अखिल भारतीय संदेश- दीवार पर इबारत
रोहतक के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में प्रधानमंत्री के भाषण के सीधे प्रसारण के लिए टांगे गए प्रोजेक्टर पर ‘बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है’ चलाना पड़ गया। जेएनयू से लेकर रामजस तक ‘आजादी’ शब्द का आपने इतना कुपाठ किया कि पंजाब, राजस्थान, असम और त्रिपुरा से लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से आजादी के नारे लगे। अब हम यह अतिपाठ तो नहीं करेंगे कि युवाओं के इस रुझान का असर 2019 पर भी पड़ेगा लेकिन यह आगाह जरूर करेंगे कि युवा गढ़ों की दीवार पर लिखी इस इबारत को समझिए। विपक्षमुक्त भारत के नारे से बाहर निकलिए। जनता विकल्प के लिए किसी राहुल गांधी का इंतजार नहीं करेगी वो तो नोटा को ही चुन लेगी। डीयू में जो नोटा 13 फीसद से ज्यादा वोट ले गया वह कौन है? फिलहाल युवाओं के दिए संदेश पर इस बार का बेबाक बोल।
जेएनयू में हार के बाद डीयू की ओर एकतरफा दिख रही आस को और मजबूत करना था। ‘यंग इंडिया’ पर भाषण तो दिल्ली के विज्ञान भवन में देना था। लेकिन सभी विश्वविद्यालयों में खुद को जीवंत करने के लिए उसका सीधा प्रसारण चलाने का फरमान जारी कर दिया गया। और हर बार की तरह बाद में अनिवार्य बनाम ऐच्छिक का खेल भी खेला गया। लेकिन भाजपा के शासन वाले हरियाणा के एक विश्वविद्यालय में कुछ और ही नजारा दिख गया। रोहतक स्थित महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के टैगोर प्रेक्षागृह में युवाओं ने जो संदेश दिया, शायद आपने उसे समझ ही लिया होगा। आपकी सरकार की नाक के नीचे के विश्वविद्यालय में इनसो कार्यकर्ताओं ने आपके भाषण का सीधा प्रसारण नहीं चलने दिया। आपकी प्रशंसा में बोलने जा रहे कुलपति के सामने से माइक छीन ली गई। और, सबसे बुरी खबर तो यह रही कि बेकाबू हंगामे को रोकने के लिए आपके बहुप्रतीक्षित भाषण की जगह आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’ चलाई गई।
आखिर एक ऐसे राज्य में जहां भाजपा की सरकार है और सब कुछ भाजपा के नियंत्रण में है वहां ऐसी असहज स्थिति का सामना क्यों करना पड़ा। बलात्कारी बाबा के मसले को आप चाहे जितना दरकिनार कर दें, 36 नागरिकों का कातिल कौन को भले अनसुनी करें और ठसक से कहें कि जो किया, अच्छा किया। इस्तीफा नहीं दूंगा। लेकिन जनता समझ रही है कि मुख्यमंत्री जी ने किनके लिए अच्छा किया। पिछले दो साल में ऐसे कई मौके आए जब हरियाणा को जलता हुए छोड़ दिया गया और सूबे के मुखिया बेखबर रहे।
पिछले साढ़े तीन सालों में हमने सारा ठीकरा उसके पहले के सत्तर सालों पर फोड़ते देखा। यहां तक कि विदेशी जमीन पर भी आपके निशाने पर विपक्ष रहा, वे लोग रहे जिन्होंने आपको वोट नहीं दिया। एक दिन भी छुट्टी नहीं लेने वाले प्रधानसेवक उत्तर प्रदेश की हर राह पर भाजपा के अगुआ के नाते घूमे थे। वे अखिलेश या राहुल नहीं, अपने लिए वोट मांग रहे थे। हरियाणा में बेकाबू हालात पर आंखें मूंदे हुए थे। आखिर आजिज होकर अदालत को सख्त लहजे में दखल देना पड़ा था।
आप अपने भाषण के केंद्र में युवाओं को ही रखते हैं। लेकिन अभी आपके रिपोर्ट कार्ड पर यह भी लिखा है कि आपको अपने मधुमास काल में ही रोहित वेमुला की मौत के बाद सबसे पहले विरोध का सुर युवाओं से ही सुनने को मिला था। जहां आपको मां गंगा ने बुलाया था और जिस राज्य ने आपको दत्तक पुत्र बनाया था, वहीं के विश्वविद्यालय से आपके लिए सबसे पहले ‘वापस जाओ’ का नारा गूंजा था। और, यही सब देख कर उत्तर प्रदेश के चुनावों में प्रवेश के पहले नोटबंदी का ब्रह्मास्त्र चलाया गया था। चलिए, भारतीय जनमानस सहिष्णु प्रवृत्ति का है और उसने भरोसा कर लिया कि कालाधन पकड़ा जाएगा, कश्मीर में पत्थर नहीं बरसेंगे, नक्सलियों के हाथों हमारे जवान शहीद नहीं होंगे। लेकिन जनता की इन उम्मीदों पर तो रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया के मुखिया उर्जित पटेल के आंकड़ों ने पानी फेर दिया।
तो जनता दीवार पर पढ़ रही है कि कांग्रेस को अहंकार से चूर होने में सत्तर साल का समय लगा और आज वह अपनी इस गलती को मान भी रही है। लेकिन सत्ताधारी दल तो महज तीन साल में उससे कहीं ज्यादा अहंकारी दिख रहा है। सूचना व प्रसारण मंत्रालय की मुखिया राहुल पर हमले से पहले अपने खेमे के नेताओं के वारिसों की सूची देखना भूल गर्इं। राजनाथ सिंह, वसुंधरा राजे, मेनका गांधी, रमन सिंह, यशवंत सिन्हा के पुत्रों को कॅरियर के विकल्प के रूप में राजनीति छोड़ कर कुछ भी हासिल नहीं हुआ। यह सूची बहुत लंबी है जिस पर हम पहले भी बात कर चुके हैं। और, सबसे अहम बात यह है कि पिछले सत्तर सालों तक देश पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस का शासन था। भाजपा के नेताओं को अपने इतने अच्छे दिनों की तो उम्मीद ही नहीं थी। आपके पास सत्ता हस्तांतरण की तरलता कहां थी। लेकिन सत्ता की तरलता आते ही आपके खेमे के वारिस फिसल कर राजनीति के मैदान में ही गिरते हैं। अभी हम यह नहीं भूले हैं कि किस तरह उत्तर प्रदेश में सीट खाली करो कि पंकज सिंह आते हैं का माहौल बनाया गया था। अभी तो आपके अच्छे दिन शुरू हुए हैं और देखना है कि आप कितने समय तक वारिसमुक्त रह पाते हैं।
सत्तर के सामने तीन की तुलना में इतिहास की दीवार आपकी तरफ इतनी झुकने लगी है कि पहला संदेशा उन दीवारों से आया है जहां हमारे देश के युवा बोलते हैं। राहुल के अहंकार पर बात करते ही आप तक यह संदेशा पहुंचा होगा कि जेएनयू में ‘नोटा से भी छोटा’ की हैसियत में खड़ी एनएसयूआइ दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संगठन में चार मुख्य पदों में से दो जीत चुकी है। एबीवीपी का पिछले एक दशक में यह खराब प्रदर्शन रहा है।
जेएनयू को आपने अपनी नाक का सवाल बना दिया। आपके खेमे के नेता हर सवाल के जवाब पर कहते कि जेएनयू बंद करो। पीएचडी की सीटों में कटौती पर बात करने के बजाए वहां के अगुआ जनरल साहब के साथ तिरंगा लेकर घूमने लगे। विचारों के इस गढ़ में युद्धक टैंक लगवाने तक की धमकी दी गई। और, अंत में तो आपने यहां की पूर्व छात्रा को टैंक वाले विभाग की कमान भी सौंप दी। लेकिन इन सबके बावजूद, जेएनयू के युवाओं ने आपको नकार दिया। राजस्थान विश्वविद्यालय से लेकर पंजाब, असम विश्वविद्यालय तक से निकला अखिल भारतीय संदेश दिल्ली विश्वविद्यालय में चौंका गया। और, जिस त्रिपुरा पर आपकी नजर है वहां एबीवीपी चारोखाने चित है।
तो, विश्वविद्यालय परिसरों से निकले इस संदेश को बड़े पैमाने पर कैसे देखा जाए। आमतौर पर विश्वविद्यालय परिसरों में सत्ताधारी खेमे का ही दबदबा रहता है। और, अगर विश्वविद्यालयों के युवा सत्ता को नकारते हैं, उसके खिलाफ संदेश देते हैं तो हवा के रुख को समझने की जरूरत है। यह याद रखने की जरूरत है कि जब ये युवा कांग्रेस के खिलाफ खड़े हुए तो भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी को जगह मिली थी।
यह भी एक सच है कि ‘मेरा प्यारा गरीब’ कहने वाले राजनेताओं के देश भारत की पूरी राजनीति मध्यमवर्ग पर केंद्रित है। उसी तरह हमारे विश्वविद्यालय भी मध्यमवर्ग की मानसिकता पर ही केंद्रित हैं। कमजोर तबके के युवा भी यहां दाखिला पाते ही मध्यमवर्ग की जमात में शामिल होते हैं। और, अभी तक हमारे विश्वविद्यालयी युवाओं की खासियत है कि वे मध्यमवर्ग में शामिल होकर भी कमजोर तबके की आवाज उठाते रहे हैं। अभी एक पीढ़ी पीछे ही तो गाय इनके लिए घर की सदस्य की तरह होती थी और गंगा जीवनधारा। स्कूल-कॉलेजों में राष्टÑीय गीत गाती, अपने प्रिंसिपल को देश के राष्टÑपति और प्रधानमंत्री सरीखा समझ स्कूलों में 15 अगस्त और 26 जनवरी को सलामी देती बड़ी हुई इस पीढ़ी के एक बड़े वर्ग को आप अचानक से देशद्रोही घोषित कर देते हैं।
युवाओं ने संदेश दे दिया है कि गीता, गंगा और झंडा से निकल रोजी-रोटी पर थोड़ी बात कर लें। हमें युद्धक टैंक और मिग विमान नहीं ज्ञान-विज्ञान और अनुसंधान के लिए विश्वविद्यालय में ज्यादा सीटें चाहिए। हमें अच्छे कॉलेज चाहिए और अच्छा माहौल चाहिए। आपने तो कश्मीर के पत्थर रामजस कॉलेज तक पहुंचा दिए। और खास कर लड़कियों की बात की जाए तो उनमें गुस्सा था कि हमारे विचारों के गढ़ को आपने सेक्स का अड्डा बता सबसे पहले लड़कियों को वहां से दूर करने की कोशिश की। आम हिंदुस्तानी मध्यमवर्गीय छात्राओं के लिए कॉलेज वह पहली जगह है जहां परिवार और स्कूल के सख्त अनुशासन से निकलने के बाद चंद साल वे आजादी की सांस लेती हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर आपके खेमे के ट्रोलों ने हर आजादख्याल लड़की को खास अश्लील शब्दों में लपेट कर रख दिया। अगर आपके लिए डीयू का यह नतीजा अप्रत्याशित है तो उन लड़कियों के गुस्से को समझिए जिन्हें आप संस्कृति के नाम पर रसोईघरों में ही महिमामंडित करने की योजना बना रहे थे। युवाओं ने एबीवीपी के हाथों से अपनी आजादी वापस छीनी है, अपने खाने-पहनने, बोलने और जीवनसाथी चुनने का अधिकार छीना है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के खिलाफ आए इस अखिल भारतीय संदेश को आप जितना जल्दी समझ लें, उतना अच्छा। और, जाहिर सी बात है कि युवा परिसरों में आपकी हार के कारण तकनीकी तो नहीं ही होंगे। हां, इस अहंकार से भी निकलिए कि कोई विपक्ष नहीं, विपक्ष में एकता नहीं, आपने हिंदुस्तान को विपक्षमुक्त कर दिया। जनता जब आपको नहीं पसंद करती है तो वो नोटा को ही वोट दे बैठती है। जेएनयू से लेकर डीयू तक नोटा के बढ़े हुए कद को देखिए। डीयू छात्रसंघ चुनाव में 13 फीसद से ज्यादा वोट लेने वाले नोटा में क्या आपको कोई प्रतिपक्ष नहीं दिख रहा? भारतीय राजनीति में इस नोटा का अभी बहुत पाठ निकलना है। उम्मीद है कि एक पाठ तो आपने भी पढ़ ही लिया होगा।