नीतीश से भी अच्छा संबंध था कभी मलिक का
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राह एकदम आसान भी नहीं है। सरकार और अपनी पार्टी जद (एकी) दोनों के ही मुखिया ठहरे। पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को फरमान सुना दिया कि वे अपने इलाके में पार्टी की स्थिति मजबूत करें। इसके लिए लोगों के बीच ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं। उनकी समस्याओं की पड़ताल कर उनका समाधान कराएं। लेकिन उनकी इस हिदायत पर मानो कोई अमल करने को तैयार नहीं। यों भी लोगों के बीच जाना इतना आसान नहीं। कल तक तो वे राजद के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ घूमते थे। कांग्रेसियों के साथ भी देखे जाते थे। लेकिन अब उन्हें भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ उठ-बैठ बढ़ानी पड़ रही है। इसी चक्कर में लोगों के सवालों का सामना भी करना पड़ रहा है। जबकि भाजपा के लोगों से इस तरह के सवाल कोई नहीं पूछ रहा। पहले लोग उनके इर्द-गिर्द खुद जुट जाते थे।
अब उन्हें देखते ही रास्ता बदल कर मुंह छिपाने लगे हैं। इसका फायदा राजद के नेता और कार्यकर्ता खूबसूरत अंदाज में उठा रहे हैं। बाढ़ प्रभावित इलाकों में पीड़ितों को ज्यादा से ज्यादा राहत देकर जद (एकी) के लोग अपनी साख बढ़ाना चाहते थे। इस बहाने अपनी जमीन मजबूत करने की योजना बना रहे थे। लेकिन सरकारी तंत्र की सुस्ती उनके मंसूबों पर पानी फेर रही है। लिहाजा नीतीश कुमार उलझन में हैं। अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को लोगों तक कैसे पहुंचाएं, समझ नहीं आ रहा। हालांकि जानकार नीतीश का मन पढ़ चुके हैं। वे मानते हैं कि छठ के बाद नीतीश कोई ब्रह्मास्त्र चलेंगे। ऐसा कोई न कोई फैसला जरूर करेंगे जिससे लोगों का उनके प्रति भरोसा बढ़ जाए। इसमें जनहित की योजनाएं भी हो सकती हैं और लोगों को राहत देने वाली प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त करने की कोई योजना भी।
खेल निराले
राजनीति में रिश्ते गिरगिट के रंग बदलने के अंदाज में बदलते हैं। नीतीश और नरेंद्र मोदी के रिश्तों में आए बदलाव से इसे बखूबी समझ सकता है कोई भी। नरेंद्र मोदी के नाम से भी बिदकते थे नीतीश कुमार। अब तो उनके मुरीद हो गए हैं। लगता नहीं कि ये वही नीतीश हैं जिन्होंने मोदी के पटना आने की खबर मात्र से ही तब की सहयोगी भाजपा की कार्यकारिणी के लिए दिया रात्रिभोज का न्योता अचानक रद्द कर दिया था। अब मोदी उनकी सलाह पर अहम फैसले लें तो किसे अचरज नहीं होगा। बिहार के राज्यपाल की कुर्सी पर सत्यपाल मलिक की तैनाती के पीछे भी नीतीश की ही भूमिका देखी जा रही है। सत्यपाल मलिक और केसी त्यागी पुराने सियासी हमसफर रहे हैं।
नीतीश से भी अच्छा संबंध था कभी मलिक का। सो त्यागी के जरिए नीतीश कुमार तक पहुंच गया मलिक को राज्यपाल बनवाने का सुझाव। मुख्यमंत्री से सलाह तो होती ही है उनके राज्य में राज्यपाल की तैनाती से पहले। दरअसल मलिक का राज्यपाल बनना तो भाजपा सरकार का तय फैसला था। पर उन्हें बिहार जैसा बड़ा राज्य मिलेगा, इसकी उम्मीद नहीं थी। बिहार पर तो नजर पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देने वाले उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ भाजपा नेता कलराज मिश्र की थी। नीतीश का सुझाव आया तो मोदी ने मलिक को पटना भिजवाने में कोई देर नहीं लगाई। पाठकों को बता दें कि रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनवाने में भी भूमिका थी नीतीश की। बिहार के राज्यपाल रहते कोविंद ने मुख्यमंत्री नीतीश के साथ मधुर रिश्ते बनाए थे। नीतीश को पता था कि मोदी देश के सर्वोच्च पद पर भाजपा के किसी दलित नेता को बैठाना चाहते हैं। सो, मौका मिलते ही कोविंद के नाम का सुझाव दे डाला। मोदी को भी सुझाव जंच गया। फिर तो औपचारिक घोषणा ही हो गई कोविंद के नाम की।