मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ताजमहल को लेकर शुरू से अलग नजरिया रहा

दुनिया के आठ अजूबों में से एक सातवें नंबर पर दर्ज ताजमहल का नाम उत्तर प्रदेश सरकार की पर्यटन सूची से हट गया और किसी को कानोकान खबर तक नहीं हुई। सब कुछ इतना गुपचुप और सुनियोजित तरीके से हुआ कि न कोई बवाल मचा, न विरोध हुआ। मीडिया ने भी इसे इतनी ही सहजता से लिया, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। दिलों की धड़कन के प्रतीक ताजमहल को इस तरह सियासत की नजरों से देखा जाएगा, ऐसा किसी ने नहीं सोचा था।
जिस तरह प्यार करने वाले प्यार के सिवा कुछ नहीं देखते, उसी तरह ताजमहल की खूबसूरती को देख कर उसके सौंदर्य के सामने नतमस्तक होने वालों ने कभी उसे पवित्र सौंदर्य दृष्टि के अलावा किसी और नजर से शायद ही देखा होगा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ताजमहल को लेकर शुरू से अलग नजरिया रहा है। लेकिन भले ही उनकी नजरों में ताजमहल भारतीय संस्कृति का हिस्सा न हो, लेकिन जो इमारत इतने लंबे अरसे से जन आकर्षण का केंद्र रही हो, उसका यों अचानक उत्तर प्रदेश के पर्यटन नक्शे से हट जाना सवाल खड़ा करता है।

पहले केंद्र की मोदी सरकार ने विदेशी अतिथियों को ताजमहल की प्रतिकृति भेंट करने पर रोक लगाई। उसके बाद अब यूपी की पर्यटन पुस्तिका से ताजमहल का नाम हटा दिया गया। यह सब इतना सहज नहीं है, जितना दर्शाया जा रहा है। बत्तीस पेज की पर्यटन पुस्तिका में गोरखधाम, बनारस की गंगा आरती, मथुरा, चित्रकूट आदि सभी धार्मिक पर्यटन स्थल के नाम हैं, लेकिन जिस ताजमहल की वजह से प्रदेश और देश का नाम सारी दुनिया में जाना जाता है, जहां विश्व भर से सर्वाधिक पर्यटक प्रतिवर्ष जुटते हैं, उसी का नाम पर्यटन पुस्तिका में न होना आश्चर्य और अफसोस का विषय है। कहने को कहा जा सकता है कि विश्व भर से ताजमहल देखने आने वालों को इससे क्या फर्क पड़ता है कि ताजमहल का नाम पर्यटन पुस्तिका में है या नहीं।

बेशक जो सौंदर्य के पुजारी हैं, पर्यटन के मुरीद हैं, उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि किसका नाम कहां लिखा है और कहां नहीं। ताजमहल का नाम सरकारी किताब में हो या नहीं हो, उनके दिलों पर उसकी खूबसूरती हमेशा के लिए दर्ज हो चुकी है। लेकिन अगर सौंदर्य और आकर्षण के ऐसे पुरातन प्रतीकों को इस तरह दस्तावेजों से बेदखल किया जाएगा तो आजादी और देश का इतिहास भी हमें फिर से लिखना पड़ेगा। अतीत की कई कुर्बानियों की कीमत पर आज भारत के वर्तमान की फसल लहलहा रही है। ऐसे में हमें अपने आप से यह सवाल करना चाहिए कि क्या सौंदर्य और प्रेम के प्रतीकों को किसी और नजरिए से देखना उचित है!

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