आतंकियों के वीडियो देखने और जेहादी साहित्य पढ़ने से कोई आतंकवादी नहीं बन जाता: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट से वास्ता रखने के आरोपी एक शख्स जमानत दे दी। केरल हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत के जमानत न देने के फैसले को एक तरफ रखते हुए आरोपी को जमानत दी। हार्इकोर्ट ने कहा कि आंतकियों के वीडियो देखने या जिहादी साहित्य पढ़ने से ही कोई आतंकवादी नहीं बन जाता है। न्यायमूर्ति एएम शफीक और पी सोमराजन समेत एक खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा- ”जहां तक अपीलकर्ता का सवाल है, उसे इस आधार पर हिरासत में लिया गया है कि वह आतंकवादी संगठन में शामिल पाया जा सकता है। यह तथ्य कि उसने कुछ वीडियो देखे और भाषण सुने, उसे तब तक एक आतंकवादी के तौर पर नहीं देखा जा सकता है जब तक उसे स्थापित करने लिए अन्य सामग्री न मिल जाए। ऐसे कई वीडियो, भाषण आदि सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध हैं। कोई ऐसी चीजें देखता है तो यह कोई कारण नहीं हुआ। ऐसे में किसी भी आदमी के लिए यह संभव नहीं होगा कि वह आरोपी के आतंकवादी संगठन में शामिल होने की बात को स्थापित कर सके।”
टीओआई की खबर के मुताबिक अदालत ने न्यू माहे इलाके के मोहम्मद रियाज के वकील की ओर से दायर याचिका पर यह फैसला सुनाया। 26 वर्षीय मोहम्मद रियाज के खिलाफ ‘लव जिहाज’ मामले की सुनवाई एनआईए की विशेष अदालत कर रही है। मोहम्मद रियाज की पत्नी ने आरोप लगाया था कि उसके पति ने उसे फुसलाया, उसे इस्लाम कबूल करवाया और उसे आईएस में शामिल करने के लिए सीरिया ले जाने की कोशिश की। एनआईए ने अदालत को सूचना दी थी कि जांच दल को मोहम्मद के घर से दो लैपटॉप मिले थे, जिनमें जिहाद से संबंधित वीडियो, जाकिर नाइक और जिहादी संगठनों के भाषण और सीरिया युद्ध के वीडियो मिले।
एनआईए के वकील अजय ने कोर्ट में बताया कि अभी तक किसी भी आतंकवादी संगठन के साथ कोई अन्य लिंक स्थापित नहीं किया गया है। आरोपी की तरफ से वकील सुनील नैयर ने कोर्ट में कहा कि उसके मुवक्किल के खिलाफ लगे आरोप वैवाहिक विवाद के कारण या कुछ अन्य व्यक्तियों के प्रभाव में महिला ने लगाए हैं। उसका संबंध किसी आतंकी संगठन से नहीं है। वकील ने कहा कि उसके मुवक्किल को जबरन जेल में रखा गया और ऐसे मामले में जमानत 180 दिनों में होती है क्योंकि उसके खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत कार्रवाई की गई है। आरोपी को 70 दिनों तक जेल में रखने के बावजूद उसके खिलाफ कोई ठोस सबूत पेश न किए जाने को देखते हुए हाईंकोर्ट ने एनआईए की विशेष अदालत के फैसले दरकिनार करते हुए उसे जमानत दे दी।