसरे सूबों में ही दे रहे हैं वे अपना समय। इस बीच राज्यसभा तो जरूर आ गए पर 2014 तक सत्ता पर काबिज रही केंद्र की यूपीए सरकार से दूर ही रहे। नर्मदा परिक्रमा यात्रा शनिवार को दशहरे के दिन शुरू की। पूरे छह महीने पार्टी के कामकाज और अपने घर परिवार से दूर ही रहेंगे दिग्विजय सिंह। मध्य प्रदेश की 120 और पड़ोसी राज्य गुजरात की चुनिंदा विधानसभा सीटों से होकर गुजरेगी उनकी परिक्रमा यात्रा। पत्नी अमृता राय भी इस दौरान साथ चलेंगी। यात्रा पर निकलने से पहले जगत गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का आशीर्वाद लिया। भगवान चंद्र मौलेश्वर की पूजा-अर्चना कर यात्रा की शुरुआत की। पहले दिन पांच किलोमीटर का सफर ही तय हो पाया। पांच दर्जन नर्मदा पथिक बने हैं इस यात्रा में उनके हमसफर।

कांग्रेस पार्टी के झंडे का इस्तेमाल नहीं करने का मतलब साफ है। अपनी इस यात्रा पर वे कोई सियासी लेबल चिपकाना नहीं चाहते। पूरी तरह आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रखा है इस स्वरूप को। शुरुआत के मौके पर अलबत्ता कांग्रेस के सांसद विवेक तन्खा, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, जीतू पटवारी सहित एक दर्जन कांग्रेस विधायक और प्रदेश उपाध्यक्ष राजा पटैरिया मौजूद थे। तन्खा ने दिग्गी की यात्रा को भाजपाई यात्राओं से एकदम भिन्न बताया। दरअसल दिग्गी ने इस यात्रा का संकल्प बहुत पहले लिया था। सुरेश पचौरी तो कह भी गए कि बेशक राजनीति से परे है दिग्गी की यह यात्रा। पर इसने सूबे के भाजपा नेताओं के कान खड़े कर दिए। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर आदत के मुताबिक बोलने से बाज नहीं आए। दिग्गी पर सवाल दाग दिया कि वे यात्रा का मकसद बताएं। अगर यात्रा सियासी है तो बस या हेलिकाप्टर का उपयोग करें। भाजपा के एक नेता ने कटाक्ष किया कि मां नर्मदा दिग्विजय को सद्बुद्धि दें। भाजपा के केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल के घर पर भी पहुंच गए दिग्विजय सिंह। दोनों के बीच चायपान का दौर भी चला। दिग्गी के आग्रह पर प्रह्लाद पटेल ने भरोसा दिया कि नर्मदा भक्त के नाते मौका मिला तो वे भी शामिल होंगे इस परिक्रमा यात्रा में। यात्रा का अहम पहलू यह है कि छह महीने तक नर्मदा तट छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगे दिग्गी।

दीदी का दांव

असमंजस में हैं ममता बनर्जी। पश्चिम बंगाल के पर्वतीय इलाकों को अलग गोरखालैंड राज्य बनाने की मांग को लेकर चल रहा बेमियादी आंदोलन यों खत्म हो गया है। पूरे 104 दिन जारी रहा यह आंदोलन। खत्म भी किया तो केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अपील पर। आंदोलन के चलते दार्जिलिंग का पर्यटन उद्योग चौपट रहा। गृहमंत्री ने दिया है एक पखवाड़े के भीतर समस्याओं पर विचार के लिए बैठक बुलाने का भरोसा। यों गोरखा जनमुक्ति मोर्चे के नेता बिमल गुरुंग भी परेशान थे। आंदोलन खत्म करने का बहाना तलाश रहे थे। ममता के पैंतरों ने उनके संगठन में फूट अलग डाल दी। सो, गृहमंत्री ने मौका दे दिया। बंद के बावजूद पिछले कुछ दिनों से दुकानें तो खुलने लगी ही थीं। आंदोलन खत्म न करते तो संकट में पड़ सकती थी गुरुंग की सियासत। रही राजनाथ के भरोसे की बात तो अलग राज्य की मांग के औचित्य पर तो कोई टिप्पणी उन्होंने की ही नहीं।

हां, ममता बनर्जी ने जरूर इलाके के तमाम सियासी दलों के नुमाइंदों के साथ दो दौर की बैठक कर ली। तीसरी अक्तूबर में करेंगी। पर कहीं इस बैठक से पहले ही केंद्र की बैठक न हो जाए। सो, समझ नहीं पा रहीं कि करें तो क्या करें? फिलहाल तो मुंह न खोलने में ही भलाई समझ रही होंगी। पिछली दो बैठकों में यों तमाम इलाकाई नेताओं ने तो गोरखालैंड का मुद्दा उठाया ही था। यह बात अलग है कि ममता ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि अलग राज्य का गठन उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। वे तो यहां तक कह चुकी हैं कि दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल का अभिन्न अंग है और सूबे का विभाजन वे कतई नहीं होने देंगी। ऐसे में उनकी अगली रणनीति को लेकर कौतूहल बरकरार है।

 

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