मन को छूते हैं लालन शाह के गीत: मीरा कुमार

लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष मीरा कुमार ने शुक्रवार को कहा कि लालन शाह फकीर के गीतों को हिंदीभाषियों के बीच पहुंचाने का प्रयास अनूठा है। बाउल संप्रदाय के कवि हिंदी पट्टी के कबीरपंथी की तरह हैं। राजेंद्र प्रसाद अकादमी द्वारा आयोजित प्रोफेसर मुचकुंद दुबे की किताब ‘लालन शाह फकीर के गीत’ के लोकार्पण पर कुमार ने कहा कि इन गीतों और उसके अनुवाद के प्रयास को भाषाविज्ञान या व्याकरण की कसौटी पर नहीं कसा जा सकता। गेयता ही इन गीतों की आत्मा है। इनकी आवाज मन से निकलती है और मन को छूती है। इन गीतों की एक ही कसौटी है मन को छूना।

वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह ने कहा कि लालन शाह फकीर का ताल्लुक अभी के बांग्लादेश से है। बाउल संप्रदाय ने भारत में भी अपना खासा प्रभाव छोड़ा है। बंगाल में इसका प्रभाव रहा है। रवींद्रनाथ ठाकुर भी इनसे प्रभावित थे। केदारनाथ सिंह ने कहा कि बाउल संप्रदाय के लोग लिखते नहीं गाते थे, इसलिए ये गीत कब के और किनके हैं इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। उन्होंने कहा कि मुचकुंद दुबे की किताब में संकलित और अनूदित ये गीत लालन शाह फकीर के ही हैं यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता। लेकिन हमारे लेखक ने उसे लालन शाह के गीत मान कर ही संकलित और अनूदित किया है तो हम भी इन्हें लालन शाह के गीत ही मानेंगे।

पूर्व राज्यपाल एवं राजेंद्र भवन ट्रस्ट के कार्यवाहक अध्यक्ष टीएन चतुर्वेदी ने कहा कि लेखक ने इस किताब के लिए गहन अनुसंधान किया है और इसके लिए बांग्लादेश के साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों और लोगों की मदद ली है। इसलिए हम भरोसा कर सकते हैं कि ये गीत लालन शाह के हैं। लालन शाह कबीर परंपरा के कवि हैं और मुचकुंद दुबे उनकी भाषा और गेयता के करीब हैं।

साहित्यकार प्रयाग शुक्ल ने कहा कि इस तरह के गीत जो लोक से जुड़े होते हैं उनके अनुवाद में पहला संशय यह रहता है कि वह मूल गीतों की तरह लोकवादी होता है या नहीं, लोक के मन को छूता है या नहीं। मुचकुंद दुबे ने कहा कि भारतीय विदेश सेवा के दौरान प्रतिनियुक्ति पर उन्हें बांग्लादेश में काम करने का मौका मिला और लालन शाह के गीतों से उनका परिचय हुआ। कार्यक्रम का संचालन कर रहे अनिल मिश्र ने कहा कि राजेंद्र प्रसाद अकादमी आम जनजीवन से जुड़ी रचनाओं के लेखन और संकलन के काम में हमेशा की तरह सहयोग देती रहेगी।

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