हादसों की रेल
भारतीय रेल नेटवर्क दुनिया का सबसे बड़ा नेटवर्क है। लगभग एक लाख पंद्रह हजार किलोमीटर वाले इस नेटवर्क में रोजाना ढाई करोड़ यात्री सफर करते हैं लेकिन यात्रियों की सुरक्षा के नाम पर केवल आश्वासन मिलते आए हैं।
हादसों की रेल
मुजफ्फरनगर के खतौली में उत्कल एक्सप्रेस के तेरह डिब्बे पटरी से उतरने के कारण लगभग दो दर्जन यात्रियों ने अपनी जान गंवा दी और सैकड़ों घायल हो गए। पटरी से डिब्बे उतरने की यह पहली घटना नहीं है। पहले भी सैकड़ों लोग रेल दुर्घटनाओं में मारे गए हैं पर रेलवे और केंद्र सरकार का रवैया सिर्फ रेलवे की नाकामियां छुपाने का रहा। हर दुर्घटना के बाद जांच समिति बनती है, सिफारिशें होती हैं पर नतीजा हर बार शिफर ही रहता है। रेलवे का सारा ध्यान बस निजीकरण को बढ़ावा देकर मुनाफा कमाने तक केंद्रित है। अधिकतर ट्रेनें आज भी पुराने इंटीग्रल कोच फैक्टरी (आईसीएफ) के साथ चल रही हैं। ये कोच पटरी से उतरने के बाद जानमाल का भीषण नुकसान करते हैं। सिफारिशों के बावजूद लिंक हॉफमेन बुश (एलएचबी) कोच सभी रेलगाड़ियों में नहीं लगाए गए हैं। दुखद यह भी है कि सिर्फ ज्यादा किराए वाली ट्रेनों में कोच बदले गए हैं, आम आदमी आज भी जान-जोखिम में डाल कर सफर करने को मजबूर है। पटरियों की हालत भी तेज रफ्तार ट्रेनों को सहने के काबिल नहीं है। गैंगमैन भी इनकी निगरानी में लापरवाही बरतते हैं। इन मूलभूत कमियों को दूर करने में गंभीरता दिखाने से इतर रेलवे रंग-रोगन और सोशल मीडिया पर ज्यादा ध्यान दे रहा है।
भारतीय रेल नेटवर्क दुनिया का सबसे बड़ा नेटवर्क है। लगभग एक लाख पंद्रह हजार किलोमीटर वाले इस नेटवर्क में रोजाना ढाई करोड़ यात्री सफर करते हैं लेकिन यात्रियों की सुरक्षा के नाम पर केवल आश्वासन मिलते आए हैं। आए दिन ट्रेनों में लूटपाट, छेड़खानी, बलात्कार, हिंसा आदि की शिकायतों ने रेलवे को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हाल ही में महानंदा एक्सप्रेस में मां-बेटी मृत पाई गर्इं, राजधानी जैसी ट्रेन में नौ बोगियों के यात्रियों से लगभग पंद्रह लाख रुपये लूट लिए गए। सीट के झगड़े में देवेंद्र नामक व्यक्ति को चलती ट्रेन से फेंक दिया गया। ईद के मौके पर एक यात्री की चाकू मार कर की गई हत्या भी मीडिया की सुर्खियों में रही थी।रही-सही कसर ट्रेनों में व्याप्त गंदगी और मिलने वाला खराब खाना पूरा कर देता है। हाल ही में आई कैग की रिपोर्ट में रेल में मिलने वाले खाने को इंसानों के खाने लायक नहीं पाया गया। हद तो तब हो गई जब रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी ने लोगों से घर से खाना लेकर आने की अपील की। एक तरफ रेल किराये हवाई जहाज के किराए से बराबरी कर रहे हैं तो दूसरी तरफ आम आदमी की जान बार-बार हो रहे हादसों में जा रही है।
पिछले तीन वर्षों में रेल किराए में दोगुने से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है पर सुविधाओं की हालत दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है। आम आदमी को सुरक्षा की गारंटी देना भी सरकार का काम है, सिर्फ टिकट बेचकर मुनाफा कमाना उसका एकमात्र लक्ष्य नहीं होना चाहिए। हर बार जांच कमेटी बना कर अपने दायित्व की इतिश्री समझ ली जाती है। टीवी चैनलों में दो-तीन दिन खबरें चलती हैं, लोग भी कुछ दिन इस विषय पर चर्चा करते हैं। पर उसके बाद सब कुछ पहले की तरह राम भरोसे चलता रहता है। केवल पीड़ितों के परिवार जीवन भर अपने मृत संबंधियों को याद कर आंसू बहाते रह जाते हैं। अगर सरकार जनता से मनमर्जी का टैक्स वसूलती है तो उसका भी दायित्व है कि नागरिकों को सुरक्षा और बेहतर सुविधाओं की गारंटी दे।