अरुंधति रॉय पर यूएपीए के तहत चलेगा मुक़दमा, क्या है पूरा मामला?
दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने लेखिका अरुंधति रॉय और कश्मीर के डॉक्टर शेख़ शौकत हुसैन के खिलाफ़ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत मुक़दमा चलाने की अनुमति दी है.
यह मामला 14 साल पुराना यानी 27 नवंबर 2010 का है.
अरुंधति रॉय को उनकी किताब ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ के लिए 1997 में बुकर पुरस्कार मिला था.
शेख शौकत हुसैन कश्मीर सेंट्रल यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल लॉ के पूर्व प्रोफेसर हैं.
बीते साल अक्टूबर में एलजी ने विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्यता बढ़ाने और सार्वजनिक अशांति फैलाने वाले बयान देने के आरोप में अभियुक्तों के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा 196 के तहत मुकदमा चलाने की मंज़ूरी दी थी.
हालांकि दिल्ली पुलिस ने अरुंधति रॉय और शेख़ शौकत हुसैन के ख़िलाफ़ पहले भारतीय दंड संहिता की धाराओं 153ए, 153बी, 504, 505 और यूएपीए की धारा 13 के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी थी लेकिन एलजी ने अक्टूबर में केवल आईपीसी धाराओं की ही मंज़ूरी दी थी.
यूएपीए की धारा 13 किसी भी ग़ैरक़ानूनी गतिविधि को उकसाने, प्रेरित करने या वकालत करने के लिए सज़ा से संबंधित है और इसमें अधिकतम सात साल की क़ैद हो सकती है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए धर्म, नस्ल, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समुदायों में वैमनस्यता बढ़ाना और सद्भाव के ख़िलाफ़ काम करने से संबंधित है जबकि 153बी राष्ट्रीय एकीकरण को नुकसान पहुंचाने से संबंधित है.
धारा 505 जानबूझकर शांति भंग करने के इरादे से जुड़ी हुई है.
क्या है मामला?
अरुंधति राय पर जिस मामले के लिए मुकदमा चलाने की अनुमति दी गई है वो कश्मीर पर दिए गए भाषण से संबंधित है. उनके ख़िलाफ़ सुशील पंडित की शिकायत पर एफ़आईआर दर्ज की गई थी.
दिल्ली के उपराज्यपाल के दफ़्तर से जारी बयान में कहा गया है कि ‘दिल्ली के एलटीजी ऑडिटोरियम में ‘आज़ादी – द ओनली वे’ नामक कॉन्फ़्रेंस के बैनर तले ‘कश्मीर को भारत से अलग करने’ का प्रचार किया गया था.’
बयान के अनुसार, ”सम्मेलन में भाषण देने वालों में सैयद अली शाह गिलानी, एसएआर गिलानी (सम्मेलन के एंकर और संसद हमले मामले के मुख्य अभियुक्त), अरुंधति रॉय, डॉ. शेख शौकत हुसैन और माओवादी समर्थक वरवर राव शामिल थे.”
यह आरोप लगाया गया कि गिलानी और अरुंधति रॉय ने ‘दृढ़ता से प्रचार’ किया कि कश्मीर कभी भी भारत का हिस्सा नहीं था और उस पर भारत के सशस्त्र बलों ने जबरन कब्ज़ा कर लिया था.
बयान के मुताबिक, ‘शिकायतकर्ता ने सम्मेलन की रिकॉर्डिंग प्रदान की थी. शिकायतकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत एमएम कोर्ट, नई दिल्ली के समक्ष शिकायत दर्ज की थी. इसी आधार पर एक प्राथमिकी दर्ज कर जांच की गई.’
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
एलजी के फैसले के बाद सोशल मीडिया पर कई लोगों ने प्रतिक्रियाएं दी हैं.
सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकील प्रशांत भूषण ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा, “तो एलजी ने कश्मीर की आज़ादी की वकालत करने के आरोप में अरुंधति रॉय के ख़िलाफ़ 14 साल पुरानी एफ़आईआर पर यूएपीए कानून के तहत अभियोजन की मंज़ूरी दे दी है. ऐसा लगता है कि मोदी सरकार ने 2024 की हार से कुछ नहीं सीखा है. भारत को तानाशाह बनाने के लिए और भी अधिक दृढ़ संकल्पित!”
तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने एक्स पर लिखा है, “अगर यूएपीए के तहत अरुंधति रॉय पर मुकदमा चलाकर बीजेपी साबित करने की कोशिश कर रही है कि वो फिर से वापस लौट आई है तो ऐसा नहीं है. और वे कभी भी उस तर वापस नहीं लौटेंगे जैसा वे आए थे. इसी तरह के फासीवाद के ख़िलाफ़ भारतीयों ने वोट किया है.”
जाने माने एंकर राजदीप सरदेसाई ने एक्स पर लिखा, “दिल्ली के एलजी ने लेखिका एक्टिविस्ट अरुंधति रॉय के ख़िलाफ़ 2010 के एक कथित हेट स्पीच मामले में यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की इजाज़त दी है. जो लोग चुनाव के दौरान लगातार धार्मिक ज़हर उगलते रहे वे बच जाएंगे और असहमति की अग्रणी आवाज़ को एंटी नेशनल ब्रांड किया जा रहा है. आज हम अधिक से अधिक बनाना रिपब्लिक होते जा रहे हैं.”
लेखिका और उपन्यासकार डॉ. मीना कंडास्वामी ने एक्स पर लिखा, “हमारी राहत, हमारा भोला विश्वास और उम्मीद कि कम बहुमत से मतभेदों पर दमनचक्र कुछ धीमा होगा-हम ग़लत थे. 14 साल पुराने एक भाषण के लिए अरुंधति रॉय के ख़िलाफ़ आतंकवाद के मामले में फंसाने की वे कोशिश कर रहे हैं. यह अपमानजनक है.”
एक्स पर बहुत से लोगों ने अरुंधति रॉय के उस भाषण की क्लिप साझा की है जिसमें उनके भाषण का वो हिस्सा है जिसमें वो कह रही हैं कि ‘कश्मीर कभी भारत का हिस्सा नहीं रहा.’
कुछ लोग ने अरुंधति रॉय की किताबों को सोशल मीडिया पर साझा किया है और उनकी विद्वता की तारीफ़ की है.
सरकार की मुखर आलोचक,
अरुंधती को 1997 में प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार से नवाजा गया था.
इसके 26 साल बाद सितम्बर 2023 में उन्हें, उनके लेखों के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार 45वां यूरोपियन डे ल’एसाई पुरस्कार दिया गया.
यह सम्मान 2021 में प्रकाशित निबंध संग्रह ‘आज़ादी’ के लिया था जिसके फ़्रांसीसी अनुवाद को काफ़ी तारीफ़ मिली थी.
मौजूदा मोदी सरकार की वो मुखर आलोचक रही हैं.
अपनी राजनीतिक टिप्पणियों के लिए अक्सर वो निशाने पर आती रही हैं. राजनीतिक टिप्पणियों पर उनके दो लेख संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं.
साल 2022 में अरुंधति ने एक लेख में सत्तारूढ़ बीजेपी की तुलना छह जनवरी को यूएस कैपिटल हिल में दंगाईयों से की और कहा, “मेरे जैसे लोग राष्ट्र विरोधियों की सूची-ए में आते हैं. ख़ासकर जो मैं लिखती या कहती हूं उसके कारण. विशेष तौर पर कश्मीर के बारे में.”
फ़रवरी 2022 में ही उन्होंने द वायर के लिए करण थापर को दिए इंटरव्यू में मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा.
अरुंधति रॉय ने कहा है कि हिन्दू राष्ट्रवाद की सोच विभाजनकारी है और देश की जनता इसे कामयाब नहीं होने देगी.
अरुंधति रॉय ने भाजपा को फासीवादी क़रार देते हुए ये भी कहा कि उन्हें उम्मीद है कि देश एक दिन इनका विरोध करेगा.
उन्होंने कहा, “मुझे भारतीय लोगों पर भरोसा है और मेरा मानना है कि देश इस अंधेरी खाई से बाहर निकल आएगा.”
उन्होंने कहा, ”मोदी के आने के बाद देश में विषमता और बढ़ी है. देश के 100 लोगों के पास भारत की 25 फ़ीसदी जीडीपी है. उत्तर प्रदेश के एक किसान ने बहुत सटीक टिप्पणी करते हुए कहा था- देश को चार लोग चलाते हैं, दो बेचते हैं और दो ख़रीदते हैं. ये चारों गुजरात से हैं.”
अरुंधति रॉय बीजेपी पर पहले भी इसी तरह से हमलावर रही हैं. बीजेपी अरुंधति रॉय के इन आरोपों को ख़ारिज करती रही है.
हिन्दू राष्ट्र, सांप्रदायिकता और कश्मीर पर अरुंधति रॉय के बयान को लेकर बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने 26 दिसंबर, 2019 को इंडिया टुडे से कहा था, ”वह अराजक और विवादों की देवी हैं. मैं उन्हें एक बुद्धिजीवी के तौर पर नहीं देखता हूँ. वह तो यहाँ तक कहती हैं कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा नहीं है.”
“अरुंधति तो भारत की सेना पर कश्मीर में अत्याचार का आरोप लगाती हैं. यहां तक कि वह गोवा की आज़ादी का भी विरोध करती हैं. उनका न सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा है और न ही संविधान पर.”
2019 में दिल्ली यूनिवर्सिटी में 15 दिसंबर को हुए एक कार्यक्रम में अरुंधति रॉय ने कहा था, ”एनपीआर वाले लोग आएं तो हम लोग पांच नाम तय कर लेते हैं. जब ये नाम पूछें तो अपना नाम रंगा-बिल्ला रख दो या कुंग-फू कुत्ता. 7 रेसकोर्स पता दे दो. एक फ़ोन नंबर तय कर लेते हैं…”
अरुंधति रॉय के इस बयान पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आपत्ति ज़ाहिर की थी
यूएपीए के मामले
बीते कुछ सालों में यूएपीए के इस्तेमाल में भारी बढ़ोतरी देखी गई है.
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इसे असहमति को दबाने के लिए सरकार इस्तेमाल कर रही है.
यूएपीए के तहत बड़े पैमाने पर कार्रवाई का मामला 2018 में भीमा कोरेगांव में हुए आयोजन के बाद सामने आया.
हिंसा भड़काने के आरोप में कई बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, एक्टिवस्ट, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं पर आरोप लगाए गए, जिनमें कई अभी भी जेल में बंद हैं.
इनमें प्रमुख नाम हैं, वकील सुरेंद्र गाडलिंग, सुधीर धवले, रोना विल्सन, शोमा सेन, महेश राउत, कवि वरवर राव, सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, वेरनॉन गोन्जाल्विस, पत्रकार गौतम नवलखा, लेखक प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े, फादर स्टेन स्वामी, हैनी बाबू, सागर गोरखे, रमेश गैचोर और ज्योति जगताप आदि.
इनमें से कुछ लोगों को ज़मानत मिल चुकी है.
दूसरा मामला फ़रवरी 2020 में दिल्ली दंगा का है. इनमें प्रमुख नाम है जेएनयू के पूर्व छात्र और स्कॉलर उमर खालिद का, जो 2019 से जेल में हैं और कई अपीलों के बाद भी अभी तक उन्हें ज़मानत नहीं मिल सकी है.
ताज़ा मामला न्यूज़क्लिक का है. पिछले साल अक्टूबर में न्यूज़क्लिक के संस्थापक और प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और मानव संसाधन विभाग के प्रमुख अमित चक्रवर्ती को गिरफ़्तार किया गया और यूएपीए लगाया गया.
साल 2020 में यूपी के हाथरस मामले में पत्रकार सिद्दीक कप्पन पर भी यूएपीए लगाया गया था, हालांकि अब उनकी ज़मानत हो चुकी है.
साल 2016 से लेकर साल 2019 के बीच ‘यूएपीए’ के तहत 5,922 मामले दर्ज किए गए थे.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी ‘एनसीआरबी’ की 2021 की रिपोर्ट में में कहा गया कि इस दौरान इनमें से कुल 132 लोगों के ख़िलाफ़ ही आरोप तय हो पाए.
तत्कालीन केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने राज्यसभा को बताया कि सिर्फ़ 2019 में ही यूएपीए के तहत पूरे देश में 1,948 मामले दर्ज किए गए हैं. आंकड़े बताते हैं कि इस साल अभियोजन पक्ष किसी पर भी आरोप साबित करने में असफल रहा जिसकी वजह से 64 लोगों को अदालत ने दोषमुक्त करार दिया.
साल 2018 की अगर बात की जाए तो जिन 1,421 लोगों पर यूएपीए के तहत मामले दर्ज हुए उनमें से सिर्फ़ चार मामलों में ही अभियोजन पक्ष व्यक्ति पर आरोप तय करने में कामयाब रहा, जबकि इनमें से 68 लोगों को अदालत ने बरी कर दिया.
इस क़ानून के तहत 2016 से लेकर 2019 तक गिरफ़्तार किए गए लोगों में से सिर्फ़ दो प्रतिशत से कुछ ज़्यादा लोग ही ऐसे हैं जिनके ख़िलाफ़ आरोप तय किए जा सके.
क्या है यूएपीए क़ानून
यूएपीए एक्ट 1967 में लाया गया था. इसे कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने 2008 और 2012 में संशोधन कर और सख़्त बनाया था.
इसके बाद मोदी सरकार ने 2019 में इसमें संशोधन कर इसे और कड़ा बना दिया.
यूएपीए ऐक्ट के सेक्शन 15 के अनुसार, भारत की एकता, अखंडता, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा या संप्रभुता को संकट में डालने या संकट में डालने की संभावना के इरादे से भारत में या विदेश में जनता या जनता के किसी तबक़े में आतंक फैलाने या आतंक फैलाने की संभावना के इरादे से किया गया कार्य ‘आतंकवादी कृत्य’ है.
इस परिभाषा में बम धमाकों से लेकर जाली नोटों का कारोबार तक शामिल है.
आतंकवाद और आतंकवादी की स्पष्ट परिभाषा देने के बजाय यूएपीए एक्ट में सिर्फ़ इतना ही कहा गया है कि इनके अर्थ सेक्शन 15 में दी गई ‘आतंकवादी कार्य’ की परिभाषा के मुताबिक़ होंगे.
सेक्शन 35 में सरकार को ये हक़ दिया गया है कि किसी व्यक्ति या संगठन को मुक़दमे का फ़ैसला होने से पहले ही ‘आतंकवादी’ क़रार दे सकती है.पी टीआई