कैसे रुकेंगे सड़क हादसे
अब कोई दिन नहीं गुजरता जिस दिन देश के किसी भाग में सड़क हादसा न हो। पिछले साल औसतन एक घंटे में पचपन सड़क दुर्घटनाएं हुर्इं जिनमें सत्रह लोगों की मौत हुई। यह जानकारी पिछले दिनों जारी एक सरकारी रिपोर्ट में सामने आई है। हालांकि कुल मिलाकर सड़क हादसों में 4.1 प्रतिशत की गिरावट आई है लेकिन मृत्यु-दर में 3.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। सड़कों पर औसतन रोजाना चार सौ लोग मारे जाते हैं। भारत में पिछले साल कुल 4,80,652 सड़क दुर्घटनाएं हुर्इं, जिनमें 1,50,785 लोगों की जान गई और 4,94,624 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। ‘भारत में सड़क हादसे-2016’ नामक रिपोर्ट जारी करते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने बताया कि हादसों के शिकार लोगों में 46.3 प्रतिशत लोग युवा थे और उनकी उम्र 18-35 साल के बीच थी। यह रिपोर्ट भारत में वर्ष 2016 में हुई दुर्घटनाओं पर आधारित है। इसमें बताया गया है कि कुल सड़क हादसों में शिकार होने वाले लोगों में 83.3 प्रतिशत अठारह से साठ साल की उम्र के बीच के थे। पुलिस के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट के मुताबिक, सड़क हादसों के पीछे सबसे प्रमुख वजह चालकों की लापरवाही है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि छियासी प्रतिशत हादसे तेरह राज्यों में हुए। ये राज्य हैं तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, केरल, राजस्थान और महाराष्ट्र।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि रोजाना करीब चार सौ लोगों की जान लेने वाले सड़क हादसों पर लगाम लगाने के लिए राज्यों को केंद्रीय सड़क कोष के एक हिस्से का इस्तेमाल करना चाहिए और सर्वाधिक संभावित दुर्घटना वाली जगहों को दुरुस्त करना चाहिए। गडकरी ने कहा कि हम न सिर्फ राष्ट्रीय राजमार्गों पर बल्कि राज्यों के राजमार्गों पर भी हादसों को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। सभी राज्य सरकारों से कहा गया है कि केंद्रीय सड़क कोष की दस फीसद राशि सर्वाधिक दुर्घटना वाली जगहों में निहित दुर्घटना के कारणों को दूर करने के लिए इस्तेमाल करें। इसके अलावा जिलों में सड़क सुरक्षा समितियां गठित की जानी चाहिए जिसकी अध्यक्षता सांसदों को करनी चाहिए और जिलाधिकारियों को इनका सचिव बनाया जाना चाहिए। ये समितियां जिला स्तर पर दुर्घटना निवारण के सभी पहलुओं को देखें।
गडकरी ने भरोसा दिलाया है कि सरकार का प्रयास होगा कि अगले दो साल में सड़क हादसों में हताहतों की संख्या में पचास फीसद की कमी लाई जा सके।रिपोर्ट के मुताबिक सड़कों पर बने मोड़ों जैसे टी-जंक्शन और टी-वाई पर सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं हुर्इं। पिछले साल देश भर में हुए कुल हादसों में से सैंतीस फीसद हादसे उन्हीं चौराहों और मोड़ों पर दर्ज किए गए। उनमें से तकरीबन साठ फीसद हादसे टी और टी-वाई जंक्शन पर दर्ज किए गए। वहीं रेलवे क्रॉसिंग पर पिछले साल 3316 हादसों में 1326 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। रिपोर्ट के मुताबिक इन हादसों की सबसे बड़ी वजह ड्राइवरों की गलती रही। गति-सीमा को पार करना, शराब पीकर गाड़ी चलाना, ओवरटेकिंग और मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाना कुछ ऐसी गलतियां हैं जिनसे बड़ी संख्या में सड़क हादसे हो रहे हैं। कुल सड़क हादसों में से चौरासी फीसद हादसों के पीछे ड्राइवरों की गलती होती है।
बीते साल मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाने के कारण 4,976 दुर्घटनाएं हुर्इं, जिनमें 2,138 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। रिपोर्ट का मानना है कि मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाना सड़क दुर्घटना का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है और आने वाले समय में इसके चलते हादसों में बढ़ोतरी की आशंका है। दो पहिया वाहन चलाते हुए मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना जिंदगी के लिए कितना घातक हो सकता है, इसका अंदाजा इस ताजा रिपोर्ट को देख कर लगाया जा सकता है। यह रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल दो पहिया वाहन चलाते हुए मोबाइल इस्तेमाल करने के कारण 2138 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे। सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली सबसे ज्यादा मौतों का कारण वाहन चलाने के दौरान मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना है। वाहन चलाने के दौरान मोबाइल फोन के इस्तेमाल से सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में हुई हैं। इसके बाद हरियाणा का नंबर है। वहीं महाराष्ट्र में 172 लोगों की मौत वाहन चलाते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने के चलते हुई। इसके अलावा पिछले साल गलत स्पीड ब्रेकर, सड़कों पर गड््ढों और निर्माणाधीन सड़कों के चलते औसतन रोजाना छब्बीस लोगों की मौत हुई।
सड़क दुर्घटनाओं की संख्या और उनमें मरने वालों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर चिंता जताते हुए कई कदम उठाने की घोषणा की। प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार सड़क परिवहन सुरक्षा कानून बनाएगी तथा दुर्घटना के पीड़ितों को बिना पैसा चुकाए तुरंत चिकित्सा-सुविधा उपलब्ध कराएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े दर्शाते हैं कि 2020 तक भारत में होने वाली अकाल मौतों में सड़क दुर्घटना एक बड़ी वजह होगी। अनुमान के मुताबिक तब प्रति वर्ष पांच लाख छियालीस हजार लोग इसकी वजह से मरेंगे। 1 करोड़ 53 लाख 14 हजार लोग प्रतिवर्ष इसकी वजह से जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो जाएंगे। सड़क दुर्घटना में मरने वालों में पैदल राहगीरों, मोटर साइकिल सवारियों और साइकिल सवारियों की संख्या सबसे अधिक है। पूरी दुनिया के सिर्फ एक फीसद वाहन भारत में हैं। जबकि दुनिया भर में हो रही सड़क दुर्घटनाओं में से छह फीसद यहीं हो रही हैं।
इंटरनेशनल रोड फेडरेशन के मुताबिक भारत में सड़क हादसों में सालाना करीब 20 अरब डॉलर का नुकसान होता है। भारत में 12 करोड़ से ज्यादा वाहन हैं और इनके चलने के लिए पर्याप्त सड़कें होना जरूरी है। सड़क सुरक्षा के नियमों को जानना जरूरी है और इन्हें पालन करना भी। अगर हादसे इसी गति से होते रहें तो 2020 तक तकरीबन तीन लाख सड़क हादसे हर साल होंगे। पचपन फीसद मामलों में मौत हादसे के पांच मिनट के भीतर ही हो जाती है। इस तथ्य से समझा जा सकता है कि फौरन आपात चिकित्सा की उपलब्धता की अहमियत कितनी है। देश की सड़कों पर वाहनों का दबाव बढ़ता जा रहा है। इस पर नियंत्रण के उचित कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही वाहनों की सुरक्षा के मानकों की समय-समय पर जांच होनी चाहिए। स्कूलों में सड़क सुरक्षा से जुड़े जागरूकता अभियान चलाए जाएं। भारी वाहन और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को परमिट दिए जाने की प्रक्रिया में कड़ाई बरती जाए। ड्राइविंग लाइसेंस के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता भी तय की जाए, साथ ही बच्चों और किशोरों के वाहन चलाने पर कड़ाई से रोक लगे। तेज रफ्तार, सुरक्षा बेल्ट का प्रयोग न करने वालों और शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। तभी देश में सड़कों पर लगातार हो रही दुर्घटनाओं पर रोक लग पाएगी।
सरकार ने सड़क हादसों को रोकने के लिए एक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा नीति तैयार की है। इस नीति का मकसद इन हादसों के प्रति लोगों को शिक्षित और जागरूक करना है। सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का मानना है कि संसद में लंबित पड़े मोटरयान (संशोधन) विधेयक के पारित होने के बाद सड़क हादसों को रोकने के लिए और कारगर कदम उठाए जा सकेंगे। इस विधेयक में अन्य प्रावधानों के साथ-साथ यातायात नियमों के उल्लंघन पर लगाए जाने वाले जुर्माने में भारी बढ़ोतरी का प्रस्ताव है।