शास्त्री जयंती: इन पांच किस्सों से हो जाएगा आपको भी यकीन, देश के किसी पीएम नहीं थी लाल बहादुर शास्त्री जैसी सादगी

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद पूरे देश में हर किसी के ज़हन में यही सवाल था कि देश का अगला पीएम कौन होगा? जवाहरलाल नेहरू के निधन के दो हफ्ते बाद पूर्व गृह मंत्री लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने। शास्त्री नेहरूवादी समाजवादी थे लेकिन उनका व्यक्तित्व देश के पहले प्रधानमंत्री से काफी अलग था। मधुरभाषी दुबली-पतली काया वाले शास्त्री अपनी सरल और साधारण जीवन शैली के लिए विख्यात थे। शास्त्री का जन्म दो अक्टूबर 1904 को वाराणसी के मुगलसराय में हुआ था। प्रधानमंत्री रहने के दौरान ही 11 जनवरी 1966 को रूस के ताशकंद में उनका निधन हो गया। आइए आपको शास्त्री के जीवन से जुड़ी वो पाँच घटनाएं बताती हैं जिनसे साफ होता है कि उनसे ज्यादा विनम्र प्रधानमंत्री शायद आज तक भारत में नहीं हुआ।

1- ये शास्त्री के प्रधानमंत्री बनने से पहले की बात है। तब वो देश के गृह मंत्री थे। उन्हें दिल्ली से कलकत्ता (कोलकाता) के लिए शाम को हवाईजहाज पकड़ना था। उन्हें थोड़ी देर हो गयी। भारी ट्रैफिक के कारण ऐसा लगने लगा कि शास्त्री समय से हवाईअड्डे नहीं पहुंच पाएंगे। पुलिस कमिश्नर ने उनसे कहा कि वो सायरन लगी गाड़ी भेज देंगे ताकि वो शास्त्री के गाड़ी के आगे-आगे चलकर ट्रैफिक खाली करवा दे जिससे वो समय पर हवाईजहाज पकड़ सकें। लेकिन देश के गृह मंत्री शास्त्री ने यह कहते हुए प्रस्ताव ठुकरा दिया कि कलकत्ता के आम लोगों को इससे असुविधा होगी।

2-  प्रधानमंत्री रहते हुए शास्त्री को राज्य का दौरा करना था लेकिन अंत समय में कोई महत्वपूर्ण काम आ जाने की वजह से उन्हें वो राज्य का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। जब राज्य के मुख्यमंत्री ने शास्त्री से कहा कि “मैंने आला दर्जे की व्यवस्था की है” तो देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने जवाब दिया, “आपने तीसरे दर्जे के आदमी के लिए आला दर्जे की व्यवस्ता क्यों की है?”

3- साल 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान देश में खाद्यान्न की कमी हो गयी। अमेरिका ने भी भारत को खाद्यान्न निर्यात रोकने की धमकी दी थी। प्रधानमंत्री के रूप में लालबहादुर शास्त्री ने देशवासियों से अपील की थी कि वो हफ्ते में एक दिन एक वक्त अन्न का सेवन न करें। देशवासियों के सामने मिसाल पेश करते हुए शास्त्री ने घोषणा कि कि उनके परिवार में, “कल से एक हफ्ते तक शाम को चूल्हा नहीं जलेगा।” उनकी इस घोषणा का ऐसा असर हुआ कि उसके बाद कुछ हफ्तों तक अधिकतर रेस्तरां और होटलों तक में इसका पालन हुआ।

4- लालबहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री काल में ही एक बार उनके बेटे उनकी आधिकारिक कार लेकर चले गये। शास्त्री ने अगले ही दिन निजी मद में किए गए सफर का खर्च सरकारी खजाने में जमा कराने के लिए अपने पास से पैसे दिए।

5- मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 1966 में जब शास्त्री का निधन हुआ तो उनके पास कोई निजी घर या जमीन नहीं थी। प्रधानमंत्री रहते हुए फिएट कार खरीदने के लिए उन्होंने जो कर्ज बैंक से लिया था वो मृत्यु तक नहीं भर पाए थे। उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने बाद में बैंक को कर्ज चुकाया।

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