आबे की वापसी

मतदान वाले दिन रविवार को जापान में तूफान आया। मतदाता तेज हवा और मूसलाधार बारिश झेलते हुए वोट डालने पहुंचे। बहुत-से लोगों ने, मौसम अचानक काफी असामान्य हो जाने के कारण वोट डालने का इरादा छोड़ दिया होगा। पर जापान में एक राजनीतिक तूफान भी आया। सत्तारूढ़ एलडीपी यानी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी और उसके नेतृत्व वाले गठबंधन को भारी जीत मिली है। इसी के साथ शिंजो आबे के सबसे ज्यादा समय तक प्रधानमंत्री रहने की संभावना बनी है। जापान के आम चुनाव के नतीजे अनुमान के मुताबिक ही आए हैं। लेकिन इन नतीजों को सिर्फ आबे की लोकप्रियता और उनकी पार्टी के प्रभाव का प्रमाण मानना सही नहीं होगा। आबे की आसान और जोरदार जीत के पीछे सबसे बड़ी वजह रही विपक्ष की तरफ से कोई चुनौती न होना। विपक्ष के नाम पर दो नई पार्टियां थीं जो मुख्य विपक्ष यानी डेमोक्रेटिक पार्टी के विघटन से हाल ही में वजूद में आर्इं। इन दोनों में सत्तारूढ़ पार्टी को गंभीर चुनौती दे सकने का न आत्मविश्वास था न तैयारी थी, बल्कि दोनों में होड़ यह थी कि आपस में किसकी सीटें ज्यादा होंगी, यानी विपक्ष में पहले नंबर पर कौन होगा। जीत को लेकर कोई अनिश्चितता न होने के बावजूद इस चुनाव को काफी उत्सुकता से देखा जा रहा था।

एक नया पहलू यह था कि पहली बार अठारह साल और उन्नीस साल के युवाओं ने वोट डाले। पर देश के भीतर और बाकी दुनिया में भी इस चुनाव को लेकर सबसे बड़ी दिलचस्पी शिंजो आबे के ‘राष्ट्रवादी’ एजेंडे और संविधान में एक खास संशोधन के उनके घोषित इरादे की वजह से रही है। आबे संविधान के अनुच्छेद नौ को बदलना चाहते हैं ताकि चीन की तरफ से मिलने वाली संभावित सुरक्षात्मक चुनौती और उत्तर कोरिया के मिसाइल व परमाणु कार्यक्रम से निपट सकें। यों तो जापान की सेना दुनिया की अत्याधुनिक सामरिक साधनों से लैस सेनाओं में गिनी जाती है, पर उपर्युक्त अनुच्छेद यह इजाजत नहीं देता कि जापानी सेना बाहर जाकर लड़े। आबे और एलडीपी का मानना है कि दूसरे विश्वयुद्ध में उठाए गए नुकसान के बाद किया गया यह प्रावधान अब प्रासंगिक नहीं रह गया है, इसलिए इसमें बदलाव की जरूरत है। लेकिन क्या आबे यह कर पाएंगे? संविधान संशोधन के लिए दोनों सदनों के दो तिहाई बहुमत की शर्त पूरी करनी होगी। अगर विपक्ष की कोई पार्टी संशोधन के पक्ष में हो, तो भी प्रस्ताव के ब्योरे व बारीकियों को लेकर मतभेद हो सकता है। फिर, संविधान संशोधन का प्रस्ताव दोनों सदनों के दो तिहाई समर्थन से पारित होने के बाद उस पर जनमत संग्रह कराना होगा। पिछले दिनों इस मुुद््दे पर हुए एक जनमत सर्वेक्षण के मुताबिक पचपन फीसद लोग अनुच्छेद नौ को बदलने के पक्ष में नहीं हैं। फिर, एलडीपी को इतनी सीटें कैसे आर्इं।

‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ चुनाव प्रणाली में ऐसा अक्सर होता है। इस चुनाव प्रणाली में सबसे ज्यादा वोट पाने वाले को विजयी घोषित किया जाता है, भले उसका मत-प्रतिशत कुछ भी हो, और विरोध में चाहे जितने वोट गए हों। फिर, आबे के सामने तो इस बार बिखरा हुआ और चुनौतीविहीन विपक्ष था। संविधान में प्रस्तावित संशोधन को संसद के दोनों सदनों से लेकर जापानी समाज तक जरूरी समर्थन दिलाने के अलावा आबे के सामने दूसरी सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना है। जहां तक भारत और जापान के रिश्तों का सवाल है, शिंजो आबे के अब तक के कार्यकाल में दोनों देशों के संबंध और बेहतर ही हुए हैं। इसलिए स्वाभाविक ही आगे दोनों देशों के आपसी सहयोग में बढ़ोतरी तथा संबंध और प्रगाढ़ होने की उम्मीद की जा सकती है।

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